आने वाली किताब “कोशिश ... माँ को समेटने की” का एक अन्श ...
अक्सर जब बेटियाँ बड़ी होती हैं, धीरे धीरे हर अच्छे बुरे को समझने लगती हैं ... गुज़रते समय के साथ जाने अनजाने ही, पिता के लिए वो उसकी माँ का रूप बन कर सामने आ जाती हैं ...
ऐसे ही कुछ लम्हे, कुछ किस्से रोज़-मर्रा के जीवन में भी आते हैं जो किसी भी अपने की यादों को ताज़ा कर जाते हैं .... कुछ तो निहित है इस प्राकृति में, इस कायनात में ...
अक्सर जब बेटियाँ बड़ी होती हैं, धीरे धीरे हर अच्छे बुरे को समझने लगती हैं ... गुज़रते समय के साथ जाने अनजाने ही, पिता के लिए वो उसकी माँ का रूप बन कर सामने आ जाती हैं ...
ऐसे ही कुछ लम्हे, कुछ किस्से रोज़-मर्रा के जीवन में भी आते हैं जो किसी भी अपने की यादों को ताज़ा कर जाते हैं .... कुछ तो निहित है इस प्राकृति में, इस कायनात में ...
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...
#कोशिश_माँ_को_समेटने_की
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
जवाब देंहटाएंबड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
-- वाह! जीवंत चित्र उपस्थित कर दिया आपने, लगा जैसे अपनी ही बात हो
आने वाली किताब “कोशिश ... माँ को समेटने की” के प्रकाशन हेतु हार्दिक शुभकामनाएं!
बहुत आभार आपका कविता जी ...
हटाएंमैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
जवाब देंहटाएंबड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...
स्वभाव ही कुदरत ऐसा देती है लड़कियों को ..., देखभाल करना ..फिक्र जताना ..उनकी आदत में शुमार होता है ।बहुत प्रभावी और सशक्त लेखन ।
बहुत आभार मीना जी ...
हटाएंअक्सर जब बेटियाँ बड़ी होती हैं, गुज़रते समय के साथ जाने अनजाने ही, पिता के लिए वो उसकी माँ का रूप बन कर सामने आ जाती हैं ... बिल्कुल वास्तविक चित्रण किया हैं आपने, दिगम्बर भाई।
जवाब देंहटाएंजी एक सत्य जिसका अनुभव किया है मैंने ...
हटाएंआभार आपका ...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (१९ -११ -२०१९ ) को "फूटनीति का रंग" (चर्चा अंक-३५२४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
बहुत आभार अनीता जी ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंलाजवाब
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी ...
हटाएंबहुत सुन्दर मित्र ! घर-घर की कहनी कह दी आपने !
जवाब देंहटाएंमेरी माँ तो नहीं रहीं अब मेरी दोनों बेटियां मुझ से बहुत दूर बैठकर मुझ पर हुक्म चलाती हैं - 'पापा ये कीजिए और पापा ये मत कीजिए के अलावा उनकी बातों में कम ही शब्द होते हैं. पर न जाने क्यों, उनके ऐसे अत्याचार मुझे अच्छे लगते हैं.
सही कह रहे हैं आप ... मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल है ...
हटाएंपर अब दिल भी चाहता है ऐसा हो...
बहुत आभर आपका ...
बेटी बचपन से ही लाड़ लड़ाना सीख जाती है ,कभी गोद में लिटाल कर कभी थपक कर ....
जवाब देंहटाएंजी बिलकुल ...
हटाएंमेरी बेटियों का ऐसा ही हाल है अब ...
बहुत आभार आपका ...
पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
जवाब देंहटाएंबड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है
.......बहुत खूब कहा है इन पंक्तियों में
शुक्रिया संजय जी ...
हटाएंबहुत बढ़िया! किताब के लिए बहुत शुभकामनायें I
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीरज जी ...
हटाएंपुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया. शुभकामनाएँ.
बहुत आभार आपका ...
हटाएंनमन ...
जवाब देंहटाएंआभार सतीश जी ...
हटाएंबेटियां माँ का ही प्रतिरूप होती हैं .
जवाब देंहटाएंपुस्तक के प्रकाशन पर शुभकामानाएँ .
बहुत आभार महेंद्र जी ...
हटाएं"दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
जवाब देंहटाएंतेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ..."
क्या बात है साहब, जबरदस्त
शुक्रिया राकेश जी ...
हटाएंअरे वाह ! आपकी किताब आ रही है .. बहुत बहुत बधाई और अनंत शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर जी , सनातन धर्म में पुनर्जन्म को बहुत महत्व दिया गया है साथ में आम तौर पर कहा जाता है , हर इंसान अपने परिवार के गुणों को मूर्त या अमूर्त रूप में अपने भीतर समाहित किये रहता है | माँ के गुण यदि बिटिया में दिखाई पड़ें तो इससे बढ़कर जीवन का अवलंबन क्या ? यही है अनन्य आत्मीयता की पराकाष्ठा !अत्यंत सुंदर , सुघढ़ और नितांत अपनी तरह की एक रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बिटिया जो दादी के गुणों से भरी को ढेरों स्नेह और शुभकामनायें ||
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