अंधेरों को मिलेंगे आज ठेंगे
ये दीपक रात भर
यूँ ही जलेंगे
जो तोड़े पेड़ से
अमरुद मिल कर
दरख्तों से कई
लम्हे गिरेंगे
किसी के होंठ को
तितली ने चूमा
किसी के गाल अब
यूँ ही खिलेंगे
गए जो उस हवेली
पर यकीनन
दीवारों से कई
किस्से झरेंगे
समोसे, चाय, चटनी, ब्रेड
पकोड़ा
न होंगे यार तो
क्या खा सकेंगे
न जाना “पालिका
बाज़ार” तन्हा
किसी की याद के
बादल घिरेंगे
न हो तो नेट पे
बैंठे ढूंढ लें फिर
पुराने यार अब
यूँ ही मिलेंगे
मुड़ी सी नज़्म दो
कानों के बुँदे
किसी के पर्स में
कब तक छुपेंगे
अभी तो रात छज्जे
पे खड़ी है
अभी जगजीत की गजलें सुनेंगे
क्या बात है। बहुत खूब :)
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सुशील जी ...
हटाएंछोटे-छोटे ख़ुशी के अहसासों में झांकती जिंदगी..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंमुड़ी सी नज़्म दो कानों के बुँदे
जवाब देंहटाएंकिसी के पर्स में कब तक छुपेंगे
वाह..लाज़वाब.. अलग बुनावट में सजी शानदार गज़ल..👌
बहुत आभर श्वेता जी ...
हटाएंअभी तो रात छज्जे पे खड़ी है
जवाब देंहटाएंअभी जगजीत की गजलें सुनेंगे
बेहतरीन ... लाजवाब... अति सुन्दर !!
आभार मीना जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (25-06-2019) को "बादल करते शोर" (चर्चा अंक- 3377) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभर ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार जून 25, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआभार दिग्विजय जी ...
हटाएंजो तोड़े पेड़ से अमरुद मिल कर
जवाब देंहटाएंदरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे
बहुत ही सुंदर.
आभार सर आपका ...
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार सुमन जी ...
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
हटाएंबहुत सुन्दर नाशवा जी . हमेशा की तरह ..
जवाब देंहटाएंआभार अरुण जी ...
हटाएंदरख्तों से कई लम्हे झरेंगे ....क्या लिखते हैं आप !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंजो तोड़े पेड़ से अमरुद मिल कर
जवाब देंहटाएंदरख्तों से कई लम्हे गिरेंगे
वाह..लाज़वाब शानदार गज़ल नासवा जी
न जाना “पालिका बाज़ार” तन्हा
जवाब देंहटाएंकिसी की याद के बादल घिरेंगे
न हो तो नेट पे बैंठे ढूंढ लें फिर
पुराने यार अब यूँ ही मिलेंगे ...न जाने कितने पुराने दिनों के आगोश में चले गए होंगे आपके ये शब्द पढ़कर :)