स्वप्न मेरे: दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे ...

सोमवार, 11 मार्च 2019

दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे ...


सहारा बे-सहारा ढूंढ लेंगे
मुकद्दर का सितारा ढूंढ लेंगे

जो माँ की उँगलियों में था यकीनन
वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे

गए जिस जिस जगह जा कर वहीं हम
हरा बुन्दा तुम्हारा ढूंढ लेंगे

मेरे कश्मीर की वादी है जन्नत
वहीं कोई शिकारा ढूंढ लेंगे

अभी इस जीन से कर लो गुज़ारा
अमीरी में शरारा ढूंढ लेंगे

बनाना है अगर उल्लू उन्हें तो
कहीं मुझ सा बेचारा ढूंढ लेंगे

नए हैं पंख सपने भी नये हैं       
गगन पे हम गुबारा ढूंढ लेंगे

सितारे रात भर टूटे जहाँ ... चल  
वहीं अपने दुबारा ढूंढ लेंगे

नहीं जो लक्ष्य हम, कोई तो होगा
किधर है ये इशारा ढूंढ लेंगे

पिघलती धूप के मंज़र पे मिलना
नया दिलकश नज़ारा ढूंढ लेंगे

जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे

59 टिप्‍पणियां:

  1. लाजवाब...., झरने के प्रवाह सी...., सादगी से सकारात्मकता को पेश करती खूबसूरत सी गज़ल ..., जिसे कितनी बार भी पढ़ो , अच्छी लगती है ।

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  2. पिघलती धूप के मंज़र पे मिलना
    नया दिलकश नज़ारा ढूंढ लेंगे

    जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
    बहुत ही खूबसूरत गजल, नासवा जी।

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  3. आपकी लिखी रचना मंगलवार 12 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  5. जो माँ की उँगलियों में था यकीनन
    वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे
    बहुत खूब ......आदरणीय

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  6. माँ की उँगलियों में था यकीनन
    वो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे -- सुन्दर परिकल्पना .

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  7. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 92वां जन्मदिन - वी. शांता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

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  8. खुशी की तलाश हर पंक्ति में है. बहुत बढ़िया दिगंबर जी-

    जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे

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  9. वाह दिगंबर नसवा जी !
    आपकी कविता दुबारा क्या, तिबारा भी पढ़ी लेकिन उसको बार-बार पढ़कर भी हमारे आनंद में कोई कमी नहीं आई.

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  10. वाह वाह बहुत उम्दा¡
    नासवा जी हर बार की तरह हर शेर लाजवाब, उम्दा बेहतरीन।

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  11. वाह ! जादू का पिटारा हाथ लग जाये तो भला खुशियाँ कहाँ जाएँगी..हर बारा ढूँढ़ लेंगे..

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  12. जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
    बहुत खूब.... ,लाज़बाब .... ,सादर नमन

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  13. वाहह्हह... सर...लाज़वाब.. शानदार हर बंध बेहद नायाब है..उत्कृष्ट सृजन..आनंद आ गया..👌👌👌👍👍👍

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  14. क्या बात है सर। सकारात्मकता से ओत-प्रोत। बार-बार पढ़ने को मन करता है। सादर।

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  15. जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
    कहाँ से कैसे हर बारा ढूँढ लाते हैंं आप इतनी लाजवाब गजल अद्भुत शब्दविन्यास और एक से बढ़कर एक शेर....
    वाह!!!!

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    1. आपकी दृष्टि का कमाल भी है ये ...
      बहुत आभार आपका ...

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  16. सितारे रात भर टूटे जहाँ ... चल
    वहीं अपने दुबारा ढूंढ लेंगे ...लाजवाब अलफ़ाज़ !!

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  17. जी अपनों क मिलने का मन करता है कई बार ....
    आभार आपका ...

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  18. जो माँ की उंगलियों में था यकीनन ...... ! पूरी अभिव्यक्ति इसी पंक्ति में समाहित है। माँ जैसे की तलाश !

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  19. जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे

    ...क्या खूब ज़ज्बा है...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..

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  20. जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
    दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे... वाह बहुत खूबसूरत रचना

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