चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब ...
होट बजे थे उठा जिगर में शोला जब.
नंगे पाँव चली थी कुड़ी पटोला जब.
आसमान में काले बादल गरजे थे,
झट से रिब्बन हरा-हरा सा खोला जब.
टैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
दिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.
बीस नहीं मुझको इक्किस ही लगती हो,
नील गगन के चाँद को तुझसे तोला जब.
इश्क़ लिखा था जंगली फूल के सीने पर,
बैठा, उड़ा, हरी तितली का टोला जब.
चूड़ी में, आँखों में, प्रेम की हाँ ही थी,
इधर, उधर, सर कर के ना-ना बोला जब.
चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
चम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब.
वाह
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना आज शनिवार 20 मार्च 2021 को शाम 5 बजे साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन " पर आप भी सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद! ,
आज तो ग़ज़ल के साथ होली खेली जा रही नासवा जी ,
जवाब देंहटाएंमस्त ग़ज़ल ...
बहुत ख़ूब,
जवाब देंहटाएंशब्द शब्द मुस्काता हुआ।
बहुत कुछ कह जाता हुआ।।नायाब ग़ज़ल।
अरे गजब...पढ़ते होठों पर मुस्कान आ गई...मजा आ गया😂
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंचीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
जवाब देंहटाएंचम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब
प्यार की मिठास परोसने का नया बयान. बहुत खूब दिगंबर जी.
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंवाह ! शब्द शब्द से चाशनी से टपक रही है जैसे, मौसम का असर होने लगा है, उम्दा गजल !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर मधुर गजल |
जवाब देंहटाएंटैली-पैथी इसको ही कहते होंगे,
जवाब देंहटाएंदिखती हो तुम दिल को कभी टटोला जब.
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वाह-वाह क्या बात है! बहुत खूब सर जी।
चीनी सच में थी या ऊँगली घूमी थी,
जवाब देंहटाएंचम्मच कहीं नहीं था शरबत घोला जब.
वाह