सहारा बे-सहारा
ढूंढ लेंगे
मुकद्दर का
सितारा ढूंढ लेंगे
जो माँ की
उँगलियों में था यकीनन
वो जादू का
पिटारा ढूंढ लेंगे
गए जिस जिस जगह
जा कर वहीं हम
हरा बुन्दा
तुम्हारा ढूंढ लेंगे
मेरे कश्मीर की
वादी है जन्नत
वहीं कोई शिकारा
ढूंढ लेंगे
अभी इस जीन से कर
लो गुज़ारा
अमीरी में शरारा
ढूंढ लेंगे
बनाना है अगर
उल्लू उन्हें तो
कहीं मुझ सा
बेचारा ढूंढ लेंगे
नए हैं पंख सपने भी नये हैं
गगन पे हम गुबारा
ढूंढ लेंगे
सितारे रात भर
टूटे जहाँ ... चल
वहीं अपने दुबारा
ढूंढ लेंगे
नहीं जो लक्ष्य
हम, कोई तो होगा
किधर है ये इशारा
ढूंढ लेंगे
पिघलती धूप के
मंज़र पे मिलना
नया दिलकश नज़ारा
ढूंढ लेंगे
जो मिल के खो गईं
खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या
तिबारा ढूंढ लेंगे
क्या बात है। वाह।
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी ...
हटाएंलाजवाब...., झरने के प्रवाह सी...., सादगी से सकारात्मकता को पेश करती खूबसूरत सी गज़ल ..., जिसे कितनी बार भी पढ़ो , अच्छी लगती है ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका मीना जी ...
हटाएंपिघलती धूप के मंज़र पे मिलना
जवाब देंहटाएंनया दिलकश नज़ारा ढूंढ लेंगे
जो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
बहुत ही खूबसूरत गजल, नासवा जी।
आभार ज्योति जी ...
हटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार 12 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार आपका बहुत बहुत ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-03-2019) को "आँसुओं की मुल्क को सौगात दी है" (चर्चा अंक-3272) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ...
हटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंवाह..बहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया ...
हटाएंजो माँ की उँगलियों में था यकीनन
जवाब देंहटाएंवो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे
बहुत खूब ......आदरणीय
आभार रविन्द्र जी ...
हटाएंमाँ की उँगलियों में था यकीनन
जवाब देंहटाएंवो जादू का पिटारा ढूंढ लेंगे -- सुन्दर परिकल्पना .
आपका आभार है ...
हटाएंआपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 92वां जन्मदिन - वी. शांता और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...
हटाएंखुशी की तलाश हर पंक्ति में है. बहुत बढ़िया दिगंबर जी-
जवाब देंहटाएंजो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
दुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
बहुत आभार आपका ...
हटाएंवाह !लाज़बाब आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंसादर
आभार आपका अनीता जी ...
हटाएंवाह दिगंबर नसवा जी !
जवाब देंहटाएंआपकी कविता दुबारा क्या, तिबारा भी पढ़ी लेकिन उसको बार-बार पढ़कर भी हमारे आनंद में कोई कमी नहीं आई.
आपकी जर्रानवाजी है गोपेश जी ... आभार ...
हटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंवाह वाह बहुत उम्दा¡
जवाब देंहटाएंनासवा जी हर बार की तरह हर शेर लाजवाब, उम्दा बेहतरीन।
जी आभार आपका ...
हटाएंवाह ! जादू का पिटारा हाथ लग जाये तो भला खुशियाँ कहाँ जाएँगी..हर बारा ढूँढ़ लेंगे..
जवाब देंहटाएंजी सही कह रहीं हैं आप ...
हटाएंजो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
जवाब देंहटाएंदुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
बहुत खूब.... ,लाज़बाब .... ,सादर नमन
शुक्रिया जी ...
हटाएंवाहह्हह... सर...लाज़वाब.. शानदार हर बंध बेहद नायाब है..उत्कृष्ट सृजन..आनंद आ गया..👌👌👌👍👍👍
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता जी ...
हटाएंक्या बात है सर। सकारात्मकता से ओत-प्रोत। बार-बार पढ़ने को मन करता है। सादर।
जवाब देंहटाएंआभार वीरेंद्र जी ...
हटाएंजो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
जवाब देंहटाएंदुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
कहाँ से कैसे हर बारा ढूँढ लाते हैंं आप इतनी लाजवाब गजल अद्भुत शब्दविन्यास और एक से बढ़कर एक शेर....
वाह!!!!
आपकी दृष्टि का कमाल भी है ये ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
bhot his sundar kavita hai
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंसितारे रात भर टूटे जहाँ ... चल
जवाब देंहटाएंवहीं अपने दुबारा ढूंढ लेंगे ...लाजवाब अलफ़ाज़ !!
जी अपनों क मिलने का मन करता है कई बार ....
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
जो माँ की उंगलियों में था यकीनन ...... ! पूरी अभिव्यक्ति इसी पंक्ति में समाहित है। माँ जैसे की तलाश !
जवाब देंहटाएंसच कहा है आपने ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
बहुत खूब .... बेहद सकारात्मक भाव
जवाब देंहटाएंआभार मोनिका जी ...
हटाएंजो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
जवाब देंहटाएंदुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे
...क्या खूब ज़ज्बा है...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल..
शुक्रिया कैलाश जी
हटाएंवाह,लाजवाब
जवाब देंहटाएंख़ूबसूरत ग़ज़ल
आभार हिमकर जी ...
हटाएंwah bahut umdaaa
जवाब देंहटाएंThank you Kumar ji ...
हटाएंThank you Kumar ji ...
हटाएंजो मिल के खो गईं खुशियाँ कभी तो
जवाब देंहटाएंदुबारा क्या तिबारा ढूंढ लेंगे... वाह बहुत खूबसूरत रचना
बहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ओंकार जी ...
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