मेघ हैं आकाश में कितने घने
लौट कर आए हैं घर में सब जने
चिर प्रतीक्षा बारिशों की हो रही
बूँद अब तक बादलों में सो रही
हैं हवा में कागजों की कत-रने
मेघ हैं आकाश में ...
कुछ कमी सी है सुबह से धूप में
आसमां पीला हुआ है धूल में
रेड़ियाँ लौटी घरों को अन-मने
मेघ हैं आकाश में ...
नगर पथ पल भर में सूना हो गया
वायु का आवेग दूना हो गया
रह गए बस पेड़ के सूखे तने
मेघ हैं आकाश में ...
दिन में जैसे रात का आभास है
पहली बारिश का नया एहसास है
मुक्त हो चातक लगे हैं चीखने
मेघ हैं आकाश में ...
चाय भी तैयार है गरमा-गरम
उफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
हैं आकाश में ...
tiopreport.com : Thanks
जवाब देंहटाएंआभार नवीन जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-07-2019) को "बड़े होने का बहाना हर किसी के पास है" (चर्चा अंक- 3398) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएंनमस्कार !
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" 16 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत आभार ...
हटाएंबहुत अच्छी कविता ... आकाश में पकौड़े ... शानदार प्रयोग ...
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अरुण जी ...
हटाएंइस कविता को यदि सेंट्रल अलाइन कर दें...तो लोग हरिवंश राय बच्चन के एकांत संगीत से लिया समझ लेंगे...लाज़वाब...👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंबेहतरीन,
जवाब देंहटाएंआपका तो अंदाज़ ही अलग हैं।बेहद खूबसूरती से कहा हैं हर लब्ज़,मज़ा आ गया।
चाय भी तैयार है गरमा-गरम
उफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
हैं आकाश में .
ये खान पान और लोगो को भी बुला कर करे तो ज्यादा आनंद देगा।हाहाहा
सादर
बिलकुल ज़फर जी ... सब मिल के आनद लें तो मजा दुगना हो जाता है ... आभार आपका ...
हटाएंबहुत सुंदर लेखन
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंवाह लाजवाब।
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी ...
हटाएंब्हबेहत रचना
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सरिता जी ...
हटाएंपहली बारिश का मजा ही कुछ और हैं। बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंजी सही कहा है आपने ... आभार आपका ...
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंकिसी ऋतु परिवर्तन को त्योहार की तरह मनाने का बेहतरीन नमूना हैं आपकी ये पंक्तियाँ-
जवाब देंहटाएंचाय भी तैयार है गरमा-गरम
उफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
क्या बात है. शब्द इस तरह भी भिगोते जाते हैं.
आभार आपका बहुत बहुत ...
हटाएंआंधी, पीला आसमां..काले मेघा और पहली पहली बारिश..इतने सारे बिम्ब प्रतिबम्ब एक साथ..और साथ में चाय भी आपने तो वर्षा का उत्सव ही मना लिया..
जवाब देंहटाएंजी जीवन भी एक बिम्ब है माया का ...
हटाएंआभार आपका ...
वाह बहुत खूब लिखा है आपने हर शब्द जीवंत कर दिया ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया संजय जी ...
हटाएंवाह !बेहतरीन सृजन सर
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत आभार अनीता जी ...
हटाएंवाह !!दिगंबर जी ,क्या बात है !!पहली बारिश की मीठी खुशबू ,बडी मनभावन होती है ।साथ मेंं मिर्च ओर आलू के पकौड़ों ..भाई वाह ,मजा आ गया !
जवाब देंहटाएंआभार शुभा जी ...
हटाएंनगर पथ पल भर में सूना हो गया
जवाब देंहटाएंवायु का आवेग दूना हो गया
रह गए बस पेड़ के सूखे तने
मेघ हैं आकाश में ...क्या खूूूब लिखा है नासवा जी
आभार जी बहुत बहुत ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना गुरुवार १८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
आभार श्वेता जी ...
हटाएंचाय भी तैयार है गरमा-गरम
जवाब देंहटाएंउफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
हैं आकाश में ...
पहली बारिश और मौसम के मिजाज का खूबसूरत बिम्ब....
वाह!!!
हमेशा की तरह लाजवाब रचना...
आभार सुधा जी ...
हटाएंमेघ, बरसात ... से जुड़े नए आयाम वाले बिम्ब महाशय ... मन भींगाता, मुँह का स्वाद बढ़ाती रचना ... बस एक बात (अन्यथा ना लें तो) ... जलेबी गर्म-गर्म तो कुरमुरी ही खाने में अच्छी लगती है.... नरमा-नरम तो ठंडा होने पर हो जाती है ... शायद ...☺
जवाब देंहटाएंजी सुबोध जी ... आपका कहना ठीक है ... पर क्योंकि चाय में गरमा गरम प्रयोग कर लिया तो इतनी छूट ले ली ... क्योंकि कई लोग नरम जलेबी भी ले लेते हैं ...
हटाएंआपका लिखने का अंदाज बिल्कुल अलग और मनहर है नासा जी बहुत सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंदिन में जैसे रात का आभास है
पहली बारिश का नया एहसास है
मुक्त हो चातक लगे हैं चीखने
मेघ हैं आकाश में ...
आभार है आपका बहुत बहुत ...
हटाएंएक मस्त सी रचना.... बारिश के मौसम की अपनी ही अलग खुशबू होती है और अपना अलग स्वाद भी !
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मीना जी आपका ...
हटाएंBahut Sundar
जवाब देंहटाएंचाय भी तैयार है गरमा-गरम
जवाब देंहटाएंउफ़ जलेबी हाय क्या नरमा-नरम
मिर्च आलू के पकोड़े भी बने
हैं आकाश में ...हाहाहा ....पहली बारिश का असली आनंद तो इन्हीं शब्दों में है