हालाँकि छूट गया था शहर
छूट जाती है जैसे उम्र समय के साथ
टूट गया वो पुल
उम्मीद रहती थी जहाँ से लौट आने की
पर एक ख़ुशबू है, भरी रहती है जो नासों में
बिना खिंचे, बिना सूंघे
लगता है खिलने लगा है आस-पास
जंगली गुलाब का फूल कोई
या ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी
वैसे मनाही तुम्हारी याद को भी नहीं
उठा लाती है जो तुम्हें
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे
#जंगली_गुलाब
वाह बहुत खूबसूरत सृजन
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया उर्मिला जी
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (24 -3-2020 ) को " तब तुम लापरवाह नहीं थे " (चर्चा अंक -3650) पर भी होगी,
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
आभार कामिनी जी
हटाएंउफ्फ जंगली गुलाब की खुशबू | कहर ढाते रहिये
जवाब देंहटाएंजी आप भी महकते रहें ... अच्छा लगा आपने मिलना उस दिन
हटाएंवाह
जवाब देंहटाएंआभार सुशील जी
हटाएंशुभकामनाएं नव सम्वत्सर की।
हटाएंआपको भी ... 🙏🙏🙏
हटाएं"वैसे मनाही तुम्हारी याद को भी नहीं
जवाब देंहटाएंउठा लाती है जो तुम्हें
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे"
🙏🙏🙏
हटाएंबेहतरीन ख्याल और लाजवाब अंदाज । अनुभव व संजीदगी से भरी इस रचना की कितनी भी तारीफ़ करें कम होगी।
जवाब देंहटाएंअनंत शुभकामनाएँ आदरणीय ।
आपका आना बहुत अच्छा लगा आदरणीय ...
हटाएंजंगली गुलाब प्रकृति की सुंदर देंन है. जहाँ मनुष्य ने गुलाब के साथ इतने प्रयोग किये हैं कि रंग और ख़ुशबू को लेकर हम भ्रमित हो जाते हैं वहीं जंगली गुलाब में नैसर्गिक सौंदर्य अभी भी विद्यमान है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना आदरणीय सर
आपकी विस्तृत टिप्पणी ने मोह लिया ... बहुत आभार
हटाएंया ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी
जवाब देंहटाएंक्या खूब.
बहुत बढ़िया सृजन 👏 👏
बहुत शुक्रिया
हटाएंवाह बेहतरीन 👌👌
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी
हटाएंयादों को कौन कब रोक सका है, यादें गुलाबों की हों या काँटों की... भरम में जिए जाना इंसान की नियति है..
जवाब देंहटाएंजी संजीवनी हैं ये भरम ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (25-03-2020) को "नव संवत्सर-2077 की बधाई हो" (चर्चा अंक -3651) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
मित्रों!
आजकल ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत दस वर्षों से अपने चर्चा धर्म को निभा रहा है।
आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी
हटाएंलगता है खिलने लगा है आस-पास
जवाब देंहटाएंजंगली गुलाब का फूल कोई
या ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी
बहुत सुंदर रचना, दिगंबर भाई।
आभार ज्योति जी आपका ...
हटाएंलगता है खिलने लगा है आस-पास
जवाब देंहटाएंजंगली गुलाब का फूल कोई
या ... गुजरी हो तुम इस रास्ते से कभी
यहीं ख्याल तो जीजिविषा है जीवन की...पंक्तियों में कभी मन की आशाएं जंगली गुलाब के रूप में खिलती हैं तो कभी जीवन के राग के रूप में...., बेहद खूबसूरत भावाभिव्यक्ति.
हृदय तल से आभार आपका 🙏
हटाएंअनायास ही चली आए जैसे नासापुटों में खिलते गुलाब की गंध,मन में समान अनुभूतियों का स्फुरण करती हुई ..सुन्दर भाव!
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका 🙏🙏🙏
हटाएंवाह, बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंजंगली गुलब की खुशबू....वाह वाह वाह....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पूनम जी ...
हटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएं""जंगली_गुलाब "" ये शब्द पढ़ कर ही मन रचना की और आकर्षित हो गया था। जिहोने जंगली गुलाब का आकर्षण समझा हो वो ही ऐसी सोच उकेर सकते हैं
जवाब देंहटाएंवैसे मनाही तुम्हारी याद को भी नहीं
उठा लाती है जो तुम्हें
जंगली गुलाब की ख़ुशबू लपेटे
जंगली गुलाब की मोहकता समेटे बहुत मोहक रचना
जी जंगली गुलाब अक्सर मेरी रचनाओं की अनाम नायिका है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत बढ़िया। जंगली गुलाब शब्द पहली बार सुना।
जवाब देंहटाएंये जंगली गुलाब अक्सर मेरी रचनाओं की अनाम नायिका रही है ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
बहुत ही शानदार रचना
जवाब देंहटाएंThank you sir ..
हटाएंमनमोहक शब्द ....
जवाब देंहटाएंआभार योगी जी ...
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