स्वप्न मेरे: एक पन्ना - कोशिश, माँ को समेटने की

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

एक पन्ना - कोशिश, माँ को समेटने की


आज अचानक ही उस दिन की याद हो आई जैसे मेरी अपनी फिल्म चल रही हो और मैं दूर खड़ा उसे देख रहा हूँ. दुबई से जॉब का मैसेज आया था और अपनी ही धुन में इतना खुश था, की समझ ही नहीं पाया तू क्या सोचने लगी. लगा तो था की तू उदास है, पर शायद देख नहीं सका ... 

मेरे लिए खुशी का दिन
ओर तुम्हारे लिए ...

सालों बाद जब पहली बार घर की देहरी से बाहर निकला
समझ नहीं पाया था तुम्हारी उदासी का कारण

हालाँकि तुम रोक लेतीं तो शायद रुक भी जाता
या शायद नहीं भी रुकता
पर मुझे याद है तुमने रोका नहीं था
(वैसे व्यक्तिगत अनुभव से देर बाद समझ आया,
माँ बाप बच्चों की उड़ान में रोड़ा नहीं डालते)

सच कहूँ तो उस दिन के बाद से 
अचानक यादों का सैलाब सा उमड़ आया था ज़हन में
गुज़रे पल अनायास ही दस्तक देने लगे थे 
लम्हे फाँस बनके अटकने लगे थे
जो अनजाने ही जिए, सबके ओर तेरे साथ

भविष्य के सपनों पर कब अतीत की यादें हावी हो गईं
पता नहीं चला 

खुशी के साथ चुपके से उदासी कैसे आ जाती है
तब ही समझ सका था मैं
जानता हूँ वापस लौटना आसान था
पर खुद-गर्जी ... या कुछ ओर
बारहाल ... लौट नहीं पाया उस दिन से

आज जब लौटना चाहता हूं
तो लगता है देर हो गई है
ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहाँ, माँ ...

#कोशिश_माँ_को_समेटने_की 

25 टिप्‍पणियां:

  1. खुशी के साथ चुपके से उदासी कैसे आ जाती है
    तब ही समझ सका था मैं
    जानता हूँ वापस लौटना आसान था
    पर खुद-गर्जी ... या कुछ ओर
    मंजिल पाने की चाह में निकल तो पड़ते हैं पर ये सफलता की खुशी कितनी क्षणिक होती है
    माँ से दूर होने पर पता चलता है कि सारी मंजिलेंं/सफलताएं तो माँ के चरणों में थी काश कभी बड़े ही न हुए होते...
    बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन ।

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  2. मनोवैज्ञानिक धरातल पर उकेरा हृदयस्पर्शी सृजन..., नौकरी पर जाते बच्चों के मन में बड़प्पन और स्वालम्बन का स्वप्न करवटें ले रहा होता है और माँ के मन में ममत्व के साथ फिक्र और बिछोह का । बहुत ही उम्दा भावाभिव्यक्ति ।

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    1. मन के हालात को इस धरातल पर आपने समझा ... बहुत आभार ...

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (18-12-2019) को    "आओ बोयें कल के लिये आज कुछ इतिहास"   (चर्चा अंक-3553)     पर भी होगी। 
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
     --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 

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  4. एक कोशिश माँ को समेटने की पढ़ रही हूँ, प्रस्तावना से लेकर कुछ आरम्भिक कविताएं पढ़ी हैं अभी, माँ के साथ संतान का रिश्ता ऐसा ही होता है जैसा खुद के साथ, इसलिए बिन कहे ही उन आँखों की उदासी समझ ली जाती है, पर जीवन तो आगे बढ़ने का ही नाम है, माँ का आशीष हर हाल में साथ रहता है

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    1. जी आपकी बात से सहमत हूँ ... जीवन आगे बढ़ने का नाम है पर मन शायद मान नहीं पाता ...
      आपका बहुत बहुत आभार है की मेरी पुस्तक को आपने इस लायक समझा है ... 🙏🙏🙏

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  5. "माँ से बिछुड़ने का दुःख जीवन पर्यन्त बना रहता है और सवाल अंतर्मन को आजन्म यूँ ही बींधते रहते हैं"
    सादर

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  6. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना ....... ,.....18 दिसंबर 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. माँ के साथ बच्चे का जो संवेदनशील रिश्ता होता है , उसे शब्दों में ढालना बहुत मुश्किल है ...उस मार्मिकता का अहसास छू गया है। पुस्तक के लिए अनंत शुभकामनाएँ ।

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  8. बहुत आभार आदरणीय ... आपके दिल को शब्दों ने छुआ तो अच्छा लगा ...

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  9. समय रहते माँ को समझने वाले विरले होते हैं, बाद में समझ आता तो सोचते हैं कि अपने बच्चे समझ लेंगे, लेकिन ऐसा होता कहाँ हैं
    बहुत अच्छी यादगार प्रस्तुति
    पुस्तक प्रकाशन पर हार्दिक शुभकामनाएं!

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    1. जी सही कहा है आपने ... खुद के अनुकरण से समझाना ही आसन होता है ... आभार आपका ...

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  10. आज जब लौटना चाहता हूं
    तो लगता है देर हो गई है
    ओर अब तुम भी तो नहीं हो वहाँ, माँ ...सबकुछ कह दिया इन शब्दों ने

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है