स्वप्न मेरे: अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली ...

सोमवार, 25 मार्च 2019

अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली ...


सुनों छोड़ो चलो अब उठ भी जाएँ
कहीं बारिश से पहले घूम आएँ

यकीनन आज फिर इतवार होगा
उनीन्दा दिन है, बोझिल सी हवाएँ

हवेली तो नहीं पर पेड़ होंगे
चलो जामुन वहाँ से तोड़ लाएँ

नज़र भर हर नज़र देखेगी तुमको
कहीं काला सा इक टीका लगाएँ

पतंगें तो उड़ा आया है बचपन
चलो पिंजरे से अब पंछी उड़ाएँ

कहरवा दादरा की ताल बारिश
चलो इस ताल से हम सुर मिलाएँ

अरे “शिट” आखरी सिगरेट भी पी ली
ये बोझिल रात अब कैसे बिताएँ

59 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना मंगलवार 26 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. पतंगें तो उड़ा आया है बचपन
    चलो पिंजरे से अब पंछी उड़ाएँ....क्या बात है सर ...हर एक शेर दमदार और खूबसूरत ....

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (26-03-2019) को "कलम बीमार है" (चर्चा अंक-3286) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत ही बेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय

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  5. क्या बात है सर। हमेशा की तरह गजब।

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  6. वाह! क्या प्रयोग है! लाज़वाब!! सुभान अल्लाह!!!

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  7. कहरवा दादरा की ताल बारिश
    चलो इस ताल से हम सुर मिलाएँ
    बहुत खूब....., लाजबाब...., सादर नमस्कार



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  8. लाजवाब...., हर अशआर एक से बढ़ कर एक । आखिरी शेर में 'शिट' का प्रयोग...., अचंभित कर गया:-)

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    1. आम बोली में आजकल बहुत इस्तेमाल होता है ये शब्द ... और कोशिश कर के जितना हो सके आम बोलचाल में लिखना चाहता हूँ ... आभार आपका

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  9. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन फ़ारुख़ शेख़ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  10. यकीनन आज फिर इतवार होगा
    उनीन्दा दिन है, बोझिल सी हवाएँ
    कमाल की गजल...लाजवाब शेरों से सजी...
    वाह!!!
    हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब

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  11. हवेली तो नहीं पर पेड़ होंगे
    चलो जामुन वहाँ से तोड़ लाएँ

    नज़र भर हर नज़र देखेगी तुमको
    कहीं काला सा इक टीका लगाएँ
    बहुत ही प्यारी गज़ल आदरणीय दिगम्बर जी | जीवन के छोटे छोटे खुशियों भरे लम्हों को बड़ी सादगी और निश्छलता से समेटती रचना के लिए सिर्फ वाह ही कहना उचित है | सादर शुभकामनायें इस तरह की सकारात्मकता से भरपूर रचनाओं के लिए |

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  12. उव्वाहहहह
    सफल हुआ प्रयोग..
    और भी किए जाएँगे आगे..
    साधुवाद..
    सादर....

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    1. शुक्रिया दिग्विजय जी ...
      प्रयोग जारी रहने ही चाहियें ...

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  13. यकीनन आज फिर इतवार होगा
    उनीन्दा दिन है, बोझिल सी हवाएँ
    ...वाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल

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  14. क्या बात है ! हर पल हर लम्हे को जीने का सबक सिखाती बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल ! आपका अंदाज़ हमेशा निराला होता है नासवा जी ! बहुत सुन्दर !

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  15. कविता का हर नाज़ुक कदम ज़िंदगी के कई लम्हों को नाप रहा है. यह तो बहुत ही सुरीला है.
    कहरवा दादरा की ताल बारिश
    चलो इस ताल से हम सुर मिलाएँ

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  16. अलहदा...हर अश'आर का अपना अर्थ है बेहद उम्दा .सामन्य रचनाओं से अलग प्रभावशाली आकर्षित करती है आपकी रचनाएँ सर..हमेशा की तरह बहुत सुंदर👌👌👍👍

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  17. अति उत्तम सृजन दिगम्बर जी।

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  18. आदरणीय दिगंबर सर, ग़ज़ल में नए प्रयोगों के करने से आपकी रचनाएँ हमेशा सबसे अलग हटकर ताजगी का अहसास कराती है। आपकी हर रचना मेरे reading list में आते ही पढ़ लेती हूँ। पिछले कुछ समय से टिप्पणियाँ नहीं दे पाई। अब पुनः नियमित होने की कोशिश है। मेरे ब्लॉग से जुड़ने के लिए भी तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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    1. जीवन के उतार चढ़ाव में कई बार इस होता है ... सब कार्य जीवन में ज़रूरी होते हैं ... आपने समय निकाला ... आपका आभार है बहुत बहुत ...

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  19. हमेशा की तरह बहुत सुंदर रचना, नासवा जी।

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  20. न्याय व्यवस्था तक की सारी पोस्टें एक साथ पढ़ डालीं . मन में एक ही सवाल क्या आप गज़ल के साथ ही रहते हैं हर वक्त . हर दूसरे दिन आप एक कमाल गज़ल लिखकर देते हैं . अद्भुत . न्याय व्यवस्था आपकाी अलग तरह की रचना है पर बहुत अर्थपूर्ण और विशिष्ट . नमन है आपकी लेखनी को .उर्वर भावभूमि को ..

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    1. गिरिजा जी ये आपका प्रेम है जो मेरी साधारण सी लेखनी को मान दे रही हैं आप ... आपका आभारी हूँ इस प्रोत्साहन के लिए ...

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है