स्वप्न मेरे: समीक्षा - कोशिश, माँ को समेटने की ...

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

समीक्षा - कोशिश, माँ को समेटने की ...


एक समीक्षा मेरी किताब कोशिश, माँ को समेटने की ... आदरणीय मीना जी की कलम से ... जो सन 2015 से अपने ब्लॉग "मंथन" पे लगातार लिख रही हैं ... 

https://www.shubhrvastravita.com/ 



'कोशिश माँ को समेटने की' एक संवेदनशील चार्टेड एकाउटेंट श्री दिगम्बर नासवा जी पुस्तक है, जो घर -परिवार से दूर विदेशों में प्रवास करते स्मृतियों में सदा माँ के समीप रहते हैं। लेखक के शब्दों में -

ये गुफ्तगू है मेरी , मेरे अपने साथ। आप कहेंगे अपने साथ क्यों…, माँ से क्यों नहीं ? ...मैं कहूँगा… माँ मुझसे अलग कहाँ… लम्बा समय माँ के साथ रहा… लम्बा समय नहीं भी रहा, पर उनसे दूर तो कभी भी नहीं रहा...

किताब को पढ़ते हुए कभी मन में एक डायरी पढ़ने जैसा सुखद अहसास जगता है तो कभी किसी आर्ट गैलरी में दुर्लभ पेंटिंग को देख मन को मिले सुकून जैसा। कुछ रचनाओं से पूर्व के घटनाक्रम का उल्लेख बरबस ही लेखक के साथ-साथ पाठक को भी उस दुनिया में ले जाता है जो लेखक के अनुभूत पलों की है। आज के भौतिकतावादी युग में  मानव हृदय की संवेदनशीलता को जागृत करने के लिए इस तरह की सृजनात्मकता मरूभूमि में सावन की रिमझिम के सुखद अहसास जैसी है।

माँ के लिए गीत एवं गज़ल पुस्तक को पूर्णता प्रदान करते हैं।

पुस्तक पृष्ठ दर पृष्ठ आगे बढ़ती है जिसमें लेखक की खुद से खुद की बातें हैं और बातों की धुरी 'माँ' है। सांसारिक नश्वरता को मानते हुए भी एक पुत्र हृदय उस नश्वरता को अमरता में बाँध देता है। उसकी एक बानगी की झलक -

पुराने गीत बेटी जब कभी भी गुनगुनाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा फिर तुम्हारी याद आती है

दबा कर होठ वो दाँतों तले जब बात है करती
तेरी आँखें तेरा ही रूप तेरी छाँव है लगती
मैं तुझसे क्या कहूँ होता है मेरे साथ ये अक्सर
बड़ी बेटी किसी भी बात पर जब डाँट जाती है
बड़ी शिद्दत से अम्मा ...

बोधि प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'कोशिश माँ को समेटने की' पुस्तक के लेखक श्री दिगम्बर नासवा हैं। पुस्तक का ISBN : 978 -93-89177-89-3 और मूल्य : ₹150/- है।

"मीना भारद्वाज" 

किताब अब अमेज़न पर उपलब्द्ध है ... आप इस लिंक से मँगवा सकते हैं ...

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर पुस्तक समीक्षा मीना दी।
    किताब के प्रति उत्सुक हूँ।

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  2. बहुत सुंदर, नासवा जी को हार्दिक बधाई

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  3. जी नमस्ते,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१४-१२-२०१९ ) को " पूस की ठिठुरती रात "(चर्चा अंक-३५४९) पर भी होगी।
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।

    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

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  4. सुंदर समीक्षा सखी मीना जी । उत्सुक हूँ पढने के लिए ।

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  5. बहुत ही सुंदर समीक्षा मीना जी ,दिगंबर जी की कविताओं में माँ के प्रति उनके अगाध स्नेह की झलक दिखती हैं। उनको इस पुस्तक के लिए हार्दिक शुभकामनाएं

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  6. आदरणीय दिगम्बर जी,
    पुस्तक के लिए हार्दिक शुभकामनाएँ ।सुन्दर समीक्षा।
    सादर ।


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  7. पुस्तक की समीक्षा मीना जी ने बेहतरीन अंदाज में की है ,जो पुस्तक के प्रति उत्सुकता बढ़ा रही है,
    नासवाजी एक शानदार रचनाकार हैं, साथ ही मीना जी की समीक्षा ने चार चांद लगा दिए हैं।
    बहुत बहुत बधाई ।समीक्षक और रचनाकार दोनों को ।

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  8. बहुत सुन्दर समीक्षा मीना जी. नासवा का लेखन मुझे हमेशा आकर्षित करता है. निश्चित तौर पर उनकी यह पुस्तक नए आयाम प्रस्तुत करेगी. नासवा जी को ढेरों शुभकामनाएँ 🎉🎁

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  9. शानदार समीक्षा मीना जी!नासवा जी की माँ के प्रति आसक्ति और प्रेम उनकी कविताओं से हमेशा छलकता है समीक्षा में लिखी गयी कविता ही इतनी हृदयस्पर्शी है कि आँखें नम हो जाती हैं और पुस्तक पढ़ने की लालसा और भी तीब्र....।
    बहुत बहुत बधाई नासवा जी!अनन्त शुभकामनाएं

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  10. अरे वाह ! किताब मार्केट में आ गयी , मंगाता हूँ ! बहुत बेहतरीन , शुभकामनायें सर ! बाकी किताब पढ़ने के बाद

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    1. बहुत आभार योगी जी ... आपकी प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा रहेगी ...

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है