लिखे थे दो तभी
तो चार दाने हाथ ना आए
बहुत डूबे
समुन्दर में खज़ाने हाथ ना आए
गिरे थे हम भी
जैसे लोग सब गिरते हैं राहों में
यही है फ़र्क बस
हमको उठाने हाथ ना आए
रकीबों ने तो
सारा मैल दिल से साफ़ कर डाला
समझते थे जिन्हें
अपना मिलाने हाथ ना आए
सभी बचपन की
गलियों में गुज़र कर देख आया हूँ
कई किस्से मिले
साथी पुराने हाथ ना आए
इबादत घर जहाँ इन्सानियत
की बात होनी थी
वहाँ इक नीव का
पत्थर टिकाने हाथ ना आए
सितारे हद में थे
मुमकिन उन्हें मैं तोड़ भी लेता
मुझे दो इन्च भी
ऊँचा उठाने हाथ ना आए
यही फुट और दो
फुट फाँसला साहिल से बाकी था
हमारी नाव को
धक्का लगाने हाथ ना आए