स्वप्न मेरे: हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया ...

रविवार, 15 मार्च 2020

हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया ...

क़रीब दो महीने हो गएअभी तक देश की मिट्टी का आनंद ले रहा हूँ ... कुछ काम तो कुछ करोना का शोर ... उम्मीद है जल्दी ही मलेशिया लौटना होगा ... ब्लॉग पर लिखना भी शायद तभी नियमित हो सके ... तब तक एक ताज़ा गज़ल  ...

कई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया 
सड़क तन्हाई की दौड़ आया 

शहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे 
तेरी पगडंडियों से जोड़ आया 

किसी की सिसकियों का दर्द ले कर 
गुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया 

तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं 
सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया 

वहाँ थे मोह के किरदार कितने 
दुशाला प्रेम का मैं ओढ़ आया 

भरे थे जेब में आँसू किसी के 
समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया 

कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती 
हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया 
#मद्धम_मद्धम

50 टिप्‍पणियां:

  1. भरे थे जेब में आँसू किसी के
    समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया

    बहुत बढ़िया अशआर.

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  2. भरे थे जेब में आँसू किसी के
    समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया

    कभी निकलो तो ले कर अपनी कश्ती
    हवा का रुख़ कभी का मोड़ आया
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, दिगम्बर भाई।

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  3. उम्दा अश्यार ...बेहतरीन गजल..

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  4. बढ़िया ग़ज़ल।
    कभी तो दूसरों के ब्लॉग पर भी अपनी टिप्पणी दिया करो।

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    1. नमस्कार शास्त्री जी ...
      क्षमा चाहता हूँ ... में अभी नियमित नहि हो पा रहा हूँ नहीं तो ऐसी शिकायत मेरे से तो कोई नहीं रखता ... मैं अभी भी ब्लोगर ही हूँ और विभिन्न ब्लॉग पर जा कर अपनी उपस्थिति दर्ज करवाता रहता हूँ ...
      आपका आभार यहाँ तक आने के लिए ...

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  5. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. शहर जिस पर तरक़्क़ी के शजर थे
    तेरी पगडंडियों से जोड़ आया
    बहुत खूबसूरत रचना 👏 👏 👏

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  7. कब कैसा वक्त आये, कोई निश्चित नहीं कह सकता है, जाने कितनी राहों से गुजरना पड़ता है जिंदगी के सफर में
    बहुत सुन्दर

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  8. तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
    सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया
    बहुत दिनों के बाद ...आपकी लेखनी का लाजवाब सृजन पढ़ने का अवसर मिला । बहुत सुन्दर गज़ल ।

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    उत्तर
    1. जी अभी तक नियमित नहि हो पा रहा करोना के चक्कर में वापिस नहि जा पा रहा ... आपका आभार ...

      हटाएं


  9. आपकी लिखी रचना आज "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 18 मार्च 2020 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  10. भरे थे जेब में आँसू किसी के
    समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
    मोती सा अशआर

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  11. वाह!दिगंबर जी ,बेहतरीन गज़ल 👌👌

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  12. पगडंडी वाले शेर का चित्रण बहोत अच्छा है जनाब।
    सारी ग़ज़ल सिरे की है।
    मजा आ गया।

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  13. तेरी यादों की गुल्लक तोड़ कर मैं
    सभी रिश्ते पुराने तोड़ आया

    भरे थे जेब में आँसू किसी के
    समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया
    वाह!!!
    हमेशा की तरह बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब गजल।

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  14. कमाल का सृजन , आप जो लिखते हैं दिल में उतर जाता है
    सादर
    पढ़ें- कोरोना

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  15. "किसी की सिसकियों का दर्द ले कर
    गुबाड़े कुछ हँसी के फोड़ आया"
    सादर

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  16. निःशब्द करता सृजन ... अप्रतिम लेखन शैली

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  17. बहुत दिन बाद आना हुआ इस तरफ और आके बहुत प्रसन्नता हुयी आपका लिखा पढ़ कर


    कई क़िस्सों को पीछे छोड़ आया
    सड़क तन्हाई की दौड़ आया

    bahut hi acche bhaaw ukere hain aapne

    bdhaayi


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  18. हवाओं का रुख मोड़ आया ...वाह , अनूठी अभिव्यक्ति!

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  19. भरे थे जेब में आँसू किसी के
    समुन्दर मिल रहा था छोड़ आया ...बहुत ही भावनात्मक अलफ़ाज़ लिख डाले इस अशआर में तो आपने ...जबरदस्त

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  20. आप बहुत ही बढ़िया लिखते है ,हर पंक्ति शानदार है ,किसे कहूँ बेहतर ,आपकी हर रचना को कम से कम दो बार पढ़ती ही हूँ ,बहुत गहराई है ,मेरे पास वो शब्द नही जिससे आपकी रचना सराही जाये ,नमन करती हूं ,

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है