क़रीब दो महीने हो गए, अभी तक देश की मिट्टी का आनंद ले रहा हूँ ... कुछ काम तो कुछ करोना का शोर ... उम्मीद है जल्दी ही मलेशिया लौटना होगा ... ब्लॉग पर लिखना भी शायद तभी नियमित हो सके ... तब तक एक ताज़ा गज़ल ...
कई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया
सड़क तन्हाई की दौड़ आया
शहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे
तेरी पगडंडियों से जोड़ आया
किसी की सिसकियों का दर्द ले कर
गुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया
तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया
वहाँ थे मोह के किरदार कितने
दुशाला प्रेम का मैं ओढ़ आया
भरे थे जेब में आँसू किसी के
समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती
हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया
#मद्धम_मद्धम
भरे थे जेब में आँसू किसी के
जवाब देंहटाएंसमुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
बहुत बढ़िया अशआर.
बहुत आभार आपका सर
हटाएंवही लाजवाब अन्दाज।
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी
हटाएंभरे थे जेब में आँसू किसी के
जवाब देंहटाएंसमुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती
हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, दिगम्बर भाई।
बहुत आभार ज्योति जी
हटाएंउम्दा अश्यार ...बेहतरीन गजल..
जवाब देंहटाएंबहुत आभार अनीता जी
हटाएंबढ़िया ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंकभी तो दूसरों के ब्लॉग पर भी अपनी टिप्पणी दिया करो।
नमस्कार शास्त्री जी ...
हटाएंक्षमा चाहता हूँ ... में अभी नियमित नहि हो पा रहा हूँ नहीं तो ऐसी शिकायत मेरे से तो कोई नहीं रखता ... मैं अभी भी ब्लोगर ही हूँ और विभिन्न ब्लॉग पर जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता रहता हूँ ...
आपका आभार यहाँ तक आने के लिए ...
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार यशोदा जी ...
हटाएंशहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे
जवाब देंहटाएंतेरी पगडंडियों से जोड़ आया
बहुत खूबसूरत रचना 👏 👏 👏
बहुत आभार सुधा जी ...
हटाएंकब कैसा वक्त आये, कोई निश्चित नहीं कह सकता है, जाने कितनी राहों से गुजरना पड़ता है जिंदगी के सफर में
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत आभार आपका कविता जी ...
हटाएंतेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
जवाब देंहटाएंसभी रिश्ते पुराने तोड़ आया
बहुत दिनों के बाद ...आपकी लेखनी का लाजवाब सृजन पढ़ने का अवसर मिला । बहुत सुन्दर गज़ल ।
जी अभी तक नियमित नहि हो पा रहा करोना के चक्कर में वापिस नहि जा पा रहा ... आपका आभार ...
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जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
बहुत आभार पम्मी जी ...
हटाएंवाह! बहुत खूब!!!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार सर ...
हटाएंभरे थे जेब में आँसू किसी के
जवाब देंहटाएंसमुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
मोती सा अशआर
बहुत बहुत आभार आपका ...
हटाएंबढिया ग़ज़ल है सर।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया नीतीश जी ...
हटाएंवाह!दिगंबर जी ,बेहतरीन गज़ल 👌👌
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ..
हटाएंपगडंडी वाले शेर का चित्रण बहोत अच्छा है जनाब।
जवाब देंहटाएंसारी ग़ज़ल सिरे की है।
मजा आ गया।
आभार है रोहितास जी आपका
हटाएंतेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
जवाब देंहटाएंसभी रिश्ते पुराने तोड़ आया
भरे थे जेब में आँसू किसी के
समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
वाह!!!
हमेशा की तरह बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब गजल।
बहुत आभार सुधा जी ...
हटाएंकमाल का सृजन , आप जो लिखते हैं दिल में उतर जाता है
जवाब देंहटाएंसादर
पढ़ें- कोरोना
बहुत आभर ज्योति जी ...
हटाएं"किसी की सिसकियों का दर्द ले कर
जवाब देंहटाएंगुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया"
सादर
अहा ... याद हो आई आपकी राकेश जी ...
हटाएंबहुत आभार ...
निःशब्द करता सृजन ... अप्रतिम लेखन शैली
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत शुक्रिया सदा जी ...
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंशुक्रिया जी ...
हटाएंबहुत दिन बाद आना हुआ इस तरफ और आके बहुत प्रसन्नता हुयी आपका लिखा पढ़ कर
जवाब देंहटाएंकई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया
सड़क तन्हाई की दौड़ आया
bahut hi acche bhaaw ukere hain aapne
bdhaayi
बहुत आभार ज़ोया जी आपका ...
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल आदरणीय
जवाब देंहटाएंबहुत आभार
हटाएंहवाओं का रुख मोड़ आया ...वाह , अनूठी अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंआपका स्नेह ऐसे हो बना रहे 🙏🙏🙏
हटाएंभरे थे जेब में आँसू किसी के
जवाब देंहटाएंसमुन्दर मिल रहा था छोड़ आया ...बहुत ही भावनात्मक अलफ़ाज़ लिख डाले इस अशआर में तो आपने ...जबरदस्त
शुक्रिया योगी जी ...
हटाएंआप बहुत ही बढ़िया लिखते है ,हर पंक्ति शानदार है ,किसे कहूँ बेहतर ,आपकी हर रचना को कम से कम दो बार पढ़ती ही हूँ ,बहुत गहराई है ,मेरे पास वो शब्द नही जिससे आपकी रचना सराही जाये ,नमन करती हूं ,
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है आदरणीय ...
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