बहुत आसान है सपने चुराना ...
नया ही चाहिए कोई बहाना.
तभी फिर मानता है ये ज़माना.
परिंदों का है पहला हक़ गगन पर,
हवा में देख कर गोली चलाना.
दरो दीवार खिड़की बन्द कर के,
किसी के राज़ से पर्दा उठाना.
सृजन
होगा वहाँ हर हल में बस,
जहाँ
मिट्टी वहां गुठली गिराना.
यहाँ आँसू के कुछ कतरे गिरे थे,
यहीं होगा मुहब्बत का ठिकाना.
लहर ले जाएगी मिट्टी बहा कर,
किनारों पर संभल कर घर बनाना.
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
बहुत आसान है सपने चुराना.
वाह .....अप्रतिम
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंन करना जिक्र सपनों का किसी से बहुत आसान है सपने चुराना बहुत बहुत सराहनीय ।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 02 दिसंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना, दिगम्बर भाई।
जवाब देंहटाएंयहाँ आँसू के कुछ कतरे गिरे थे,
जवाब देंहटाएंयहीं होगा मुहब्बत का ठिकाना.
वाह!!!
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
बहुत आसान है सपने चुराना.
बहुत ही लाजवाब गजल...एक से बढ़कर एक शेर....
वाहवाह....।
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
जवाब देंहटाएंबहुत आसान है सपने चुराना.
... बिल्कुल नई सी पंक्ति आदरणीय नसवा साहब। बहुत दिनों बाद आपकी ब्लॉग पर आ पाया, लेकिन नवीनता का वही एहसास पुनः मिला मुझे। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
सृजन होगा वहाँ हर हल में बस,
जवाब देंहटाएंजहाँ मिट्टी वहां गुठली गिराना
–अद्दभुत लेखन
बहुत सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग ग़ज़लयात्रा पर आपका स्वागत है। इसमें आप भी शामिल हैं-
जवाब देंहटाएंhttp://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post.html?m=1
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सादर,
- डॉ. वर्षा सिंह
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
जवाब देंहटाएंबहुत आसान है सपने चुराना.
गज़ब लिखते हैं सर आप !!
यहाँ आँसू के कुछ कतरे गिरे थे,
जवाब देंहटाएंयहीं होगा मुहब्बत का ठिकाना.....
न करना ज़िक्र सपनों का किसी से,
बहुत आसान है सपने चुराना
बहुत ही सुंदर लिखा है आपने.