सोमवार, 26 जुलाई 2021
इत-उत यूँ ही भटकती है मुहब्बत तेरी ...
अब लगी, तब ये लगी, लग ही गई लत तेरी I
बुधवार, 14 जुलाई 2021
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया ...
बादलों के पार तारों में कहीं छुड़वा दिया I
चन्द टूटी ख्वाहिशों का दर्द यूँ बिखरा दिया I
एक बुन्दा क्या मिला यादों की खिड़की खुल गई,
वक़्त ने बरसों पुराने इश्क़ को सुलगा दिया I
करवटों के बीच सपनों की ज़रा दस्तक हुई,
रात ने झिर्री से तीखी धूप को सरका दिया I
आसमानी चादरें माथे पे उतरी थीं अभी,
एक तितली ने पकड़ कर चाँद को बैठा दिया I
प्रेम का सच आँख से झरता रहा आठों पहर,
और होठों के सहारे झूठ था, बुलवा दिया I
पेड़ ने पत्ते गिराए पर हवा के ज़ोर पे,
और सारा ठीकरा पतझड़ के सर रखवा दिया I
एक चरवाहे की मीठी धुन पहाड़ी से उठी,
चाँद उतरा, बर्फ पिघली, ये जहाँ महका दिया I
गुरुवार, 1 जुलाई 2021
दिल से अपने पूछ के देखो ज़रा ...
बात उन तक तो ये
पहुँचा दो ज़रा.
शर्ट का टूटा बटन
टांको ज़रा.
छा रही है कुछ
उदासी देर से,
बज उठो मिस कॉल
जैसे तो ज़रा.
बात गर करनी नहीं
तो मत करो,
चूड़ियों को बोल
दो, बोलो ज़रा.
खिल उठेगा यूँ ही
जंगली फूल भी,
पंखुरी पे नाम तो
छापो ज़रा.
तुमको लग जाएगी
अपनी ही नज़र,
आईने में भी कभी
झाँको ज़रा.
तितलियाँ जाती
हुई लौट आई हैं,
तुम भी सीटी पे
ज़रा, पलटो ज़रा.
उफ़, लिपस्टिक का ये कैसा दाग है,
इस मुए कौलर को
तो पौंछो ज़रा.
खेल कर, गुस्सा करो, क्या ठीक है,
हार से पहले कहो,
हारो ज़रा.
बोलती हो,
सच में क्या छोड़ोगी तुम,
दिल से अपने पूछ
के देखो ज़रा.
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