बुधवार, 31 मार्च 2021
चले भी आओ के दिल की खुली हैं दीवारें ...
ये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
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बेहद खूबसूरत ग़ज़ल । दिलों में नहीं उठनी चाहियें दीवारें ।
जवाब देंहटाएंयहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें।
ये पढ़ कर तो मन भर आया । कितनी सहजता से लिखा आपने । हर शेर अपने आप मे मुक्कमल । वाह ।
बहुत अच्छी रचना है...खूब बधाई
जवाब देंहटाएंहर शेर अपने में सम्पूर्ण... बेहतरीन व लाजवाब भावाभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंलगे जो जोर से धक्के गिरी हैं दीवारें
जवाब देंहटाएंकदम-कदम जो चले खुद हटी हैं दीवारें
सभी ने मिल के ये सोचा तो कामयाबी है
जहाँ है सत्य वहीं पर झुकी हैं दीवारें
वाह!!!
दीवारें उठने से लेकर गिरने तक ...दिल से लेकर मंजिल तक...यादों से लेकर नफरत तक..बोने से लेकर ढ़ोने तक ...क्या खूब
सजाई हैं आपने ये दीवारें...
एक से बढ़कर एक शेर...बहुत ही लाजवाब गजल।
नासवा जी आपकी कुछ रचनाओं में प्रतिक्रिया नहीं हो पा रही...टिप्पणी बॉक्स नहीं खुल रहा।
जवाब देंहटाएंयहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
जवाब देंहटाएंकिसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
लाजवाब...
यूं तो पूरी ग़ज़ल शानदार है।
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2085...किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें ) पर गुरुवार 01 अप्रैल 2021 को साझा की गई है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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जवाब देंहटाएंये बोलती हैं कई बार कुछ इशारों से
छुपा के राज़ कहाँ रख सकी हैं दीवारें
यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें.. कितना कुछ,इन पंक्तियों ने का दिया, निःशब्द हूं,सुंदर रचना के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
वाह
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सृजन,हर शेर लाजवाब कुछ कहता सा।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय
जवाब देंहटाएंसभी ने मिल के ये सोचा तो कामयाबी है
जवाब देंहटाएंजहाँ है सत्य वहीं पर झुकी हैं दीवारें
यूँ तो हर शेर में दीवारों की कोई न कोई खासियत बहुत खूबसूरती से उकेरी गई है, पर मिलकर सामना करें सब तो सत्य के आगे कोई नहीं टिक सकता, उम्दा सृजन !
नफरत बोने वाले की तो कमी नही है सुन्दर लिखा है आपने
जवाब देंहटाएंये बोलती हैं कई बार कुछ इशारों से
जवाब देंहटाएंछुपा के राज़ कहाँ रख सकी हैं दीवारें
वाह बेहतरीन ग़ज़ल 👌👌
बेमिसाल और लाजवाब ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंअन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस की बधाई हो।
इस निमंत्रण पर तो कैसी भी दीवार ढह जाए । बेहद उम्दा ।
जवाब देंहटाएंये सोच-सोच के हैरान सी हैं दीवारें
जवाब देंहटाएंघरों के साथ ही दिल में खिची हैं दीवारें
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बहुत खूब सर। बधाईयाँ सर जी।
लाजवाब,बेहतरीन गज़ल, कुछ बातें तो मन को छू गई, बधाई हो दिगम्बर जी
जवाब देंहटाएंमुग्ध करती ग़ज़ल - - शुभकामनाओं सह।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत गजल
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत प्यारी सामयिक रचना , बधाई !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंयहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
जवाब देंहटाएंकिसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
यह शे'र तो दीवारों में जान डाल देता है। बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल।
बहुत उम्दा ग़ज़ल। ये शेर सीधे मन तक गया।
जवाब देंहटाएंयहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
man ko chu jane vali rachana.
जवाब देंहटाएंमनोहर रचना है Thanks You.
जवाब देंहटाएंआपको Thanks you Very Much.
बहुत अच्छा लिखते हाँ आप
हम लगातार आपकी हर पोस्ट को पढ़ते हैं
दिल प्रसन्न हो गया पढ़ के
यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
जवाब देंहटाएंकिसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
दीवारों से जुड़े कितने सारे आयाम साकार हो गए!!!
दो पंक्तियाँ मैं भी जोड़ दूँ :
कहता है कौन,कि ये ना सुनती,ना कहती हैं।
इतिहास का हर राज बताती हैं दीवारें !!!
वाह ! दीवारों पर नायाब चिंतन से भरपूर रचना | जब यादों की दीवार पर मधुर चित्र और किसी की प्रेम की खुशबू से सराबोर शाल टंगी हो तो ये दीवारें कितनी हसीन लगती पर यही जब मन के आँगन में खड़ी होती हैं तो इनका रंग बहुत विद्रूप होता है | एक भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|सादर
जवाब देंहटाएंदिल को छूती बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंइन्हें तो तोड़ ही देना अभी तो हैं कच्ची
जवाब देंहटाएंहमारे बीच जो उठने लगी हैं दीवारें
वाह ......
इन्हें तो तोड़ ही देना अभी तो हैं कच्ची
जवाब देंहटाएंहमारे बीच जो उठने लगी हैं दीवारें
यहीं पे शाल टंगी थी यहाँ पे थी फोटो
किसी की याद से कितना जुड़ी हैं दीवारें
किसी ने बीज यहाँ बो दिए हैं नफरत के
सुना है शह्र में तबसे उगी हैं दीवारें
बढ़िया