अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी
तू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा
सुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी
अभी तो रात ने दिन का शटर खोला नहीं है
चलो इक नींद तो लेने दो तुम बाहों में अपनी
कभी गुस्सा, झिझकना, रूठना, फिर मान जाना
हमेशा बोलती रहती हो तस्वीरों में अपनी
कहीं कमज़ोर ना कर दें बुलंदी के इरादे
समुन्दर रोक के रखना ज़रा पलकों में अपनी
ज़रुरत जब हुई महसूस हमको ज़िन्दगी में
दुआएं दोस्तों की आ गई खातों में अपनी
कई अलफ़ाज़ जब मुंह मोड़ लेते हैं बहर से
तुम्हारा नाम लिख देता हूँ बस ग़ज़लों में अपनी
सुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
परिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी
झुकी पलकें दुपट्टा आसमानी चाल अल्हड़
उसी लम्हे की बस तस्वीर है आँखों में अपनी
वाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर ...
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (04-08-2020) को "अयोध्या जा पायेंगे तो श्रीरामचरितमानस का पाठ करें" (चर्चा अंक-3783) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत आभार शास्त्री जी ...
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर ...
हटाएंवाह!दिगंबर जी ,क्या बात है !बहुत खूबसूरत सृजन ।..दुआएँ दोस्तों की आ गई खाते में तब अपने ....वाह!!
जवाब देंहटाएंशुभा जी बहुत शुक्रिया ...
हटाएंबेहद खूबसूरत रचना आदरणीय 👌
जवाब देंहटाएंआभार अनुराधा जी ...
हटाएंGoogle Drive Kya Hai In Hindi | How To Use Google Drive
जवाब देंहटाएंShort Term Benefits Pack a Bigger Punch These Days 2020
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आपका यहाँ तक आने का शुक्रिया ...
हटाएंकहीं कमज़ोर ना कर दें बुलंदी के इरादे
जवाब देंहटाएंसमुन्दर रोक के रखना ज़रा पलकों में अपनी...क्या खूब कहा नासवा जी, बहुत ही खूब
आभार आदरणीय ....
हटाएं
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 5 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आभार पम्मी जी ...
हटाएंखूबसूरत रचना दिगम्बर जी
जवाब देंहटाएंबहुत शुक्रिया सर ...
हटाएंअधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
जवाब देंहटाएंतभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी अधूरी ख्वाहिशें रहती हैं दरवाज़ों में अपनी
तभी तो ज़िन्दगी जीते हैं सब टुकड़ों में अपनी,,,,,,,,,,, बहुत सुंदर ।
आभार मधुलिका जी ...
हटाएंसुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
जवाब देंहटाएंपरिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी
बहुत खूब ! प्राणी मात्र के लिए सजगता भाव ...मन को सुकून देने के साथ बड़प्पन भी देता है । सदैव की तरह हृदयस्पर्शी सृजन ।
बहुत आभार आपका ....
हटाएंसुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
जवाब देंहटाएंपरिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनीबहुत सुंदर रचना, दिगंबर भाई।
आभार ज्योति जी ...
हटाएंबहुत ही सुंदर लिखा है आप मेरी रचना भी पढना
जवाब देंहटाएंजी ज़रूर कवि जी ...
हटाएंआभार आपका ...
आदरणीय सर,
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शायरी। हर पंक्ति के भाव सुंदर हैं और स्वयं उठ उठ कर आ रहे हैं।
हृदय से आभार।
आभार अनंता जी ...
हटाएंसुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
जवाब देंहटाएंपरिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी।
-वैसे तो सम्पूर्ण रचना बहुत हृदयस्पर्शी है ,लेकिन इन दो पंक्तियों ने मुझे खास तौर पर बहुत प्रभावित किया। रचना में और इन पंक्तियों में सचमुच बहुत भावुक सन्देश है।
बहुत शुक्रिया करूँण जी ...
हटाएंसुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
जवाब देंहटाएंपरिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी
वाह!!!!
ज़रुरत जब हुई महसूस हमको ज़िन्दगी में
दुआएं दोस्तों की आ गई खातों में अपनी
बहुत ही लाजवाब हमेशा की तरह
वाह वाह... ।
आभार सुधा जी ....
हटाएंसुनो इस पेड़ को मत काटना जीते जी अपने
जवाब देंहटाएंपरिंदे छुप के रहते हैं यहाँ शाखों में अपनी....जबरदस्त !! वैसे परिंदों को दाना डालकर उन्हें उसे खाते हुए देखना बहुत अच्छा लगता है। lockdown में यही किया और अब तो आदत हो गयी है
जी सही कह रहे हैं आप योगी जी ...
हटाएंआभार आपका ...
बहुत सुंदर गज़ल !
जवाब देंहटाएं- रेखा
बहुत आभार रेखा जी ...
हटाएंवाह। बहुत ख़ूबसूरत।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया शबनम जी ...
हटाएंहमेशा की तरह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत आभार है आपका ...
हटाएंतू यूँ ही बोलना मैं भी फ़कत सुनता रहूँगा
जवाब देंहटाएंसुनो शक्कर ज़रा कम डालना बातों में अपनी
व्यवहार की यह खरी-खरी बहुत अच्छी लगी.
आप बहुत उम्दा कह रहे हैं.
बहुत शुक्रिया भारत भूषन जी ...
हटाएंज़रूरत जब हुई महसूस हमको
जवाब देंहटाएंदुआएँ दोस्तों की आगे खाते में अपनी
क्या ख़ूब कहा है।
बहुत आभार आपका ...
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जवाब देंहटाएंकहीं कमज़ोर ना कर दें बुलंदी के इरादे
जवाब देंहटाएंसमुन्दर रोक के रखना ज़रा पलकों में अपनी
ये शायरी अनमोल है | आदरणीय दिगम्बर जी , बहुत दिनों से सिर्फ पढ़ रही थी लिख नहीं पा रही थी | आज बहुत अच्छा लग रहा है | मेरी हार्दिक शुभकामनाएं सदैव ही आपके लिए |
बहुत आभार आपका रेणु जी ... आपकी व्याख्या हमेशा विस्तार देती है रचना को ...
हटाएंकविता की हर पंक्ति दिल को छू जाती है।
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना और सराहनीय प्रस्तुति के लिए हार्दिक आभार ।
जवाब देंहटाएं