छू लिया तुझको तो शबनम हो गई ...
सच की जब से रौशनी कम हो गई.
झूठ की आवाज़ परचम हो गई.
दिल का रिश्ता है, में
क्यों न मान लूं,
मिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
कागज़ों का खेल चालू हो गया,
आंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई.
मैं ही मैं बस सोचता था आज
तक,
दुसरे “मैं” से मिला हम हो
गई.
फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
क्या कहूँ तुझको तु मौसम हो गई.
बूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.
दिल का रिश्ता है, में क्यों न मान लूं,
जवाब देंहटाएंमिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
बहुत खूब! अति सुन्दर...,हमेशा की तरह लाजवाब और अनुपम सृजन।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।
जवाब देंहटाएंबूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई...वाह!
लाजवाब
जवाब देंहटाएंकागज़ों का खेल चालू हो गया,
जवाब देंहटाएंआंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई....
कोई शेर ऐसा नहीं कि जिस पर वाह ना निकले!
मैं ही मैं बस सोचता था आज तक,
दूसरे “मैं” से मिला हम हो गई...
जवाब देंहटाएंबूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, दिगम्बर भाई।
फूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ तुझको तु मौसम हो गई.
वाह ! सुभान अल्लाह, उस एक के सिवा यहाँ दूसरा है ही नहीं कोई, उम्दा गजल !
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय गजल
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 24 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह!दिगंबर जी ,बहुत ही उम्दा सृजन ।
जवाब देंहटाएंफूल ,खुशबू ,बारिश ,धूप सभी में तू ही तू ..।वाह क्या बात है ।
मैं ही मैं बस सोचता था आज तक,
जवाब देंहटाएंदुसरे “मैं” से मिला हम हो गई.
वाह!!!
बहुत ही लाजवाब गजल हमेशा की तरह..
एक से बढ़कर एक शेर।
दिल का रिश्ता है, में क्यों न मान लूं,
जवाब देंहटाएंमिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
वाह !!लाज़बाब ,सादर नमन
दिल का रिश्ता है, में क्यों न मान लूं,
जवाब देंहटाएंमिलके मुझसे आँख जो नम हो गई.
जहाँ दिल के रिश्ते होते हैं वहाँ आंखें नम हो ही जाती हैं
कागज़ों का खेल चालू हो गया,
आंच बूढ़े की जो मद्धम हो गई.
कितनी गहरी बात , पिता मारने को पड़ा और वसीयत का खेल चालू
नासवा जी आप गज़ब ही लिखते हैं ।
हर शेर मुक्कमल ।
बस वाह वाह वाह ।
मरने पढा जाय
हटाएंसुन्दर ग़ज़ल....
हटाएंमार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा अस्आर।
जवाब देंहटाएंलाजवाब।
सदा की भांति ... अति सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंउमादा अशआर।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल।
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सालों बाद वापस आया हूँ और पुराने यारों को देखकर तसल्ली हुई कि आज भी कुछ जाने पहचाने लोग हैं। और जब आपकी ग़्हज़लों की वही धार दिखाई देती है तो लगता है पिछले समय में कितना कुछ खोया है मैंने। ख़ैर अब तो आना जाना लगा रहेगा! इस बेहत्रीन ग़्हज़ल के लिये मेरी बधाई स्वीकार करें!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह खूबसूरत गजल, हर एक शेर लाजवाब, सादर नमन, बहुत बहुत बधाई हो
जवाब देंहटाएंशानदार नाज़ुक ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंवाह, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंफूल, खुशबू, धूप, बारिश, तू-ही-तू,
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ तुझको तू मौसम हो गई.
बूँद इक मासूम बादल से गिरी,
छू लिया तुझको तो शबनम हो गई.
बेहद दिलचस्प ग़ज़ल... साधुवाद
कृपया "ग़ज़लयात्रा" की इस लिंक पर भी पधार कर मेरा उत्साहवर्धन करने का कष्ट करें....
फाग गाता है ईसुरी जंगल
हार्दिक शुभकामनाएं.🙏
आपकी इस गजल में जवानी से बुढ़ापे तक,का सफर तो है ही,सुंदर दृश्यों का संतुलन भी,दर्द भी,और रिश्तों का अहसास भी । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंहोली पर्व की दिगम्बर जी आपको हार्दिक शुभकामनाएं, शुभ प्रभात, नमन
जवाब देंहटाएंहोली पर्व पर वंदन...
जवाब देंहटाएंअभिनंदन ...
रंग गुलाल का टीका-चंदन...
होली की ढेर सारी रंगबिरंगी शुभकामनाएं !!!
आदर सहित,
डॉ. वर्षा सिंह
दिल का रिश्ता है, में क्यों न मान लूं,
जवाब देंहटाएंमिलके मुझसे आँख जो नम हो गई......भावपूर्ण पंक्तियां
सच की जब से रौशनी कम हो गई.
जवाब देंहटाएंझूठ की आवाज़ परचम हो गई.
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सच्चाई बयाँ करती पँक्तियों वाली गजल। आपको बधाई और शुभकामनाएँ।
वाह! सभी शेर दाद के क़ाबिल। बधाई।
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