मंगलवार, 22 दिसंबर 2020
ये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली
सागर की बाज़ुओं में उतरती हुई मिली.
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कितने दिनों के बाद लगा लौटना है अब ,
जवाब देंहटाएंबुग्नी में ज़िन्दगी जो खनकती हुई मिली.
बहुत खूब !! हमेशा की तरह सराहना से परे लाज़वाब ग़ज़ल।
सुनसान खूँटियों पे था कब्ज़ा कमीज़ का,
जवाब देंहटाएंछज्जे पे तेरी शाल लटकती हुई मिली..बहुत ही खूबसूरत अहसासों से सराबोर ग़ज़ल..।
सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर गजल
जवाब देंहटाएंतितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
जवाब देंहटाएंये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
बहुत खूब।
सुनसान खूँटियों पे था कब्ज़ा कमीज़ का,
जवाब देंहटाएंछज्जे पे तेरी शाल लटकती हुई मिली.
वाह!!!!
तितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
ये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
सरल सहज शब्दों में हृदयस्पर्शी भाव समेटे कमाल की गजल.....एक से बढ़कर एक शेर
वाह वाह...
यादों के सिलसिले भी, परिन्दे भी उड़ गए ,
जवाब देंहटाएंपेड़ों की सब्ज़ डाल जो सूखी हुई मिली.
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तितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
ये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
वाह! बहुत खूब! दिल में उतर जाते हैं हर शब्द
तितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
जवाब देंहटाएंये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
वाह !! बहुत खूब,लाजबाब सृजन,सादर नमन आपको
उम्दा अशआर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।।
वाह. सभी शेर बहुत उम्दा. दाद स्वीकारें.
जवाब देंहटाएंसादर नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपकी प्रविष्टि् की चर्चा शुक्रवार ( 25-12-2020) को "पन्थ अनोखा बतलाया" (चर्चा अंक- 3926) पर होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
धन्यवाद.
…
"मीना भारद्वाज"
ख्वाहिश जो गिर गई थी शिखर के करीब से ,
जवाब देंहटाएंसत्तर की उम्र में वो चिढ़ाती हुई मिली.
हृदयस्पर्शी ग़ज़ल
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ दिसंबर २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
दिल की गहराई से निकले जज्बातों को बयान करती उदास रंगों में रँगी सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंतितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
जवाब देंहटाएंये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
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बहुत खूब सर जी।
लाजवाब हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआ दिगंबर नासवा जी, बहुत सुंदर शेर लिखे गए है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेंद्रनाथ
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंदिल को छूने वाली ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह दिगंबर जी, ऐसी सुंदर ग़ज़लें कम ही लिखी जाती हैं. बिंबों के नए प्रयोग आए हैं इसमें. जितनी तारीफ़ की जाए कम पड़ेगी.
जवाब देंहटाएंग़ज़ब की ग़ज़ल। यह शेर ख़ास पसंद आया -
जवाब देंहटाएंसुनसान खूँटियों पे था कब्ज़ा कमीज़ का,
छज्जे पे तेरी शाल लटकती हुई मिली.
दाद स्वीकारें।
शानदार असरार हर शेर एहसास से लबरेज।
जवाब देंहटाएंउम्दा सृजन।
तितली ने जबसे इश्क़ चमेली पे लिख दिया ,
जवाब देंहटाएंये कायनात इश्क में डूबी हुई मिली.
लाजवाब पंक्तियाँ।
वाह
जवाब देंहटाएंवाह। ...क्या ताजगी है.....
जवाब देंहटाएंफिर से किसी की याद के लोबान जल उठे ,
जवाब देंहटाएंबरसों पुरानी याद जो भूली हुई मिली.,,,,,,,,,,निशब्द करती हुई लाईने,