मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे ...
मुझे इक आईना ऐसा दिखा दे.
हकीकत जो मेरी मुझको बता दे.
नदी हूँ हद में रहना सीख लूंगी,
जुदा सागर से तू मुझको करा दे.
में गीली रेत का कच्चा घरोंदा,
कहो लहरों से अब मुझको मिटा दे.
बढ़ा के हाथ कोशिश कर रहा हूँ,
ज़रा सा आसमाँ नीचे झुका दे.
में तारा हूँ चमक बाकी रहेगी,
अंधेरों में मेरा तू घर बना दे.
महक फूलों की रोके ना रुकेगी,
भले ही लाख फिर पहरे बिठा दे.
में खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंमें खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
जवाब देंहटाएंमुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.,,,,,,, बहुत लाजवाब लाईने हैं फ़क़त बस वो एक लम्हा चाहिए होता है ख़ुद से ख़ुद को मिलने के लिए जिसे हम सारी ज़िंदगी तलाशते रहते हैं अदभुद लेखन को नमन ।
मुझे इक आईना ऐसा दिखा दे.
जवाब देंहटाएंहकीकत जो मेरी मुझको बता दे
से शुरू हो कर एक तलाश ग़ज़ल को वहाँ ला कर बिठा देती है जहाँ तलाश ख़त्म होती नज़र आती है.
मैं खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.
बहुत खूब.
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (21-10-2020) को "कुछ तो बात जरूरी होगी" (चर्चा अंक-3861) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 20 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाआआआआह..!
जवाब देंहटाएंक्या बात है..!
बहुत खूब..!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 21 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
मैं तारा हूँ चमक बाकी रहेगी,
जवाब देंहटाएंअंधेरों में मेरा तू घर बना दे.///
महक फूलों की रोके ना रुकेगी,
भले ही लाख फिर पहरे बिठा दे.///
बहुत प्यारे शेरों के साथ शानदार रचना दिगंबर जी | आपकी लेखन शैली सदैव ही माँ को छू जाती है |सस्नेह शुभकामनाएं और आभार |
में तारा हूँ चमक बाकी रहेगी,
जवाब देंहटाएंअंधेरों में मेरा तू घर बना दे.
–अद्धभुत
मैं खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
जवाब देंहटाएंमुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.
वाह!!
लाजवाब सृजन।
में खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
मुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे. वाह!! बेहतरीन 👌
आदरणीय दिगंबर नासवा जी, नमस्ते🙏! बहुत सुंदर रचना! ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी है:
जवाब देंहटाएंमहक फूलों की रोके ना रुकेगी,
भले ही लाख फिर पहरे बिठा दे.साधुवाद! --ब्रजेन्द्रनाथ
हर शेर बहुत उम्दा। “मुझे तू ढूँढ कर मुझसे मिला दे”। बहुत सुन्दर। बधाई।
जवाब देंहटाएंवाह ! हर शेर जैसे गागर में सागर भरा है, वही खोजेगा और फिर वही खुद से मिलाएगा, यह विश्वास ही काफी है
जवाब देंहटाएंमें खुद से मिल नहीं पाया हूँ अब तक,
जवाब देंहटाएंमुझे तू ढूंढ कर मुझसे मिला दे.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति।
वाह .. क्या बात .. बहुत खूब।
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बढ़ा के हाथ कोशिश कर रहा हूँ,
जवाब देंहटाएंज़रा सा आसमाँ नीचे झुका दे......बेहतरीन !! आनंद आ जाता है आपको पढ़कर
में तारा हूँ चमक बाकी रहेगी,
जवाब देंहटाएंअंधेरों में मेरा तू घर बना दे.
महक फूलों की रोके ना रुकेगी,
भले ही लाख फिर पहरे बिठा दे.
वाहवाह...
हमेशा की तरह कमाल के अशआर....एक से बढ़कर एक....
लाजवाब।