कौन हूँ मैं
आँखों में पट्टी लपेटे
दूर तक गहरा देखने की क्षमता से विकसित
श्वेत धवल पाषाण काया में
सत्य की तराजू थामे
झूठ के ग्रुत्वाकर्षण से मुक्त
स्थित्प्रग्य, संवेदना से परे
गरिमामय वैभवशाली व्यक्तित्व लिए
याद आया कौन हूँ ... ?
सुना है कभी दुधारी तलवार हुवा करती थी
चलती थी इतना महीन कि पद-चाप न सुनाई दे
सूर्य का तेज, तूफ़ान की गति
थम जाती थी मेरे सम्मोहन से सब की मति
क्या .... अभी भी नहीं समझे?
समझोगे कैसे ...
मैं कुंद, जंग लगी तलवार हूँ
तार तार पट्टी से लाज बचाती
अपने ही परिहास का बोझा उठाए
अंधी, बेबस, लाचार हूँ
बंद रहती हूँ अमीरो की रत्न-जड़ित तिजोरी में
क़ानून की लम्बी बहस में अटकी व्यवस्था की चार-दिवारी में
गरीबी की लाचारी में, महाजन की उधारी में
न्याय की ठेकेदारी में, वकीलों की पेशेदारी में
शाहबानों के किस्सों में, निर्भया के हिस्सों मैं
दंगों की आफत में, घोटालों की विरासत में
सुना है बूढ़ी होते आँखें के सपने, जवानी की आशा
ताक रहे हैं मेरा तराज़ू
कानून की धाराओं में जकड़ी
चीख रही है आत्मा मेरी
क़ानून की किसी धारा में खोजो
न हो तो तलवार से भेदो
मेरे गौरव-शाली इतिहास को आधार दो
मुझ “न्याय” को “न्याय” से जीने का अधिकार दो
शाहबानों के किस्सों में, निर्भया के हिस्सों मैं
जवाब देंहटाएंदंगों की आफत में, घोटालों की विरासत में
सुना है बूढ़ी होते आँखें के सपने, जवानी की आशा
ताक रहे हैं मेरा तराज़ू
कानून की धाराओं में जकड़ी
चीख रही है आत्मा मेरी
क़ानून की किसी धारा में खोजो
न हो तो तलवार से भेदो
मेरे गौरव-शाली इतिहास को आधार दो
मुझ “न्याय” को “न्याय” से जीने का अधिकार दो..\nबहुत कुछ कह दिया आपने इन शब्दों में ...
शुक्रिया योगी जी ...
हटाएंसुना है बूढ़ी होते आँखें के सपने, जवानी की आशा
जवाब देंहटाएंताक रहे हैं मेरा तराज़ू
आभार संजय जी ..।
हटाएंiAMHJA
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