मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है ...
कोई भी बात उकसाती नहीं है
न जाने क्यों वो इठलाती नहीं है
कभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
हमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है
मुझे लौटा दिया सामान सारा
है इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है
कहाँ अब दम रहा इन बाजुओं में
कमर तेरी भी बलखाती नहीं है
नहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है
तुझे पीता हूँ कश के साथ कब से
तू यादों से कभी जाती नहीं है
“छपक” “छप” बारिशों की दौड़ अल्हड़
गली में क्यों नज़र आती नहीं है
अभी भी ओढ़ती है शाल नीली
मगर फिर भी वो इठलाती नहीं है
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, दिगम्बर भाई।
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब..उमर का तकाजा ही होगा वरना ..और तो क्या
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 10 दिसम्बर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंमुझे लौटा दिया सामान सारा
जवाब देंहटाएंहै इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है
कहाँ अब दम रहा इन बाजुओं में
कमर तेरी भी बलखाती नहीं है...मनोहारी पंक्तियाँ...।सुंदर अभिव्यक्ति..।
शुरू से अंत तक के शेर पर
जवाब देंहटाएंवाहः वाहः
वाह!दिगंबर जी ,बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना 👌👌
जवाब देंहटाएंमुझे लौटा दिया सामान सारा
जवाब देंहटाएंहै इक “टैडी” जो लौटाती नहीं है
वाह!!!
नहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब गजल एक से बढ़कर एक शेर
वाह वाह...
सुन्दर सृजन।
जवाब देंहटाएंवाह!सारे अस्आर लाजवाब अर्थपूर्ण
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन।
आदरणीय,
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग "ग़ज़लयात्रा" में आपका स्वागत है। इसमें आप भी शामिल हैं-
https://ghazalyatra.blogspot.com/2020/12/blog-post_70.html?m=1
गंगा | कुछ ग़ज़लें | कुछ शेर | डॉ. वर्षा सिंह
ग़ज़लों में गंगा की उपस्थिति
- डॉ. वर्षा सिंह
बहुत खूब.
जवाब देंहटाएंसमय के साथ सब बदलता चला जाता है लेकिन मन को उसी रवानगी में जीना भाता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति
बहुत उम्दा. कितना प्यारा शेर है...
जवाब देंहटाएंनहीं छुपती है च्यूंटी मार कर अब
दबा कर होठ शर्माती नहीं है
कभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
जवाब देंहटाएंहमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है....अगर आप लाख लोगों को चुनें तो वो स्वयं भी ऐसी ही भावनाएं बताएँगे जैसी आपने लिखी हैं। लेकिन आप भावनाओं को शब्दों में बाँध देते हैं। इसीलिए मैं हमेशा मानता आया हूँ कि आप हर एक व्यक्ति के गजलकार हैं , अद्भुत है आपकी लेखनी
बेहतरीन और लाज़वाब..स्मृतियों की धरोहर बड़ी अनूठी होती है । भावपूर्ण सृजन ।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर /लाजवाब ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंयादों के कोहरे से लिपटी सी ।
बेहतरीन और भावपूर्ण
जवाब देंहटाएंइस ग़ज़ल में मुझे ५-६ वर्ष पीछे कर दिया है...जब मुझे हर रोज़ आपकी नयी ग़ज़ल का इंतज़ार रहता था.....
जवाब देंहटाएंकभी दौड़े थे जिन पगडंडियों पर
हमें किस्मत वहाँ लाती नहीं है
ऐसा लगता है ये तो मेरे ह्रदय की ही बात है.
*ग़ज़ल ने
जवाब देंहटाएंअभी भी ओढ़ती है शाल नीली
जवाब देंहटाएंमगर फिर भी वो इठलाती नहीं ,,,,,,क्या बात है बहुत सुंदर ।