शेर बोली पर हैं मिसरे बेचता हूँ ...
टोपियें, हथियार, झण्डे बेचता हूँ.
चौंक पे हर बार झगड़े बेचता हूँ.
इस तरफ हो उस तरफ ... की फर्क यारा,
हर किसी को मैं तमंचे बेचता हूँ.
सच खबर ... अफवाह झूठी ... या मसाला,
थोक में हरबार ख़बरें बेचता हूँ.
चाँदनी पे वर्क चाँदी का चढ़ा कर,
एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ.
पक्ष वाले ... सुन विपक्षी ... तू भी ले जा,
आइनों के साथ मुखड़े बेचता हूँ.
खींच कर बारूद की सीमा ज़मीं पर,
खून से लथपथ में नक़्शे बेचता हूँ.
दी सिफत लिखने की पर फिर भूख क्यों दी,
शेर बोली पर हैं मिसरे बेचता हूँ.
क्या बात है! बहुत खूब...
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(२८-१०-२०२१) को
'एक सौदागर हूँ सपने बेचता हूँ'(चर्चा अंक-४२३०) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
लाजवाब
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 28 अक्टूबर 2021 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
नासवा जी बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसच है बिकाऊ टाइप लोग सबकुछ बिकाऊ समझते हैं, उन्हें पैसे से मतलब, उनके के लिए क्या इधर क्या उधर, उन्हें तो अपना मतलब निकालना होता है.............,
जवाब देंहटाएंबहुत सही सामयिक रचना
वाह! गज़ब तीखा व्यंग्य हर शेर आज की मानसिकता को दर्शाता सा ।
जवाब देंहटाएंबेमिसाल/बेहतरीन।
इस तरफ हो उस तरफ ... की फर्क यारा,
जवाब देंहटाएंहर किसी को मैं तमंचे बेचता हूँ.
वाह!!!
पक्ष वाले ... सुन विपक्षी ... तू भी ले जा,
आइनों के साथ मुखड़े बेचता हूँ.
अद्भुत एवं लाजवाब... कमाल की गजल हर शेर धारदार ...
वाह वाह...
आ0 बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
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