यूँ ही नज़रें गड़ाए रखिएगा
ज़ख्म अपने छुपाए रखिएगा
महफ़िलों को सजाए रखिएगा
दुश्मनी है ये मानता हूँ पर
सिलसिला तो बनाए रखिएगा
कुछ मुसाफिर ज़रूर लौटेंगे
एक दीपक जलाए रखिएगा
कल की पीड़ी यहाँ से गुजरेगी
आसमाँ तो उठाए रखिएगा
रूठ जाएँ ये उनकी है मर्ज़ी
आप पलकें बिछाए रखिएगा
काम आ जाएँ कब ये क्या जानें
आंसुओं को बचाए रखिएगा
शक्ल उनकी दिखेगी बादल में
यूँ ही नज़रें गड़ाए रखिएगा
वाह
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 12 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-10-2020 ) को "अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर एक मां की हुंकार..."(चर्चा अंक 3853) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
---
कामिनी सिन्हा
बेहतरीन ... छोटी-छोटी बातों से जिंदगी का फलसफा बयान करती पंक्तियाँ, पीढ़ी होना चाहिए सम्भवतः
जवाब देंहटाएंवाह !!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति ।
ज़ख्म अपने छुपाए रखिएगा
जवाब देंहटाएंमहफ़िलों को सजाए रखिएगा,,,,,,सच है यही ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है,बहुत सुंदर रचना हमेशा की तरह,,,,,,।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंदुश्मनी है ये मानता हूँ पर
जवाब देंहटाएंसिलसिला तो बनाए रखिएगा....
क्या बात है, प्रभावशाली शायरी, उन्मुक्त गजल
सारे अशआर उम्दा हैं
जवाब देंहटाएंखूबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, दिगंबर भाई।
जवाब देंहटाएंज़ख्म अपने छुपाए रखिएगा
जवाब देंहटाएंमहफ़िलों को सजाए रखिएगा
वाह!!!
जिंदगी का फलसफा...
एक से बढ़कर एक शेर
लाजवाब।
बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवाह। बहुत ख़ूब।
जवाब देंहटाएंकुछ मुसाफिर ज़रूर लौटेंगे
जवाब देंहटाएंएक दीपक जलाए रखिएगा
बहुत सुदंर.
बहुत अच्छा 😊
हटाएंकाम आ जाएँ कब ये क्या जानें
जवाब देंहटाएंआंसुओं को बचाए रखिएगा....अप्रतिम !! एक एक शब्द बहुत ही प्रभावी
'दुश्मनी है ये मानता हूँ पर
जवाब देंहटाएंसिलसिला तो बनाए रखिएगा'... वाह क्या कह दिया है आपने!