सच
जबकि होता है सच
लग जाती है
मुद्दत
सच की ज़मीन पाने में
झूठ
जबकि नहीं होता सच
फ़ैल जाता है
आसानी से
सच हो जैसे
हालांकि अंत
जबकि रह जाता है
केवल सच
पर सच को मिलने तक
सच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
तमाम उम्र
तो क्या है सच
ज़िन्दगी ...
या प्राप्ति
सच या झूठ की ...
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंआभार सरिता जी ...
हटाएंगहन सोच ... बहुत सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मीना जी ...
हटाएंसच को ज़मीन नहीं मिलती, यह दुख देता है। जाने ज़िंदगी क्या है? विचारपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंजी एक प्रश्न है जिंदगी ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
जमाना
जवाब देंहटाएंबदल गया है
सच झूठ
और झूठ अब
सच हो गया है।
लाजवाब।
शुक्रिया सर ...
हटाएंझूठ बोलकर भी वो सच्चे , हम झूठे सच कहकर ....
जवाब देंहटाएंबहुत चुभने वाला सच . वाह
बहुत आभार गिरिजा जी ...
हटाएंसच तो ज़िन्दगी ही है....
जवाब देंहटाएंजी ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंवाह!!क्या सच कहा आपने!!!
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंहालांकि अंत
जवाब देंहटाएंजबकि रह जाता है
केवल सच
पर सच को मिलने तक
सच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
हम्म्म. बहुत गहरी बात
सच की ज़मीं झूठ हो जाती है
सत्य वचन
बहुत ही सार्थक रचना। ..
आभार ज़ोया जी ...
हटाएंसत्य की विजय अंतिम है,इससे पहले झूठ के दाँव चलते रहते हैं.जिसमें धैर्य और सामर्थ्य हो वही सत्य का पल्ला पकड़े ,नहीं तो दुनियादारी है ही .
जवाब देंहटाएंजी ... सहमत आपकी बात से ...
हटाएंबहुत आभार आपका ...
झूठ कई बार सच प्रतित होता है लइकन कभी न कभी सच्चाई सामने आ ही जाती है।
जवाब देंहटाएंसच कहा है ...
हटाएंबहुत आभार ज्योति जी ...
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (10-06-2020) को "वक़्त बदलेगा" (चर्चा अंक-3728) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शुक्रिया सर ...
हटाएंसच की परिभाषा तो यही है कि जो सदा एक सा है, झूठ की यही कि वह बदलता रहता है, अब यह सोचना है कि जिंदगी में क्या अटल है और क्या बदल रहा है
जवाब देंहटाएंअटल तो सत्य ही है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंबेहद सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंझूठ जल्दी ही फैलता है और सच धीरे धीरे चलता है
जवाब देंहटाएंसहमत आपकी बात से ...
हटाएंबहुत आभार ...
सच के व्यापार में मुनाफा नही होता फिर भी सौदा फायदेमंद का है ,बेहतरीन सोच उम्दा
जवाब देंहटाएंये तो है ... बहुत आभार आपका ...
हटाएंपर सच को मिलने तक
जवाब देंहटाएंसच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
बहुत सुन्दर रचना ।
शुक्रिया आपका ...
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंआभार आपका ...
हटाएंझूठ
जवाब देंहटाएंजबकि नहीं होता सच
फ़ैल जाता है
आसानी से
सच हो जैसे... निशब्द.
सादर
आभार अनीता जी ...
हटाएंपर सच को मिलने तक
जवाब देंहटाएंसच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
तमाम उम्र
छोटी पर बहुत उम्दा भाव लिए बेहतरीन सृजन।
बहुत आभार आपका ...
हटाएंसच और झूठ में उलझी जिंदगी अब तो समझ ही नही आता सच को माना जाए या झूठ को
जवाब देंहटाएंये द्वन्द स्वाभाविक है ...
हटाएंआभार आपका ...
झूठ पनीला होता है जो आसानी से कहीं से भी निकल कर फैल जाता है लेकिन सच कठोर धरातल होता है जो जीवन राह पर चलना सिखाता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी विचार चिंतन प्रस्तुति
आपका कहना सही है ...
हटाएंबहुत आभार आपका कविता जी ...
लाख बर्क गिरे लेकिन सच की चमक तो सर्वोपरि है. सच कहा आपने।
जवाब देंहटाएंसही कहा अहि आपने निहार जी ... सत्य चाहे देर से हो पर उसके आगे फिर कुछ नहीं है ...
हटाएंआभार आपका ...
बढ़िया सवाल वाली रचना. ज़िंदगी भी रहती है और सच भी. झूठ को तो बस टूटन होती रहती है.
जवाब देंहटाएंजी सच का रहना तो जरूरी है ... नहीं तो धूप कैसे निकलेगी ...
हटाएंआभार आपका ...
हालांकि अंत
जवाब देंहटाएंजबकि रह जाता है
केवल सच
पर सच को मिलने तक
सच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
तमाम उम्र
कितने प्रमाणों की जरुरत होती है सच को सच साबित करने के लिए...प्रमाण इकट्ठा करने के लिए कहीं न कहीं फिर झूठ का सहारा...
तो यथार्थ है कि सच की जमीन झूठ हो जाती है...
सहमत आपकी बात से ... बहुत आभार ...
हटाएंहालांकि अंत
जवाब देंहटाएंजबकि रह जाता है
केवल सच
पर सच को मिलने तक
सच की ज़मीन
झूठ हो जाती है
तमाम उम्र....एकदम सही और सटीक
बहुत शुक्रिया ...
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