जवाब ...
खिड़की की चौखट पे बैठे
उदास परिंदों के प्रश्नों का जवाब किसी के पास नहीं होता
सायं-सायं करती आवारा हवाओं के पास तो बिलकुल नहीं
कहाँ होती है ठीक उसके जैसी वो दूसरी चिड़िया
घर बनाया था तिनका-तिनका जिसके साथ लचकती डाल पर
के मिल के देख लिए थे कुछ सपने सावन के मौसम में
आसान तो नहीं होता लम्हा-लम्हा तिनके कतरा-कतरा उम्र में उलझाना
हालाँकि सपनों की ताबीर उम्र में न हो तो नहीं होती मुकम्मल
ज़िन्दगी
पर आसान भी नहीं होता रहना फिर उसी घोंसले में
जहाँ बेहिसाब यादों के तिनके वक़्त के साथ शरीर को लहुलुहान करने
लगें
कितनी अजीब होती हैं यादें किसी भी बात से ट्रिगर हो जाती हैं
मेरे प्रश्नों का भी जवाब भी किसी के पास कहाँ होता है
और उड़ जाती है चिड़िया प्रश्न ही लेकर । वाह।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२७-०६-२०२२ ) को
'कितनी अजीब होती हैं यादें'(चर्चा अंक-४४७३ ) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हालाँकि सपनों की ताबीर उम्र में न हो तो नहीं होती मुकम्मल ज़िन्दगी
जवाब देंहटाएंपर आसान भी नहीं होता रहना फिर उसी घोंसले में
जहाँ बेहिसाब यादों के तिनके वक़्त के साथ शरीर को लहुलुहान करने लगें
.. बहुत सही, जख्मी यादें जख्म हरा कर उन्हें कुरेद देते हैं और भारी पीड़ा पहुंचाते हैं शरीर को
बहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंआम चिड़िया हो या आम इंसान ! इनकी किस्मत में अधूरे ख़्वाब ही होते हैं.
बड़ी अपनी- सी लगी आपकी यह अभिव्यक्ति दिगंबर जी।
जवाब देंहटाएंकितनी अजीब होती हैं यादें किसी भी बात से ट्रिगर हो जाती हैं । बिल्कुल सही कहा आपने। कब किसके बात से कौन सी बात याद आ जाए कहा नहीं जा सकता।
जवाब देंहटाएंहृदय में गहराई से उतरती संवेदनाओं का अनूठा सृजन।
जवाब देंहटाएंश्र्लाघ्य।
पर आसान भी नहीं होता रहना फिर उसी घोंसले में
जवाब देंहटाएंजहाँ बेहिसाब यादों के तिनके वक़्त के साथ शरीर को लहुलुहान करने लगें
और ये यादें भुलाई भी तो नहीं जातीं ...... आज कल इतना निराशावादी क्यों लिखा जा रहा है .....
जंगली गुलाब तो अपनी मर्ज़ी से बे इन्तिहाँ खिलता है ....
बहुत गहरी रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सृजन
जवाब देंहटाएंकविता की आखिरी पंक्तियाँ काफी कुछ कह गईं
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