मूल मन्त्र इस श्रृष्टि का ये जाना है
खो कर ही इस जीवन में कुछ
पाना है
नव कोंपल उस
पल पेड़ों पर आते हैं
पात पुरातन जड़
से जब झड़ जाते हैं
जैविक घटकों
में हैं ऐसे जीवाणू
मिट कर खुद जो
दो बन कर मुस्काते हैं
दंश नहीं मानो,
खोना अवसर समझो
यही शाश्वत
सत्य चिरंतन माना है
खो कर ही इस
जीवन में ...
बचपन जाता है
यौवन के उद्गम पर
पुष्प नष्ट होता
है फल के आगम पर
छूटेंगे रिश्ते,
नाते, संघी, साथी
तभी मिलेगा
उच्च शिखर अपने दम पर
कुदरत भी बोले-बिन,
बोले गहरा सच
तम का मिट
जाना ही सूरज आना है
खो कर ही इस
जीवन में ...
कुछ रिश्ते टूटेंगे
नए बनेंगे जब
समय मात्र
होगा बन्धन छूटेंगे जब
खोना-पाना, मोह
प्रेम दुःख का दर्पण
सत्य सामने
आएगा सोचेंगे जब
दुनिया
रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग
में निश्चित जाना है
खो कर ही इस
जीवन में ...
वाह !बेहतरीन सृजन आदरणीय
जवाब देंहटाएंज़िंदगी की समीक्षा यथार्थ में सिमटी जीवन के अनुभव से पगी एक बेहतरीन सृजन बन उभरी है लाज़वाब
बचपन जाता है यौवन के उद्गम पर
पुष्प नष्ट होता है फल के आगम पर
छूटेंगे रिश्ते, नाते, संघी, साथी
तभी मिलेगा उच्च शिखर अपने दम पर
कुदरत भी बोले-बिन, बोले गहरा सच
तम का मिट जाना ही सूरज आना है
खो कर ही इस जीवन में ...वाह !
आभार आपका अनीता जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (09-10-2019) को "विजय का पर्व" (चर्चा अंक- 3483) पर भी होगी। --
जवाब देंहटाएंसूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--विजयादशमी कीहार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएंजीवन की सच्चाई को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया हैं आपने, दिगम्बर भाई। दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना।
हटाएंआभार ज्योति जी ...
हटाएंदंश नहीं मानो, खोना अवसर समझो
जवाब देंहटाएंयही शाश्वत सत्य चिरंतन माना है
खो कर ही इस जीवन में ...
बहुत सुन्दर शब्दों में शाश्वतता का संदेश देता अति उत्तम सृजन ।
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएँ नासवा जी ।
आभार मीना जी ... आपको भी विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंकुछ देर तक याद रखना है
जवाब देंहटाएंकुछ देर में भूल भी जाना है
लाजवाब।
भूलेंगे तभी दुबारा याद करेंगे ... आपको विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंबहुत सुंदर सार्थक और शाश्र्वत रचना ।
जवाब देंहटाएंप्रकृति का सच है आना और जाना आपने बहुत सुंदरता से उल्लेख किया , काव्यात्मक प्रस्तुति।
आभार आपका ... आपको विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 08 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना 9 अक्टूबर 2019 के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
बहुत आभार पम्मी जी ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंकुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
जवाब देंहटाएंसमय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब
दुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग में निश्चित जाना है
खो कर ही इस जीवन में ...
जीवन का सारांश लिख डाला है आपने इन पंक्तियों में। विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं ।
आभार आपका ... आपको भी विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंजैविक घटकों में हैं ऐसे जीवाणू
जवाब देंहटाएंमिट कर खुद जो दो बन कर मुस्काते हैं
दंश नहीं मानो, खोना अवसर समझो
यही शाश्वत सत्य चिरंतन माना है
बहुत सुंदर. नई आशाएँ जगाती और प्रेरक कविता.
जी शुक्रिया .... आपको विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंवाह! शानदार पंक्तियाँ सर जी।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ...
हटाएंजीवन के सत्य की शानदार रचना
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर
हटाएंकुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
जवाब देंहटाएंसमय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
...नि:शब्द कर दिया आपकी इस कविता ने
आभार संजय जी ...
हटाएंकुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
जवाब देंहटाएंसमय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब
बेहतरीन गीत
बधाई और शुभकामनाएं 🙏
बहुत आभार ... आपको भी विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंदुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
जवाब देंहटाएंआना जिस पल जग में निश्चित जाना है
जीवन का सारा सारांश समेटे हुए ...
बहुत ही सुंदर.. रचना ,सादर नमन
आभार आपका कामिनी जी ... आपको विजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
हटाएंदुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
जवाब देंहटाएंआना जिस पल जग में निश्चित जाना है...वाह!ज़िन्दगी के सच का यहीं तराना है!!!
जी ... बहुत आभार ...
हटाएंविजय दशमी की हार्दिक बधाई ...
बहुत खूब सर ! हर एक पंक्ति मन पर गहरी छाप छोड़ती हुई, एक संग्रहणीय रचना, एक अनमोल कृति !!!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार मीना जी ...
हटाएंकुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
जवाब देंहटाएंसमय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
apki rchnaa hmeshaa aise hoti hain jo har koi apni neezi zindgi me rojmrraa mehsus kr rhaa hota he....
sateek..sarthak aur sabse praabhshaali baat ..bhaasha shaili
bahut bahut bdhaayi apko
आभार जोया जी ...
हटाएंयथार्थ को प्रगट करती हुई कविता। सचमुच जीवन दो दिन का मेला है।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार गोपाल जी ...
हटाएंनव निर्माण निरंतर प्रक्रिया है प्रकृति की
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जी सच कह रही हैं आप ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
वाह! बढ़िया... सिखलाती समझाती रचना I जीवन से मिलवाती रचना I
जवाब देंहटाएंआभार नीरज जी
हटाएंएक जायेगा तो दूसरा आएगा.
जवाब देंहटाएंकिसी का जाना नींव है आने वाले की.
गहन अध्ययन का परिणाम, सुंदर रचना.
मेरी नई पोस्ट पर स्वागत है आपका 👉🏼 ख़ुदा से आगे
शुक्रिया रोहितास जी ।।।
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभर आपका ...
हटाएंदुनियाँ रैन बसेरा है, बहुत सुंदर, सादर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार राकेश जी ...
हटाएंकुछ रिश्ते टूटेंगे नए बनेंगे जब
जवाब देंहटाएंसमय मात्र होगा बन्धन छूटेंगे जब
खोना-पाना, मोह प्रेम दुःख का दर्पण
सत्य सामने आएगा सोचेंगे जब
दुनिया रैन-बसेरा, माया, लीला है
आना जिस पल जग में निश्चित जाना है
खो कर ही इस जीवन में ...मन के कोने कोने को महका देते हैं आपके शब्द ! बहुत ही खूबसूरत शब्द पिरोये हैं आपने दिगंबर जी