परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है ...
दो बूँद गिरा दे जो अभी उसके पास है,.
बादल से कहो आज मेरी छत उदास है.
तबका न कोई चैनो-अमन से है रह रहा,
सुनते हैं मगर देश में अपने विकास है.
ज़ख्मी है बदन साँस भी मद्धम सी चल रही,
टूटेगा मेरा होंसला उनको क़यास है.
था छेद मगर फिर भी किनारे पे आ लगी,
सागर से मेरी कश्ती का रिश्ता जो ख़ास है.
दीवार खड़ी कर दो चिरागों को घेर कर,
कुछ शोर हवाओं का मेरे आस पास है.
छिड़का है फिजाओं में लहू जिस्म काट कर,
तब जा के सवेरे का सिन्दूरी लिबास है.
कह दो की उड़ानों पे न कब्ज़ा किसी का हो,
परवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है.
तबका न कोई चैनो-अमन से है रह रहा,
जवाब देंहटाएंसुनते हैं मगर देश में अपने विकास है.
कैसे हो अमन चैन जब नफरत है हर जगह
दिखता नही अब किसी को कितना विकास है ।
क्षमा सहित 🙏🙏🙏🙏
पूरी ग़ज़ल कमाल की ।
आपकी लिखी रचना सोमवार. 17 जनवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
दो बूँद गिरा दे जो अभी उसके पास है,.
जवाब देंहटाएंबादल से कहो आज मेरी छत उदास है.
बहुत कोमल अहसास
बहुत बहुत सुन्दर लाजवाब गजल
जवाब देंहटाएंसर बहुत सुंदर लाजवाब ग़ज़ल है 👏👏👏। सर आपने अपनी ग़ज़ल की हर एक पंक्ति को बहुत ही खूबसूरत अर्थपूर्ण शब्दों से सजाया है।
जवाब देंहटाएंलाजवाब !!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब आदरनीय नासवा जी ।हर शेर नायाब ।
सादर
हर बार की तरह गूढ़ अर्थ समेटे उम्दा सृजन सामायिक परिस्थितियों से कलम रूबरू है ।
जवाब देंहटाएंसाधुवाद।
था छेद मगर फिर भी किनारे पे आ लगी,
जवाब देंहटाएंसागर से मेरी कश्ती का रिश्ता जो ख़ास है.
वाह!!!
दीवार खड़ी कर दो चिरागों को घेर कर,
कुछ शोर हवाओं का मेरे आस पास है.
कमाल की गजल...
बहुत ही लाजवाब
एक से बढ़कर एक शेर
वाह वाह!!!!
👏👏👏🙏🙏🙏
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (18-1-22) को "दीप तुम कब तक जलोगे ?" (चर्चा अंक 4313)पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
--
कामिनी सिन्हा
बेहतरीन गज़ल सर,हर बंध बेहद गहन अर्थ लिए हुए।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत सुंदर गजल
जवाब देंहटाएंथाछेद मगर फिर भी किनारे पे आ लगी,
जवाब देंहटाएंसागर से मेरी कश्ती का रिश्ता जो ख़ास है.
दीवार खड़ी कर दो चिरागों को घेर कर,
कुछ शोर हवाओं का मेरे आस पास है.
क्या बात है। शानदार शेरों से सजी सुंदर प्रस्तुति दिगम्बर जी। हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 🙏🙏
रचना बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंपर छत की उदासी नहीं !
बादल जब तक छिडकाव करते
दो-चार पतंगें उड़ा लेते !
बहुत खूब !
वाह दिगंबर नासवा जी !
जवाब देंहटाएंपरिंदों की उड़ान भले ही बदहवास हो लेकिन आपकी काव्यात्मक कल्पना की उड़ान तो बहुत ऊंची है !
शानदार ग़ज़ल सर जी।
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजबाब गजल।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन सुंदर भावपूर्ण रचना आदरणीय
जवाब देंहटाएंसुंदर
जवाब देंहटाएंवाह!गज़ब सर।
जवाब देंहटाएंसादर
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जवाब देंहटाएंकह दो की उड़ानों पे न कब्ज़ा किसी का हो,
जवाब देंहटाएंपरवाज़ परिंदों की अभी बद-हवास है.
बेहतरीन अशआरों में पिरोयी नायाब ग़ज़ल ।
बेहतरीन ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंNice Post Good Informatio ( Chek Out )
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