कहीं खामोश है कंगन,
कहीं पाज़ेब टूटी है
सिसकता है कहीं तकिया,
कहीं पे रात रूठी है
अटक के रह गई है नींद पलकों के मुहाने पर
सुबह की याद में बहकी हुई इक शाम डूबी है
यहाँ कुछ देर बैठो चाय की दो चुस्कियाँ ले लो
यहीं से प्रेम की ऐ. बी. सी. पहली बार सीखी है
न क्यों सब इश्क़ के बीमार मिल कर के बहा आएँ
इसी सिन्दूर ने तो आशिकों की जान लूटी है
उसे भी एड़ियों में इश्क़ का काँटा चुभा होगा
मेरी भी इश्क़ की पगडंडियों पे बाँह छूटी है
धुंवे में अक्स तेरा और भी गहरा नज़र आए
किसी ने साथ सिगरेट के तुम्हारी याद फूँकी है
झमाँ झम बूँद बरसी, और बरसी, रात भर बरसी
मगर इस प्रेम की छत आज भी बरसों से सूखी है
बहाने से बुला लाया जुनूने इश्क़ भी तुमको
खबर सर टूटने की सच कहूँ बिलकुल ही झूठी है
किसी की बाजुओं में सो न जाए थक के ये फिर से
गई है उठ के तकिये से अभी जो रात बीती है
वाह
जवाब देंहटाएंआभार सुशिल जी ...
हटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंवाह! बहुत बढिया।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया सर ...
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 14 जुलाई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी रचना की पंक्ति-
हटाएं"झमाँ झम बूँद बरसी, और बरसी, रात भर बरसी"
हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।
वाह
हटाएंआभार रविन्द्र जी ...
हटाएंबेहद शानदार गज़ल सर।
जवाब देंहटाएंहर बंध बेहतरीन है।
आभार आदरणीय ...
हटाएंबेहद खूबसूरत ...भावों का सागर निर्बाध गति से बहता हुआ..लाजवाब सृजनात्मकता ।
जवाब देंहटाएंआभार मीना जी ...
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंकितनी भी दाद दूँ, बहुत कम पड़ेगी. कमाल की ग़ज़ल.
जवाब देंहटाएंआभार आपका बहुत बहुत ...
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत आभार ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (15-07-2020) को "बदलेगा परिवेश" (चर्चा अंक-3763) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आभार सर आपका ...
हटाएंबहुत खूब अशआर हुए हैं। मुबारक हो।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया ...
हटाएंबहुत दिल से लिखा है ।
जवाब देंहटाएंरेखा श्रीवास्तव
आभार आदरणीय रेखा जी ...
हटाएंउसे भी एड़ियों में इश्क़ का काँटा चुभा होगा
जवाब देंहटाएंमेरी भी इश्क़ की पगडंडियों पे बाँह छूटी है
धुंवे में अक्स तेरा और भी गहरा नज़र आए
किसी ने साथ सिगरेट के तुम्हारी याद फूँकी है
झमाँ झम बूँद बरसी, और बरसी, रात भर बरसी
मगर इस प्रेम की छत आज भी बरसों से सूखी है
वाह ! प्यासे को जैसे पानी की बूँद मिल गयीं !! जबरदस्त ग़ज़ल !! लम्बे इंतज़ार के बाद ग़ज़ल आई है आपकी
बहुत शुक्रिया योगी जी ...
हटाएं"झमाँ झम बूँद बरसी, और बरसी, रात भर बरसी
जवाब देंहटाएंमगर इस प्रेम की छत आज भी बरसों से सूखी है"
बेहद खूबसूरत गजल,निशब्द हूँ कि-कैसे प्रशंसा करूँ,एक एक शेर दिल में उतरता गया.
सादर नमन आपको
बहुत आभार कामिनी जी ...
हटाएंबहुत खूबसूरत। निःशब्द कर दिया सर आपने।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंबहुत खूबसूरत। निःशब्द कर दिया सर आपने।
जवाब देंहटाएंThanks For Sharing
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बहुत आभार आपका ...
जवाब देंहटाएंइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
जवाब देंहटाएंThanks Navin ji ...
हटाएंबहुत खूबसूरत शायरी. दाद स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंबहुत आभार आपका ...
हटाएंउम्दा लिखावट ऐसी लाइने बहुत कम पढने के लिए मिलती है धन्यवाद् Aadharseloan (आप सभी के लिए बेहतरीन आर्टिकल संग्रह जिसकी मदद से ले सकते है आप घर बैठे लोन) Aadharseloan
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आपका ...
हटाएंNice
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जवाब देंहटाएंnicd
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जवाब देंहटाएंbahut acchi blog hi aapka
जवाब देंहटाएं