शिव ...
प्रार्थना के कुछ शब्द
जो नहीं पहुँच पाते ईश्वर के पास
बिखर जाते हैं आस्था की कच्ची ज़मीन पर
धीरे धीरे उगने लगते हैं वहाँ कभी न सूखने वाले पेड़
सुना है प्रेम रहता है वहाँ खुशबू बन कर
वक़्त के साथ जब
उतरती हैं कलियाँ
तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप ले कर
आँखें मुध्ने लगती हैं, हाथ खुद-ब-खुद उठ जाते हैं
उसे इबादत ... या जो चाहे नाम दे देना
खुशबू में तब्दील हो कर शब्द, उड़ते हैं कायनात में
मैं भी कुछ ओर तेरे करीब आने लगता हूँ
तू ही तू सर्वत्र ... तुझ में ईश्वर, ईश्वर में तू
उसकी माया, तेरा मोह, चेतन, अवचेतन
मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का
जवाब देंहटाएं“मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का”
यही सत्य है और जो सत्य है वही शिव…,गहन भावाभिव्यक्ति ।
वाह
जवाब देंहटाएंमैं भी कुछ ओर तेरे करीब आने लगता हूँ
जवाब देंहटाएंतू ही तू सर्वत्र ... तुझ में ईश्वर, ईश्वर में तू
उसकी माया, तेरा मोह, चेतन, अवचेतन
मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर♥️
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 16 जून 2022 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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सुना है प्रेम रहता है वहाँ खुशबू बन कर
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ जब उतरती हैं कलियाँ
तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप ले कर
प्रार्थना के बिखरे शब्दों से उगता है प्रेम!!!
अद्भुत भाव
बहुत ही लाजवाब
वाह!!!
जवाब देंहटाएंतू ही तू सर्वत्र ... तुझ में ईश्वर, ईश्वर में तू
उसकी माया, तेरा मोह, चेतन, अवचेतन
मैं ही शिव, मैं ही सुन्दर, एकम सत्य जगत का
बेहद खूबसूरत सृजन 👌👌
प्रार्थना कभी व्यर्थ नहीं जाती
जवाब देंहटाएंसच है ईश्वर सर्वत्र है जब इसका आभास होता है तो हमें बहुत दूर उधर-उधर भटकने की जरुरत नहीं होती। हम सबके बीच ही ईश्वर विद्यमान रहता है बस हमें उन्हें समझने और देखने की जररत होती है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
बहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति दिगम्बर जी।सरलता और सहजता से प्रेम की महिमा बढ़ाती ये रचना प्रेम का उद्दात भाव दर्शाती है।सच में अपनसही रूप में नज़र ना आकर भी ईश्वर किसी अपने ही समकक्ष किसी इन्सान को हमारे जीवन में भेज देता है।और यदि प्रार्थना के स्वर परम सत्ता तक ना पहुंचें तो कभी ना सूखने वाले वृक्ष उग ही नही सकते।वह तो कण कण में व्याप्त है।एक अत्यंत सार्थक और मार्मिक सराहनीय रचना के लिए बधाई और शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंप्रार्थना के कुछ शब्द
जवाब देंहटाएंजो नहीं पहुँच पाते ईश्वर के पास
बिखर जाते हैं आस्था की कच्ची ज़मीन पर
धीरे धीरे उगने लगते हैं वहाँ कभी न सूखने वाले पेड़////👌👌👌🙏🙏
बहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-06-2022) को चर्चा मंच "अमलतास के झूमर" (चर्चा अंक 4464) पर भी होगी!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
एहसासों का मंजुल समर्पित भाव।
जवाब देंहटाएंसुंदर कोमल सृजन।
बहुत ही सुंदर सृजन।
जवाब देंहटाएंकोमल भावों से सजी प्रेम का एहसास में पगी प्रार्थना।
सादर
बहुत ही अर्थदर्शी अभिव्यक्ति, वाह वाह!
जवाब देंहटाएंमैं ही शिव मैं ही सत्य ,सुंदर रचना लगी यह
जवाब देंहटाएंईश्वर सर्वत्र है...जिसने अपने प्रेम में ही पा लिया...उसे कहीं भटकने की ज़रूरत नहीं पड़ती...नासवा जी हमेशा की तरह...अनुपम कृति...👏👏👏
जवाब देंहटाएंवाह ,.. ऐसे शब्द जो कभी न सूखने वाले पेड़ बन जाते हैं ,फूल और खुशबू के रूप में बदल जाते हैं उनमें ईश्वर स्वयं ही आ बसते हैं .
जवाब देंहटाएंGreat Word's
जवाब देंहटाएंवक़्त के साथ जब उतरती हैं कलियाँ तो जैसे तुम उतर आती हो ईश्वर का रूप लेकर। मन को छू गई आपकी यह रचना दिगंबर जी। यह कोई साधारण काव्य- सृजन नहीं, कुछ ऐसा है जो एक दृष्टि में सरल प्रतीत होता है लेकिन गूढ़ार्थ लिए हुए है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंI think this is one of the most significant info for me. And I'm glad reading your article.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंप्रार्थना के शब्द जो ऊपर तक नहीं जा पाते...बीज बन कर हृदय की उर्वर ज़मीन पर रह जाते हैं...उचित मौसम आने पर वो अंकुरित हो जाते हैं...बहुत खूब...👍👍👍
जवाब देंहटाएंWhat’s up, I wish for to subscribe for this website to get latest updates, therefore where can I do it please help out.
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