आँखों से निकली बातें
यहाँ वहाँ बिखरी बातें
अफवाहें, झूठी, सच्ची
फ़ैल गईं कितनी बातें
मुंह
से निकली खैर नही
जितने मुंह उतनी बातें
फिरती हैं आवारा सी
कुछ बस्ती ,बस्ती बातें
बातों
को जो ले बैठा
सुलझें ना उसकी बातें
जीवन, मृत्यू, सब किस्मत
बाकी बस रहती बातें
कानों, कानों, फुस, फुस, फुस
बिन पैरों चलती बातें
लाजवाब।
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी
हटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंकानों, कानों, फुस, फुस, फुस
बिन पैरों चलती बातें ... बहुत खूब!!!
शुक्रिया विश्वमोहन जी
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार
हटाएंकानों, कानों, फुस, फुस, फुस
जवाब देंहटाएंबिन पैरों चलती बातें
बहुत बढ़िया तरीके से बात कही गई है.
आभार सर
हटाएंइसकी बातें, उसकी बातें
जवाब देंहटाएंकुछ तेरी कुछ मेरी बातें
इन बातों पर किया भरोसा
तो ले डूबेंगी उड़ती बातें
बातों ही बातों में जिन्दगीं की हकीकत बयाँ करती रचना..
जी शुक्रिया ...
हटाएंबाते बिन पैरों चलती हैं इसलिए ही तो इतनी फैलती हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, नासवा जी।
आभार ज्योति जी
हटाएंलाजवाब रचना सरपट दौड़ती मनभावन।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी
हटाएंवाह ! छोटी सी रचना में बहुत कुछ कह दिया। बातें बिन पैरों चलती हैं और बिना पंख के उड़ती हैं। अंदाज़े बयां बहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी
हटाएंगहरे अर्थ लिए बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आपका
हटाएंमुंह से निकली खैर नही
जवाब देंहटाएंजितने मुंह उतनी बातें
बातें ही बातें ....
वाह!!!
बिन पैरों चलती बातें
सटीक सुन्दर लाजवाब रचना।
आ बार सुधा जी
हटाएंबहुत ही सुन्दर सर
जवाब देंहटाएंसादर
शुक्रिया जी
हटाएंफिरती हैं आवारा सी
जवाब देंहटाएंकुछ बस्ती ,बस्ती बातें
वाह...,लाजवाब ।
आभार मीना जी
हटाएंवाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया
हटाएंखूबसूरत है...आपकी इन बातों का सफ़र... वाह क्या बात है...👍👍👍
जवाब देंहटाएंआभार आपका सर
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंजी शुक्रिया
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना 10 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत आभार pammi जी
हटाएंवाह वाह..शानदार गज़ल..क्या कहने वाह👌
जवाब देंहटाएंआभार श्वेता जी
हटाएंवाह...छोटी बहर की बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया कैलाश जी
हटाएंवाह,बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया जी ...
हटाएंबातों भरी ख़ूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत आभार प्रीती जी ...
हटाएंअफवाहें, झूठी, सच्ची
जवाब देंहटाएंफ़ैल गईं कितनी बातें
मुंह से निकली खैर नही
जितने मुंह उतनी बातें ....वाह धारदार अलफ़ाज़ !! दिगंबर सर , यात्रा पर था ...और मेरी ज्यादातर यात्राएं ऐसी होती हैं जहाँ सूखी रोटी मिलना भी मुश्किल होता है ...फ़ोन के नेटवर्क का तो सवाल ही नहीं इसलिए ...लौटकर आपकी सारी गजलें / कविताएं पढता हूँ ...एक नया जोश ...नयी चेतना भर देती हैं आपकी रचनाएं जिंदगी की कशमकश में