नाक़ाम इश्क़ ...
काँटों की चुभन है नाक़ाम इश्क़
रहने नहीं देती जो चैन से
महसूस होता है रिस्ता दर्द, रह-रह के चुभती कील सरीखे
एक अन्तहीन दौड़ की दौड़
क्या प्रेम की प्राप्ति के लिए ?
या भटकता है खुद की तलाश में इन्सान ?
नाक़ाम इश्क़ के रिश्ते सँजोना
दीमक लगे पेड़ को जीवित रखने का प्रयास है
जो पनपने नहीं देता नए रिश्तों की नाज़ुक कोंपलें
काटना होता है ऐसे तमाम पेड़ों को दिल की बंज़र ज़मीन से
खिले होते हैं बहुत से जंगली गुलाब
नज़र भर देखना होता है आस-पास का मंज़र
ज़िन्दगी की दौड़ में
समय बदलते ... समय नहीं लगता ...
काटना होता है ऐसे तमाम पेड़ों को दिल की बंज़र ज़मीन से
जवाब देंहटाएंयह बहुत ज़रूरी है वरना जंगली गुलाब बजी न खिल पाएँगे ।
लाजवाब
जवाब देंहटाएंनाक़ाम इश्क़ के रिश्ते सँजोना
जवाब देंहटाएंदीमक लगे पेड़ को जीवित रखने का प्रयास है
जो पनपने नहीं देता नए रिश्तों की नाज़ुक कोंपलें
कड़वी सच्चाई व्यक्त की है आपने, दिगंबर भाई।
सादर नमस्कार ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-9-22} को "हिन्दी है सबसे सरल"(चर्चा अंक 4551) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
वाह! लाजवाब!!!
जवाब देंहटाएंवाह! लाजवाब!!! विश्वमोहन
जवाब देंहटाएंवक्त की धारा अपनी चाल से चलती रहती है, लोग मिलते हैं और बिछुड़ते हैं. जीवन में आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि जो छूट जाये उसे जाने देना चाहिए
जवाब देंहटाएंवाह! लाजवाब!!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
बहुत ही सुंदर लिंक धन्यवाद आपका
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आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 सितंबर 2022 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंअथ स्वागतम शुभ स्वागतम
सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंक्या बात है सर! बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंएक अलग ही कशिश होती है..... चुभन में। बस आह...
जवाब देंहटाएंसमय बदलते ... समय नहीं लगता ...
जवाब देंहटाएंएकदम सही बात