पता है
तुमसे रिश्ता ख़त्म होने के बाद
कितना हल्का महसूस कर रहा हूँ
सलीके से रहना
ज़ोर से बात न करना
चैहरे पर जबरन मुस्कान रखना
"सॉरी"
"एसक्यूस मी"
भारी भरकम संबोधन से बात करना
"शेव बनाओ"
छुट्टी है तो क्या ...
"नहाओ"
कितना कचरा फैलाते हो
बिना प्रैस कपड़े पहन लेते हो
धीमे बोलने के बावजूद
नश्तर सी चुभती तुम्हारी बातें
बनावटी जीवन की मजबूरी
अच्छे बने रहने का आवरण
उफ्फ ... कितना बोना सा लगने लगा था
अच्छा ही हुआ डोर टूट गई
कितना मुक्त हूँ अब
घर में लगी हर तस्वीर बदल दी है मैने
सोफे की पोज़ीशन भी बदल डाली
फिल्मी गानों के शोर में
अब देर तक थिरकता हूँ
ऊबड़-खाबड़ दाडी में
जीन पहने रहता हूँ
तुम्हारे परफ्यूम की तमाम शीशियाँ
गली में बाँट तो दीं
पर क्या करूँ
वो खुश्बू मेरे ज़हन से नही जा रही
और हाँ
वो धानी चुनरी
जिसे तुम दिल से लगा कर रखती थीं
उसी दिन से
घर के दरवाजे पर टाँग रक्खी है
पर कोई कम्बख़्त
उसको भी नही ले जा रहा ...
सब कुछ जाते हुए भी बहुत कुछ छोड़ जाता है नासवा जी, जिंंदगी की धानी चुनरी चाहे दरवाजे पर ही क्यों ना टंगी हो...
जवाब देंहटाएंवैसे भी हर किसी को नहीं मिल पाती... बहुत खूब लिखा... पर क्या करूँ
वो खुश्बू मेरे ज़हन से नहींं जा रही
मानवीय सम्वेदनाओं को उतारती रचनाओं के लिए मेरे ब्लॉग पर भी नजर डालें।आशा नही विश्वास है आप निराश नही होंगे
हटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (22-9 -2020 ) को "काँधे पर हल धरे किसान"(चर्चा अंक-3832) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
रोम रोम में बसने वाले सिर्फ रिस्ते की डोर तोड़ सकते हैं...
जवाब देंहटाएंलाजवाब अभिव्यक्ति।
वाह
जवाब देंहटाएंमानवीय सम्वेदनाओं को उतारती रचनाओं के लिए मेरे ब्लॉग पर भी नजर डालें।आशा नही विश्वास है आप निराश नही होंगे
हटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंतुम्हारे परफ्यूम की तमाम शीशियाँ
जवाब देंहटाएंगली में बाँट तो दीं
पर क्या करूँ
वो खुश्बू मेरे ज़हन से नही जा रही...
वाह!!!
बहुत सुंदर !!!
नासवा जी, यादें कभी नहीं जातीं, चाहे कितना भी जतन कर लिया जाए...
अंतर्मन को छू लेने वाली इस सुंदर रचना के लिए आपको साधुवाद!!!
प्रेमिल अनुभूतियों सेनिज़ात पाना आसान नहीं, आत्मा में गहरे तक पैठ होती हैं इनकी। पर प्रेम जब अनावश्यक अधिकार जताए तो उसकी डोर कमजोर हो टूट ही जाती है अंततः। एक अनौपचारिक भावों से सजी नज़्म जो आप ही लिख सकते हैं दिगम्बर जी। हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏💐💐🙏🙏
जवाब देंहटाएंनिशब्द ! ग़जलों की तरह बंधनमुक्त कविता भी अत्यंत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब, दिगंबर नासवा जी
जवाब देंहटाएंआभार।
अयंगर
तुम्हारे परफ्यूम की तमाम शीशियाँ
जवाब देंहटाएंगली में बाँट तो दीं
पर क्या करूँ
वो खुश्बू मेरे ज़हन से नही जा रही
बेहद ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
साधुवाद💐🙏💐
लाजवाब शब्दावली💐💐
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंमुक्ति की चाह भी तभी तक होती है जब तक बंधन होता है....बंधन की डोर टूटते ही मुक्ति भी अखरने लगती है पुनः होती है फिर उसी बंधन की चाह...और जीवन उन्हीं यादों का आसरा लेता है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर....लाजवाब सृजन।
मन बावरा न जाने क्या चाहता है आजादी या बंधन
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर
नि:शब्द ....
जवाब देंहटाएंरिश्तों को एज़ इट इज़ सम्हालना पड़ता है...इफ़ और बट की गुंजाइश नहीं होती...शायद इसी लिये भारी बन जाते हैं...लेकिन उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा...चुनरी को दिल से कैसे निकाल देंगे दिगम्बर जी...बहुत सुन्दर रचना...👍👍👍
जवाब देंहटाएंरिश्तों को एज़ इट इज़ सम्हालना पड़ता है...इफ़ और बट की गुंजाइश नहीं होती...शायद इसी लिये भारी बन जाते हैं...लेकिन उसे एक ख़ूबसूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा...चुनरी को दिल से कैसे निकाल देंगे दिगम्बर जी...बहुत सुन्दर रचना...👍👍👍
जवाब देंहटाएंवाह ! तोड़कर भी जो न टूटे वही तो असली रिश्ता है
जवाब देंहटाएंकृपया इस लिंक पर पधारें... इसमें आप भी शामिल हैं 🙏 ⤵
जवाब देंहटाएंhttps://ghazalyatra.blogspot.com/2020/09/blog-post_22.html?m=1
सुंदर
जवाब देंहटाएंदिल छूने वाली रचनाओं के लिए मेरे ब्लॉग पर जाएँ।फॉलो करें कमेंट करके बताएं कैसा लगा।आशा है निराश नही होंगे
क्या बात, क्या बात, क्या बात .....
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय।
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जवाब देंहटाएंकिसी के साथ होने का एहसास तभी होता है , जब वो साथ नहीं होता !! गज़ब अभिव्यक्ति है सर
जवाब देंहटाएंसलीके से रहना
जवाब देंहटाएंज़ोर से बात न करना
चैहरे पर जबरन मुस्कान रखना
"सॉरी"
"एसक्यूस मी"
भारी भरकम संबोधन से बात करना
"शेव बनाओ"
छुट्टी है तो क्या,,,,,,,,, बहुत सुंदर सच बहुत सारी शर्तें ज़िंदगी कश्मकश हो जाती है ।
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