आँसुओं से
तर-ब-तर मासूम कन्धा रह गया
वक़्त की साँकल में
अटका इक दुपट्टा रह गया
मिल गया जो उसकी माया, जो
हुआ उसका करम
पा लिया तुझको तो
सब अपना पराया रह गया
आदतन बोला नहीं
मैं, रह गईं खामोश तुम
झूठ सच के बीच
उलझा एक लम्हा रह गया
छू के तुझको कुछ
कहा तितली ने जिसके कान में
इश्क़ में डूबा
हुआ वाहिद वो पत्ता रह गया
आपको देखा अचानक
बज उठी सीटी मेरी
उम्र तो बढ़ती रही
पर दिल में बच्चा रह गया
कर भी देता मैं
मुकम्मल शेर तेरे हुस्न पर
क्या कहूँ लट से
उलझ कर एक मिसरा रह गया
मैं भी कुछ जल्दी
में था, रुकने को तुम राज़ी न थीं
शाम का नीला समुन्दर
यूँ ही तन्हा रह गया
बोलना, बातें,
बहस, तकरार, झगड़ा, गुफ्तगू
इश्क़ की इस
दिल्लगी में अस्ल मुद्दा रह गया
कुछ कहा नज़रों ने, कुछ होठों ने, सच किसको कहूँ
यूँ शराफत सादगी
में पिस के बंदा रह गया