स्वप्न मेरे: चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें ...

बुधवार, 31 मार्च 2021

चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें ...

ये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
घरों के साथ ही दिल में खिची हैं दीवारें
 
लगे जो जोर से धक्के गिरी हैं दीवारें
कदम-कदम जो चले खुद हटी हैं दीवारें
 
सभी ने मिल के ये सोचा तो कामयाबी है 
जहाँ है सत्य वहीं पर झुकी हैं दीवारें
 
इन्हें तो तोड़ ही देना अभी तो हैं कच्ची    
हमारे बीच जो उठने लगी हैं दीवारें
 
ये सच है खुद ही इसे आजमा के समझोगे
छुआ जो इश्क़ ने दिल से मिटी हैं दीवारें
 
ये बोलती हैं कई बार कुछ इशारों से
छुपा के राज़ कहाँ रख सकी हैं दीवारें
 
यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
 
किसी ने बीज यहाँ बो दिए हैं नफरत के
सुना है शह्र में तबसे उगी हैं दीवारें
 
तुम्हें दिया है निमंत्रण तुम्हें ही आना है 
चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें

32 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद खूबसूरत ग़ज़ल । दिलों में नहीं उठनी चाहियें दीवारें ।
    यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें।
    ये पढ़ कर तो मन भर आया । कितनी सहजता से लिखा आपने । हर शेर अपने आप मे मुक्कमल । वाह ।

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  2. बहुत अच्छी रचना है...खूब बधाई

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  3. हर शेर अपने में सम्पूर्ण... बेहतरीन व लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।

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  4. लगे जो जोर से धक्के गिरी हैं दीवारें
    कदम-कदम जो चले खुद हटी हैं दीवारें

    सभी ने मिल के ये सोचा तो कामयाबी है
    जहाँ है सत्य वहीं पर झुकी हैं दीवारें

    वाह!!!
    दीवारें उठने से लेकर गिरने तक ...दिल से लेकर मंजिल तक...यादों से लेकर नफरत तक..बोने से लेकर ढ़ोने तक ...क्या खूब
    सजाई हैं आपने ये दीवारें...
    एक से बढ़कर एक शेर...बहुत ही लाजवाब गजल।

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  5. नासवा जी आपकी कुछ रचनाओं में प्रतिक्रिया नहीं हो पा रही...टिप्पणी बॉक्स नहीं खुल रहा।

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  6. यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें

    लाजवाब...
    यूं तो पूरी ग़ज़ल शानदार है।

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  7. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2085...किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें ) पर गुरुवार 01 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. ये बोलती हैं कई बार कुछ इशारों से
    छुपा के राज़ कहाँ रख सकी हैं दीवारें

    यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें.. कितना कुछ,इन पंक्तियों ने का दिया, निःशब्द हूं,सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।

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  9. बेहतरीन सृजन,हर शेर लाजवाब कुछ कहता सा।

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  10. सभी ने मिल के ये सोचा तो कामयाबी है
    जहाँ है सत्य वहीं पर झुकी हैं दीवारें

    यूँ तो हर शेर में दीवारों की कोई न कोई खासियत बहुत खूबसूरती से उकेरी गई है, पर मिलकर सामना करें सब तो सत्य के आगे कोई नहीं टिक सकता, उम्दा सृजन !

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  11. नफरत बोने वाले की तो कमी नही है सुन्दर लिखा है आपने

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  12. ये बोलती हैं कई बार कुछ इशारों से
    छुपा के राज़ कहाँ रख सकी हैं दीवारें
    वाह बेहतरीन ग़ज़ल 👌👌

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  13. बेमिसाल और लाजवाब ग़ज़ल।
    अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।

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  14. इस निमंत्रण पर तो कैसी भी दीवार ढह जाए । बेहद उम्दा ।

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  15. ये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
    घरों के साथ ही दिल में खिची हैं दीवारें
    ---------------
    बहुत खूब सर। बधाईयाँ सर जी।

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  16. लाजवाब,बेहतरीन गज़ल, कुछ बातें तो मन को छू गई, बधाई हो दिगम्बर जी

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  17. बहुत प्यारी सामयिक रचना , बधाई !!

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  18. यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें

    यह शे'र तो दीवारों में जान डाल देता है। बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल।

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  19. बहुत उम्दा ग़ज़ल। ये शेर सीधे मन तक गया।

    यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें

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  20. यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
    दीवारों से जुड़े कितने सारे आयाम साकार हो गए!!!
    दो पंक्तियाँ मैं भी जोड़ दूँ :
    कहता है कौन,कि ये ना सुनती,ना कहती हैं।
    इतिहास का हर राज बताती हैं दीवारें !!!

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  21. वाह ! दीवारों पर नायाब चिंतन से भरपूर रचना | जब यादों की दीवार पर मधुर चित्र और किसी की प्रेम की खुशबू से सराबोर शाल टंगी हो तो ये दीवारें कितनी हसीन लगती पर यही जब मन के आँगन में खड़ी होती हैं तो इनका रंग बहुत विद्रूप होता है | एक भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|सादर

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  22. दिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना।

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  23. इन्हें तो तोड़ ही देना अभी तो हैं कच्ची    
    हमारे बीच जो उठने लगी हैं दीवारें

    वाह ......

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  24. इन्हें तो तोड़ ही देना अभी तो हैं कच्ची
    हमारे बीच जो उठने लगी हैं दीवारें

    यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
    किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें

    किसी ने बीज यहाँ बो दिए हैं नफरत के
    सुना है शह्र में तबसे उगी हैं दीवारें

    बढ़िया

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