आने वाली किताब “कोशिश ...
माँ को समेटने की” में सिमटा एक पन्ना ...
तमाम कोशिशों के बावजूद
उस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया
तूने तो देखा था
चुपचाप खड़ी जो हो गई थीं
मेरे साथ
फोटो-फ्रेम से बाहर निकल के
एक कील भी नहीं ठोक पाया
था
सूनी सपाट दीवार पे
हालांकि हाथ चलने से मना
नहीं कर रहे थे
शायद दिमाग भी साथ दे रहा
था
पर मन ...
वो तो उतारू था विद्रोह
पे
ओर मैं ....
मैं भी समझ नहीं पाया
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट
को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी
में
तुम से बेहतर मन का द्वन्द कौन समझ सकता है माँ ...
(दिसंबर २८, २०१२)
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
मैं भी समझ नहीं पाया
जवाब देंहटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
तुमसे बेहतर मन का द्वन्द कौन समझ सकता है माँ...
माँ से इतना मर्मस्पर्शी संवाद.. समेट लिया है भावों में आपने माँ को । संग्रहणीय रचना ।
आभार आपका ...
हटाएंBehad shandar aur lajwaab.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 11 नवम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंतमाम कोशिशों के बावजूद
जवाब देंहटाएंउस दीवार पे
तेरी तस्वीर नहीं लगा पाया
बेहद हृदयस्पर्शी रचना
आभार अनुराधा जी ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (12-11-2019) को "आज नहाओ मित्र" (चर्चा अंक- 3517) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएंदिगम्बर भाई,
जवाब देंहटाएंमैं भी समझ नहीं पाया कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं फ्रेम की चारदिवारी में तुम से बेहतर मन का द्वन्द कौन समझ सकता है माँ ...
माँ के प्रति अपने प्यार को बहुत ही सुंदर शब्दों में व्यक्त किया हैं आपने।
बहत आभार ...
हटाएंअदभुद
जवाब देंहटाएंआभार सर ...
हटाएंनिशब्द! कुछ ही शब्दों में इतनी अथाह बात कहना , बेहतरीन/बेमिसाल।
जवाब देंहटाएंमन को छू गई हर पंक्ति।
आभार आपका ...
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण पक्तियां।
जवाब देंहटाएंओकी किताब के लिए शुभकामनाएं, हमे भी link दीजियेगा आर्डर करने का।
आभार
कैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
फ्रेम की चारदिवारी में
आभार ज़फर साहब ...
हटाएंकैसे चलती फिरती मुस्कुराहट को कैद कर दूं
जवाब देंहटाएंफ्रेम की चारदिवारी में
दुनिया का सबसे मुश्किल काम हैं ये ,हृदयस्पर्शी रचना ,शायद इसे रचना कहना भी उचित ना हो ये तो मन के अछूते भाव हैं ,सादर नमस्कार आपको
आभार कामिनी जी आपका ...
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 12 नवंबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद! ,
बहुत आभर आपका श्वेता जी ...
हटाएंप्रभावशाली
जवाब देंहटाएंबहुत आभार राकेश जी
हटाएंशब्द कहाँ से लाये कोई उस रचना की सराहना में जिसमे माँ को समेटने की कोशिश हो वो माँ जो अब तक समेटे है हमारे सारे दुःख सुख। .अपने दुःख में भी हमारे सुख की कामना समेटे
जवाब देंहटाएंकहाँ से प्रयोग करे ऐसे अलंका उस रचना के लिए जिसमे माँ को समेटने की कोशिश हो
हम्म ...मन को छू गई हर पंक्ति
बहुत बहुत आभार
जी 🙏🙏🙏 ज़ोया जी ...
हटाएंमाँ हरदम साथ है तो उसे फोटो के रूप मे दीवार पर क्यों टाँगा जाए.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव.
आभार सर
हटाएंमाँ को समेटने की कोशिश बेहतरीन लिखा है, पढ़कर आननद आ गया।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार संजय जी
हटाएंआदरणीय आपकी रचना"यादों की चासनी" पर टिप्पणी करने में असफल हो रही हूँ। आपकी श्रेष्ठ के लिए आप यहीं पर बधाई स्वीकार करें। बहुत ही बेहतरीन रचना है आपकी।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनुराधा जी ...
हटाएंआपकी लेखनी बेहद संवेदनशील है
जवाब देंहटाएंनमन
बहुत आभार आपका विभा जी ...
हटाएंशब्दों ने दिल जीत लिया और विषय बहुत ही अच्छा चुना है आपने
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंकवि की माँ होना शायद दुनिया का सबसे बड़ा सौभाग्य है |माँ है तो संवाद है| नहीं है तो हर पल मन का वार्तालाप होता है माँ से | वो भी सबके होते माँ के ही अवलंबन का मोह कितना अच्छा लहता है --
जवाब देंहटाएंतुम से बेहतर मन का द्वन्द कौन समझ सकता है माँ .
सचमुच माँ एक ही होती है जिसे जितना समेटना चाहे कोई समेट नहीं पाता | इतनी विराट हस्ती जो होती है माँ की | बहुत मार्मिक जीवंत चित्र उकेरती रचना के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनायें दिगम्बर जी | माँ की यादों को सहेजने की आपकी ये कोशिश सफल हो मेरी यही दुआ है | सादर --
ये कोशिश ख़ुद को ही समेटने की है ... माँ के विशाल आभा को समेटना मुमकिन कहाँ ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
मां तो परिवार की आत्मा होती है ,और मां के बारे में लिखना, जितना लिखे उतना ही कम पड़ जाती है. अति सुंदर रचनाएं हैं आपका सर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार माया जी ...
हटाएंपने सच कहा है ... माँ को समेटना आसन नहीं है शब्दों में ... उसे बस जिया जा सकता है ...