अपने शहर की खुशबू भी कम नहीं होती ... अभी लौटा हूँ अपने कर्म क्षेत्र ... एक गज़ल आपके नाम ...
झुकी पलकें
दुपट्टा आसमानी
कहीं खिलती तो
होगी रात रानी
वजह क्या है तेरी खुशबू की जाना
कोई परफ्यूम या चिट्ठी पुरानी
मिटा सकते नहीं पन्नों
से लेकिन
दिलों से कुछ
खरोंचे हैं मिटानी
लड़ाई, दोस्ती फिर
प्रेम पल पल
हमारी रोज़ की है
जिंदगानी
अभी से सो रही हो
थक गईं क्या
अभी तो ढेर बातें
हैं बतानी
यहाँ राधा है
मीरा कृष्ण भी है
यहाँ की शाम है
कितनी सुहानी
हंसी के बीच
दांतों का नज़ारा
मुहब्बत की है बस
इतनी कहानी
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक चर्चा मंच पर चर्चा - 3365 दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत धन्यवाद ...
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 12/06/2019 की बुलेटिन, " १२ जून - विश्व बालश्रम दिवस और हम - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शिवम् जी ...
हटाएंखूबसूरत रचना। आनंद आ गया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंबेहतरीन व लाजवाब...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंबड़ी दिलकश और रूमानी रचना !
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2019) को "काला अक्षर भैंस बराबर" (चर्चा अंक- 3366) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार ...
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना,नासवा जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ज्योति जी ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार श्वेता जी ...
हटाएंमिटा सकते नहीं पन्नों से लेकिन
जवाब देंहटाएंदिलों से कुछ खरोंचे हैं मिटानी...बेहतरीन आदरणीय 👌
सादगी भरा आप का यह अंदाज़ लाज़बाब है
सादर
आभार अनीता जी ...
हटाएंप्यारी सी रचना। बात सरलता से कही गई और दिल में उतरती हुई....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंवाह बहुत उम्दा /बेहतरीन।
जवाब देंहटाएंकोमल सरस सुंदर अभिव्यक्ति
बहुत आभार ...
हटाएंलौटना सुखद .
जवाब देंहटाएंजी ...
हटाएंआपका आभार ...
बहुत खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंआभार कैलाश जी ...
हटाएंइस कविता में बहुत सी पुरानी चिठियां हैं, परफ्यूम हैं खुशबूएँ हैं. 👌
जवाब देंहटाएंजी यही खुशबू ही तो जीवन है ...
हटाएंआभार आपका ...
आपकी हर रचना एक खूबसूरत अहसास है। बधाई और आभार।
हटाएंबहुत आभार विश्वमोहन जी ...
हटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंअति सुंदर लेख
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंवाह बेहद शानदार 👍
जवाब देंहटाएंआभार आपका सदा जी ...
हटाएंयहाँ राधा है मीरा कृष्ण भी है
जवाब देंहटाएंयहाँ की शाम है कितनी सुहानी
जहाँ प्रेम की बात हो वहाँ राधा व मीरा का जिक्र होना ही है, और जहाँ ये दोनों हों वहाँ कृष्ण अपने आप ही चले आते हैं..सुंदर भावों से सजी रचना
सच है ... कृष्ण तो हर प्रेम की जगह मौजूद हैं ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन लेखन हेतु साधुवाद आदरणीय ।
जवाब देंहटाएंवजह क्या है तेरी खुशबू की जाना
कोई परफ्यूम या चिट्ठी पुरानी.....वाह!!!!!
आभार पुरुषोत्तम जी ...
हटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत रचना दिगंबर जी ।
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी ...
हटाएंमिटा नहीं सकते मगर दिल के पन्नों से चोट पुरानी...
जवाब देंहटाएंवाह!
बहुत आभार वाणी जी ...
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंयहाँ राधा है मीरा कृष्ण भी है
जवाब देंहटाएंयहाँ की शाम है कितनी सुहानी ...अद्भुत ...प्रेम में पके हुए सुन्दर शब्द