गीत प्रेम के गाता है हर दम
जाने क्यों आँखें रहती नम नम
नाच मयूरी हो पागल
अम्बर पे छाए बादल
बरसो मेघा रे पल पल
बारिश की बूँदें करतीं छम
छम
जाने क्यों आँखें ...
सबके अपने अपने गम
कुछ के ज्यादा कुछ के कम
सह लेता है जिसमें दम
सुन आँसूं पलकों के पीछे थम
जाने क्यों आँखें ...
जाने क्यों आँखें ...
हिस्से में उतना सुख दुःख
जीवन का जैसा है रुख
फिर भी सब कहते हैं सुख
उनके हिस्से है आया कम कम
जाने क्यों आँखें ...
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-08-2019) को "सुख की भोर" (चर्चा अंक- 3433) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी ...
हटाएंअच्छी कविता हमेशा की तरह .
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अरुण जी ...
हटाएंमनोहर अभिव्यक्ति, बधाई
जवाब देंहटाएंआभार शालिनी जी ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम
बहुत सुन्दर कविता... ग़जल की तरह कविता के भाव भी निर्झर की तरह बहते हैं आपकी लेखनी से ।
आभार मीना जी ...
हटाएंआभार मीना जी ...
जवाब देंहटाएंहिस्से में उतना सुख दुःख
जवाब देंहटाएंजीवन का जैसा है रुख
फिर भी सब कहते हैं सुख
उनके हिस्से है आया कम कम
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, दिगम्बर भाई।
बहुत शुक्रिया ज्योति जी ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 19 अगस्त 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत आभार श्वेता जी ...
हटाएंसबके हिस्से के अपने-अपने सुख-दुःख हैं...लेकिन मन मयूर तो छोटी-छोटी खुशियों पर नाच लेता है...बेहतरीन रचना...👌👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर ...
हटाएंहमेशा की तरह लाजवाब।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 19/08/2019 की बुलेटिन, "इनाम में घोड़ा लेंगे या सेव - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंआभार शिवम् जी ...
हटाएंबहुत सार्थक और सारगर्भित रचना। बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआभार आपका कैलाश जी ...
हटाएंबहुत ही खूबसूरत हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया अजय जी ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम..... जीवन का पूरा निचोड़
वाह बहुत खूबसूरत गीत.
आभार है आपका सुधा जी ...
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 20 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया रविन्द्र जी ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम
सह लेता है जिसमें दम
सुन आँसूं पलकों के पीछे थम
जाने क्यों आँखें ...
बहुत ही सुन्दर...लाजवाब सृजन
वाह!!!
आभार सुधा जी ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम
सह लेता है जिसमें दम
सुन आँसूं पलकों के पीछे थम
जाने क्यों आँखें ... वाहहहह बेहतरीन प्रस्तुति
आभार अनुराधा जी ...
हटाएंगीत प्रेम के गाता है हर दम
जवाब देंहटाएंजाने क्यों आँखें रहती नम नम,...आ जा मेरे भाई मेरे पास...कुछ देर गम बाँट ले अपना..फिर खुशी खुशी लौट जाना... !
मन तो बहुत करता है समीर भाई की डूब जाओ ... छोड़ दो सब कुछ पर फिर ...
हटाएंबहुत समय हो गया मुलाक़ात हुए ... सबब बनाओ मिलने का अब ...
सुन्दर भाव अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंवाह!!दिगंबर जी ,खूबसूरत भावाभिव्यक्ति !सही कहा आपने ,सभी को अपने हिस्से का सुख दूसरों से कम ही लगता है ...मानव प्रकृति ..।
जवाब देंहटाएंजी सहमत हूँ आपकी बात से ... यही जीवन है ...
हटाएंवाह.. बहुत खूबसूरत कविता.. भावनाओं को उकेरती।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
आभार पम्मी जी ...
हटाएंबहुत सुंदर सृजन आंखें क्यों है नमः-नम।
जवाब देंहटाएंजिंदगी के प्रति हर व्यक्ति की सटीक यही दृष्टि कि उसके हिस्से खुशियां है कम ज्यादा है ग़म।
अनुपम।
जी सही कह है आपने ...
हटाएंआभार आपका ...
वाह !लाजबाज सर
जवाब देंहटाएंसादर
आभार अनीता जी ...
हटाएंजिसके अंतर में प्रेम का दरिया बहता हो उसकी आँखें नम नहीं होंगी तो भला किसकी होंगी..सुख-दुःख तो आँख मिचौली खेलते हैं, एक छुपता है तो दूसरा उसे ढूँढ़ता है, यदि दोनों साथ-साथ आ जाएँ तो खेल ही खत्म हो जाये...
जवाब देंहटाएंआपका कहना उचित है ... दोनों साथ नहीं आते जीवन में ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंशुक्रिया Onkar जी ...
हटाएंअपना दुःख सभी को पहाड़ सा लगता है लेकिन जो संवेदनशील होते हैं वे सबका दुःख अपना ही समझते हैं
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
बहुत आभार कविता जी ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम
सह लेता है जिसमें दम
सुन आँसूं पलकों के पीछे थम
जाने क्यों आँखें ...सदैव की तरह बहुत ही शानदार !
आभार योगी जी ...
हटाएंहिस्से में उतना सुख दुःख
जवाब देंहटाएंजीवन का जैसा है रुख
फिर भी सब कहते हैं सुख
बहुत कुछ न कहते हुए भी बहुत कुछ कह दिया इन शब्दों में ...लाजबाज
बहुत शुक्रिया संजय जी ...
हटाएंअनुपम सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंसबके अपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम... बहुत सुन्दर बात कही, जीवन का दर्शन बस चंद शब्दों मे ! हमेशा की तरह एक और सुन्दर और सार्थक रचना
बहुत आभार आपका मंजू जी ...
हटाएंअपने अपने गम
जवाब देंहटाएंकुछ के ज्यादा कुछ के कम
सह लेता है जिसमें दम
सुन आँसूं पलकों के पीछे थम
bahut hi khoobsurti se gham byan kr diyaa....ye baat bahut psnd aayi
bdhaayi rchnaa ke liye
बहुत शुक्रिया ...
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