बहाने से प्रश्न करता हूँ स्वयं से ... पर उलझ जाता हूँ अपने कर्म से ... असम्भव
को सम्भव करने के प्रयास में फिर फंस जाता हूँ मोह-जाल में ... फिर सोचता हूँ, ऐसी
चाह रखता ही क्यों हूँ ... चाहत का कोई तो अंत होना चाहिए ...
क्या मनुष्य
या सत्य कहूं तो ... मैं
कभी कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
मोह-माया से दूर
अपना-पराया मन से हटा
निज से परे
सत्य और धर्म की
राह पर
स्वयं को होम कर
पाऊंगा
क्या कृष्ण का
सत्य जान जाऊंगा
कर्म के मार्ग
पर
एक क्षण के लिए
ही
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
कृष्ण ही तो हैं न
जवाब देंहटाएंहर मानव में,
आत्मा का
स्वरूप, कृष्ण की भाँति ही जीवन के विभिन्न पड़ावों लीला रचते हम अपने कर्मों को अपनी दृष्टिकोण से
सही गलत ठहराते सांसारिकता में उलझकर रह जाते हैं।
स्वयं को सांसारिक भावनाओं से मुक्त रखना आम मनुष्य के लिए कहाँ संभव।
बहीत सुंदर अभिव्यक्ति सर।
सादर।
साहिबाबाद है आपने बिलकुल सम्भव नहीं है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत कठिन है डगर पनघट की।
जवाब देंहटाएंजी ... बहुत आभार आपका
हटाएंक्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा
जवाब देंहटाएंकर्म के मार्ग पर
एक क्षण के लिए ही
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
एक असाध्य प्रश्न स्वयं से...गहन चिन्तन.. अद्भुत सृजन ।
आभार है आपका मीना जी ...
हटाएं'मैं' कभी नहीं बनेगा, जिस क्षण 'मैं' मिट जायेगा फिर उसके सिवा कुछ है ही नहीं
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर व्याख्या ... आभार आपका ...
हटाएंमान लीजिये। बहुत से लोगों को है खुशफहमी कृष्ण होने की :) बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंपर कौन हो सका है ...
हटाएंआपका आभार ...
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंअनैतिकता के दौर में कृष्ण और राम तो क्या,
लोग रावण और कंस भी कहलाने के काबिल नहीं हैं।
इस बात पे सहमत हूँ आपसे ...
हटाएं
जवाब देंहटाएंमोह-माया से दूर
अपना-पराया मन से हटा
निज से परे
सत्य और धर्म की राह पर
स्वयं को होम कर पाऊंगा
क्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा
कर्म के मार्ग पर
एक क्षण के लिए ही
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
मन को भा गई रचना ,अति उत्तम
मोको कहाँ ढूंढे बन्दे मैं तो तेरे पास रे .....।
सर्वत्र है पर फिर भी तलाश है
हटाएं🙏🙏🙏
बिल्कुल सही है
हटाएं'स्वयं' को होम करने पर 'मैं' बचता नहीं। इसलिए 'मैँ' भला कृष्ण कैसे बन सकता! सुंदर दृष्टि।
जवाब देंहटाएंइसी बात से मुक्ति भी तो नहीं मिलती ... प्रश्न बीच आ जाता है ... बहुत आभार आपका
हटाएंये तो कृष्ण पर ही निर्भर है किसे मैं (कंस) और किसे कृष्ण का किरदार सौंपना है....
जवाब देंहटाएंहम तो उसके हाथ की कठपुतली मात्र हैं
क्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा
कर्म के मार्ग पर
एक क्षण के लिए ही
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
ये चाह ही पर्याप्त है मैं से दूर कृष्ण के करीब ले जाने में...
अति सुन्दर चिन्तनपरक सृजन।
ये चाह भी तो उसने अपने पास ही रखी है ... मोह भी वही माया भी वही ...
हटाएंआभार है आपका ...
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएं" कहते हैं आत्मा परमात्मा का ही एक अंश हैं " तो कृष्ण का एक सूक्ष्म अंश तो हमें हैं ही ,बस जिस दिन उस " अंश " को समझ लिया ,पूर्णतः ना सही आंशिक कृष्ण तो शायद बन ही जायेगे। मगर जैसा कि देवेन्द्र पाण्डेय जी ने कहा -" बहुत कठिन है डगर पनघट की "
जवाब देंहटाएंएक आत्मा की सच्ची आवाज़ तो आपने सुन ही ली तभी तो " खुद से ये प्रश्न किया " वरना आज के युग में एक क्षण को भी ऐसे ख्याल किसी के जेहन में नहीं आते। तो ,मेरे ख्याल से आपने " कृष्ण " की खोज में पहला कदम तो बढ़ा ही लिया , सादर नमन आपको
ये पहला कदम ही हो जाए तो भाग्यशाली हो जाए इंसान ... बहुत आभार आदरणीय ... 🙏🙏🙏
हटाएंमाया मोह से परे कृष्ण होना इस नश्वर मायावी संसार में मनुष्य के लिए एक सुनहरे सपने जैसा है जो पौ फटते ही फुर्र हो जाता है
जवाब देंहटाएंस्वयं ईश्वर भी इस संसार में जन्म लेकर कहाँ माया-मोह से मुक्त हो पाए, जिसने भी जन्म लिया उसे यह रोग लगना ही है
बहुत अच्छी विचारशील प्रस्तुति
विचारशील कथन ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंओह कृष्ण हो पाने हो जाने की इच्छा भी कृष्णमय हो जाना ही है सर | आपकी शैली निराली है हमेशा से
जवाब देंहटाएंसर आपकी सहृदयता है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबन पायेंगे कृष्ण अब हालात यही बन रहे हैं। सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙏
हटाएंबहुत जटिल प्रश्न. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंक्या कृष्ण का सत्य जान जाऊंगा
जवाब देंहटाएंकर्म के मार्ग पर
एक क्षण के लिए ही
कृष्ण बन पाऊंगा ... ?
सिगम्बर भाई, जो इंसान कृष्ण बनने की चाहत रखता हैं, वो कृष्ण न भी बन पाया तो भी एक अच्छा इंसान जरूर बन जाएगा। मेरे दृष्टिकोण से वह भी पर्याप्त हैं।
आपका कहना सही है ... अच्छा इंसान होना भी कम नहीं है आज ... बहुत आभार आपका
हटाएंबहुत आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंसुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंआदरणीय नासवा जी, जब बात माखन चुराने की हो तब जरूर कहेंगे। ..हाँ संभव है :)
जवाब देंहटाएंबहुत स्वागत है आपका निहार रंजन जी ... बहुत समय बाद आए हैं ...
हटाएंआदरणीय नासवा जी, जब बात माखन चुराने की हो तब जरूर कहेंगे। ..हाँ संभव है :
जवाब देंहटाएंRead More About GPS Kya Hai और इसकी परिभाषा - What is GPS in Hindi
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ji Shukriya ...
हटाएंमोह-माया से दूर
जवाब देंहटाएंअपना-पराया मन से हटा
निज से परे
सत्य और धर्म की राह पर
स्वयं को होम कर पाऊंगा
आसान कहाँ होता है कृष्ण होना ? इतना त्याग आम इंसान के बस की बात नहीं लेकिन हाँ उनके आदर्शों का कुछ अंश भी अगर अंगीकार हो सके तो जीवन सफल
bahut abhar apka ..
हटाएंजंगली गुलाब अपने होने में ही कृष्ण है . बस स्वयं को पूर्णतया स्वीकार कर ले ।
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