प्रेम के सब
गीत अब लगते हैं बासे
दूर जब से हो गया
हूँ प्रियतमा से
मुड़ के देखा तो
है मुमकिन रोक ना लें
नम सी आँखें और
कुछ चेहरे उदासे
नाम क्या दोगे
हमारी प्यास का तुम
पी लिया सागर
रहे प्यासे के प्यासे
आ रहे हैं खोल के
रखना हथेली
टूटते तारे भी
दे देते हैं झांसे
उम्र भर थामे
रहे सच का ही दामन
और पीछे रह गए हम
अच्छे ख़ासे
फूट जाएगा तो
सागर लील लेगा
दिल का मैं
साझा करू अब दर्द कासे
हर गली मिल
जाएँगे कितने ही शकुनी
सुन युधिष्ठर
फैंक दे अपने ये पासे
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है