धड़ धड़
धड़ बरसा सावन
भीगे, फिसले कितने तन
घास
उगी सूखे आँगन
प्यास
बुझी ओ बंजर धरती तृप्त हुई
नीरस
जीवन से तुलसी भी मुक्त हुई,
झींगुर
की गूँजे गुंजन
घास उगी ...
घास
उगी वन औ उपवन
गीले
सूखे चहल पहल कुछ तेज हुई
हरा
बिछौना कोमल तन की सेज हुई
दृश्य
है कितना मन-भावन
घास उगी ...
हरियाया
है जीवन-धन
कुछ
काँटे भी कुछ फूलों के साथ उगे
आते
जाते इसके उसके पाँव चुभे
सिहर
गया डर से तन मन
घास उगी ...
बहुत कुछ उग गया है। सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी ...
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंआभार Anuradha जी
हटाएंबहुत खूबसूरत.. बारिश के साथ प्रकृति परिवर्तन का खूबसूरत शब्दचित्र ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मीना जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी
हटाएंबहुत सुन्दर सर सावन की महक महका रही है
जवाब देंहटाएंसादर
शुक्रिया अनिता जी ...
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 6 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार रविन्द्र जी ...
हटाएंबहुत सहज-स्वाभाविक पुलकभरा चित्रण.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ... अच्छा लगा लम्बे समय बाद आपको ब्लॉग पर सक्रीय देख कर ...
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन नये भारत का उदय - अनुच्छेद 370 और 35A खत्म - ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंबहुत खूब , आदरनीय दिगम्बर जी ! सावन की महिमा गाता मधुर गान बहुत मनभावन है | सरस शब्दावली !! फूलों के साथ कांटे भी वाह ! कवि दृष्टि से कुछ भी छुप पाना संभव नहीं | सादर
जवाब देंहटाएंसावन हर पल को महत्वपूर्ण बना देता है ...
हटाएंआभार आपका ...
ख़ुशी में भी पीड़ा का अहसास भूलना नहीं चाहिए. प्रकृति यही सिखाती है हमे. आपकी कविता भी इस सच को बड़े करीने से सवांर कर पेश कर रही है. लाजवाब.
जवाब देंहटाएंबहुत आभर रोहितास जी ...
हटाएंबहुत सुंदर सुहानी कविता.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंवर्षा ऋतु का मनमोहक चित्रण
जवाब देंहटाएंबहुत आभार है आपका ...
हटाएंवाह, सच में ऐसी रचनाएं आपकी ही कलम से निकल सकती हैं बहुत बढिया दिगम्बर जी
जवाब देंहटाएंआभार संजय जी ...
हटाएंहरियाया है जीवन-धन
जवाब देंहटाएंकुछ काँटे भी कुछ फूलों के साथ उगे
आते जाते इसके उसके पाँव चुभे
सिहर गया डर से तन मन
घास उगी ...बहुत बेहतरीन
शुक्रिया योगी जी ...
हटाएं