सफ़र ज़िन्दगी का ...
ये दिन, ये शाम, ये रात, चाँद या
फिर ये सूरज
क्या सच में सब ढलते हैं या ढलती है उम्र
वैसे तो जाता नहीं ये रास्ता भी कहीं
हम ही चल के गुज़र जाते हैं कभी न लौटने के लिए
ये जिंदगी भी तो गुज़र रही है तेरे बिना
हाँ कुछ यादें साथ चलती हैं ... जैसे चलता है तारों का
कारवाँ
लम्हों के अनगिनत जुगनू ... जलते बुझते हैं सफ़र में
पर साथ नहीं देते जैसे समय भी नहीं देता साथ
काली सड़क पे झूलते हरे पत्तों के कैनवस
और कैनवस की डालियों पर बैठे अनगिनत रंगीन पंछी
झक्क नीले रंग में रंगा स्तब्ध आकाश
और आकाश पर रुके कायनात के कुछ किरदार
ठिठका पवन और चन्द आवाजों की आवाजें सड़क के दूसरी छोर पर
घने कोहरे में बनता बिगड़ता तेरा बिम्ब इशारा करता है चले आने
का
हालांकि ये सब तिलिस्म है ... फिर भी चलने का मन करता है
यूँ भी उम्र तमाम करने को अकसर जरूरत रहती है किसी बहाने की
वाकई सूरज नहीं ढलता, ढल जाता है एक और दिन हमारी उम्र का, बेहद खूबसूरत अहसासों को शब्दों में ढाला है आपने, यह सारा जगत एक माया या तिलिस्म ही तो है, और प्रकृति की सुंदरता इसे मोहक बनाती है
जवाब देंहटाएंवाह शानदार जज़्बा, बहुत ख़ूब!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंवैसे तो जाता नहीं ये रास्ता भी कहीं
जवाब देंहटाएंहम ही चल के गुज़र जाते हैं कभी न लौटने के लिए
सच्चाई कहती नज़्म । बहुत खूब
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति आईने की तरह साफ और सुंदर जिंदगी के सफर को दर्शा रही है। बहुत ही सुन्दर पंक्तियां हैं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (03-06-2022) को चर्चा मंच "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक- 4450) (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (03-06-2022) को चर्चा मंच "दो जून की रोटी" (चर्चा अंक- 4450) (चर्चा अंक-4395) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुंदर एहसासों से परिपूर्ण सुंदर रचना, दिगम्बर भाई।
जवाब देंहटाएंशानदार रचना।
जवाब देंहटाएंवैसे तो जाता नहीं ये रास्ता भी कहीं
जवाब देंहटाएंहम ही चल के गुज़र जाते हैं कभी न लौटने के लिए
जानते हुए सब चल रहे हैं जिंदगी के रास्ते...
सही कहा तिलिस्म !
हालांकि ये सब तिलिस्म है ... फिर भी चलने का मन करता है
यूँ भी उम्र तमाम करने को अकसर जरूरत रहती है किसी बहाने की
बहुत ही सुन्दर गहन चिंतनपरक लाजवाब सृजन ।
वाकई सब जानते हुए भी मंजिल का रास्ता तय करना पड़ता है
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सुंदर रचना
बहोत ख़ूबसूरत -गहरे आध्यात्मिक चिंतनकी सौंदर्यमयी काव्यात्मक अभिव्यक्ति ! अभिनंदन, दिगम्बर जी !👍🙏
जवाब देंहटाएंकाली सड़क पे झूलते हरे पत्तों के कैनवस
जवाब देंहटाएंऔर कैनवस की डालियों पर बैठे अनगिनत रंगीन पंछी
झक्क नीले रंग में रंगा स्तब्ध आकाश
और आकाश पर रुके कायनात के कुछ किरदार ।
बहुत सुंदर सृजन ।
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत खूब . उम्र तो गुजरती ही है बस कुछ खूबसूरत बहाने हों मन को भरमाए रखने तो सफर आसान होजाता है .
जवाब देंहटाएंहालांकि ये सब तिलिस्म है ... फिर भी चलने का मन करता है
जवाब देंहटाएंयूँ भी उम्र तमाम करने को अकसर जरूरत रहती है किसी बहाने की
बहुत खूब!.
इन अशआरों का एक-एक हर्फ़ बेशक़ीमती है। गुलज़ार साहब की याद दिला दी दिगंबर जी आपने।
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