धूप की बैसाखियों
को भूल जा
दिल में हिम्मत
रख दियों को भूल जा
व्यर्थ की
नौटंकियों को भूल जा
मीडिया की
सुर्ख़ियों को भूल जा
उस तरफ जाती हैं तो
आती नहीं
इस नदी की
कश्तियों को भूल जा
टिमटिमा कर फिर
नज़र आते नहीं
रास्ते के
जुगनुओं को भूल जा
हो गईं तो हो गईं
ले ले सबक
जिंदगी की
गलतियों को भूल जा
याद रख्खोगे तो
मांगोगे सबब
कर के सारी
नेकियों को भूल जा
रंग फूलों के
चुरा लेती हैं ये
इस चमन की
तितलियों को भूल जा
टूट कर आवाज़ करती
हैं बहुत
तू खिजाँ की
पत्तियों को भूल जा
इस शहर से उस शहर
कितने शहर
आसमानी पंछियों
को भूल जा
सच में बड़ते शहरी विकास और उद्योगीकरण
जवाब देंहटाएंसे अब आसमानी पंछी प्राकृतिक वातावरण प्रदूषण के धुएं में सब खो गया है ।
ठाक कहा है आपने ...
हटाएंआभार आपका ...
हो गईं तो हो गईं ले ले सबक
जवाब देंहटाएंजिंदगी की गलतियों को भूल जा।
लाजवाब /बहुत उम्दा प्रस्तुति भुलना ही बेहतर इलाज है हर हयात ए मर्ज का
जी भूलने में बेहतरी है ...
हटाएंआभार आपका ...
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 17/06/2019 की बुलेटिन, " नाम में क्या रखा है - ब्लॉग बुलेटिन“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार शिवम् जी ...
हटाएंवाह..सर..लाज़वाब गज़ल हमेशा की तरह..👌
जवाब देंहटाएंशुक्रिया श्वेता जी ...
हटाएंआपकी रचना पढ़कर बुद्ध का संदेश याद आ गया, 'अप दीपो भव', अपना दीपक स्वयं बनना है, अपना नाविक भी. साथ ही अच्छे व बुरे दोनों तरह के अतीत को भुलाकर, बसंत और पतझड़ दोनों को आने-जाने वाला समझकर मन के पंछी को विश्राम देना है...बधाई और शुभकामनायें..
जवाब देंहटाएंजी इंसान इसी सोच को अमल में ला सके तो जीवन का अर्थ समझ जाता है ...
हटाएंबहुत आभार अपना .. 🙏🙏🙏
याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
जवाब देंहटाएंकर के सारी नेकियों को भूल जा
खूबसूरत ग़ज़लों के संग्रह में एक और बेहतरीन और लाजवाब ग़ज़ल ।
बहुत आभार मीना जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-06-2019) को "सहेगी और कब तक" (चर्चा अंक- 3371) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 19 जून 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार पम्मी जी ...
हटाएंवाह ! हर शेर लाजवाब ! अंदाज़ हमेशा की तरह बेहद दिलकश ! बहुत प्यारी ग़ज़ल है नासवा जी ! हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार साधना जी ...
हटाएंबहुत उम्दा , बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआभार शुभम जी
हटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ।।.
हटाएंहो गईं तो हो गईं ले ले सबक
जवाब देंहटाएंजिंदगी की गलतियों को भूल जा
याद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
कर के सारी नेकियों को भूल जा
वाह !!! सर बहुत खूब एक एक शेर लाज़बाब ....
आ हर कमिनी जी ...
हटाएंनासवा जी,इसलिए ही तो कहते हैं न कि बीती ताही बिसार दे आगे की सोच... बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंजी सही कह रही हैं आप ...
हटाएंआभार आपका ...
सच में जीवन में बहुत कुछ भूलना भी पड़ता है। बहुत खूबसूरत गज़ल ।
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया ...
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया ...
हटाएंबहुत खूब ...पर टूटी पत्तियों की आवाज को कोई कैसे भूले ! भूलना इतना आसान कहाँ है !
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल आसन नहीं होता ... दूर तक पीछा करती हैं ये आवाजें ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंयाद रख्खोगे तो मांगोगे सबब
जवाब देंहटाएंकर के सारी नेकियों को भूल जा
बेहतरीन है सर !!!
शुक्रिया आपका ...
हटाएंवाह!!दिगंबर जी ,लाजवाब रचना । हर एक पंक्ति बहुत कुछ कह गई ।
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी ...
हटाएंरंग फूलों के चुरा लेती हैं ये
जवाब देंहटाएंइस चमन की तितलियों को भूल जा....वाह .. बेहद खूबसूरत अल्फ़ाज़ लिखे हैं सर आपने