स्वप्न मेरे: बिन पैरों चलती बातें

सोमवार, 8 जुलाई 2019

बिन पैरों चलती बातें

आँखों से निकली बातें
यहाँ  वहाँ बिखरी बातें

अफवाहें, झूठी, सच्ची 
फ़ैल गईं कितनी बातें

मुंह से निकली खैर नही  
जितने  मुंह उतनी बातें 

फिरती हैं आवारा सी
कुछ बस्ती ,बस्ती बातें  

बातों को जो ले बैठा 
सुलझें ना उसकी बातें 

जीवन, मृत्यू, सब किस्मत
बाकी बस रहती बातें  

कानों, कानों, फुस, फुस, फुस
बिन पैरों चलती बातें  

41 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!
    कानों, कानों, फुस, फुस, फुस
    बिन पैरों चलती बातें ... बहुत खूब!!!

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (09-07-2019) को "जुमले और जमात" (चर्चा अंक- 3391) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. कानों, कानों, फुस, फुस, फुस
    बिन पैरों चलती बातें

    बहुत बढ़िया तरीके से बात कही गई है.

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  4. इसकी बातें, उसकी बातें
    कुछ तेरी कुछ मेरी बातें

    इन बातों पर किया भरोसा
    तो ले डूबेंगी उड़ती बातें

    बातों ही बातों में जिन्दगीं की हकीकत बयाँ करती रचना..

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  5. बाते बिन पैरों चलती हैं इसलिए ही तो इतनी फैलती हैं।
    बहुत सुंदर रचना, नासवा जी।

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  6. लाजवाब रचना सरपट दौड़ती मनभावन।

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  7. वाह ! छोटी सी रचना में बहुत कुछ कह दिया। बातें बिन पैरों चलती हैं और बिना पंख के उड़ती हैं। अंदाज़े बयां बहुत बढ़िया।

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  8. गहरे अर्थ लिए बेहतरीन प्रस्तुति

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  9. मुंह से निकली खैर नही
    जितने मुंह उतनी बातें
    बातें ही बातें ....
    वाह!!!
    बिन पैरों चलती बातें
    सटीक सुन्दर लाजवाब रचना।

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  10. फिरती हैं आवारा सी
    कुछ बस्ती ,बस्ती बातें
    वाह...,लाजवाब ।

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  11. खूबसूरत है...आपकी इन बातों का सफ़र... वाह क्या बात है...👍👍👍

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  12. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 10 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  13. वाह वाह..शानदार गज़ल..क्या कहने वाह👌

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  14. वाह...छोटी बहर की बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल।

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  15. अफवाहें, झूठी, सच्ची
    फ़ैल गईं कितनी बातें

    मुंह से निकली खैर नही
    जितने मुंह उतनी बातें ....वाह धारदार अलफ़ाज़ !! दिगंबर सर , यात्रा पर था ...और मेरी ज्यादातर यात्राएं ऐसी होती हैं जहाँ सूखी रोटी मिलना भी मुश्किल होता है ...फ़ोन के नेटवर्क का तो सवाल ही नहीं इसलिए ...लौटकर आपकी सारी गजलें / कविताएं पढता हूँ ...एक नया जोश ...नयी चेतना भर देती हैं आपकी रचनाएं जिंदगी की कशमकश में

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है