स्वप्न मेरे: धरती पे लदे धान के खलिहान हैं हम भी ...

बुधवार, 30 नवंबर 2022

धरती पे लदे धान के खलिहान हैं हम भी ...

इस बात पे हैरान, परेशान हैं हम भी.
क्यों अपने ही घर तुम भी हो, मेहमन हैं हम भी.  
 
माना के नहीं ज्ञान ग़ज़ल, गीत, बहर का,
कुछ तो हैं तभी बज़्म की पहचान हैं हम भी.
 
खुशबू की तरह तुम जो हो ज़र्रों में समाई,
धूँए से सुलगते हुए लोबान हैं हम भी.
 
तुम चाँद की मद्धम सी किरण ओढ़ के आना,
सूरज की खिली धूप के परिधान हैं हम भी.
 
बाधाएँ तो आएँगी न पथ रोक सकेंगी,
कर्तव्य के नव पथ पे अनुष्ठान हैं हम भी.
 
आकाश, पवन, जल, में तो मिट्टी, में अगन में,
वेदों की ऋचाओं में बसे ज्ञान हैं हम भी.
 
गर तुम जो अमलतास की रुन-झुन सी लड़ी हो,
धरती पे लदे धान के खलिहान हैं हम भी.

12 टिप्‍पणियां:

  1. बाधाएँ तो आएँगी न पथ रोक सकेंगी,
    कर्तव्य के नव पथ पे अनुष्ठान हैं हम भी.
    ------------
    गर तुम जो अमलतास की रुन-झुन सी लड़ी हो,
    धरती पे लदे धान के खलिहान हैं हम भी.

    बहुत सुन्दर

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  4. बाधाएँ तो आएँगी न पथ रोक सकेंगी,
    कर्तव्य के नव पथ पे अनुष्ठान हैं हम भी

    बहुत बढ़िया

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  5. वाह!!दिगंबर जी ,हर एक शेर लाजवाब !

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  6. प्रत्येक शेर लाजवाब हैं मान्यवर

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  7. गर तुम जो अमलतास की रुन-झुन सी लड़ी हो,
    धरती पे लदे धान के खलिहान हैं हम भी.

    वाह! अलहदा सी व्यंजनाएं, बहुत उम्दा ग़ज़ल।

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  8. आकाश, पवन, जल, में तो मिट्टी, में अगन में,
    वेदों की ऋचाओं में बसे ज्ञान हैं हम भी.
    वाह !! बेहतरीन व लाजवाब सृजन ।

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  9. बहुत ख़ूब, घर में मेहमान बन के रहना आ जाए तो कोई बोझ नहीं रहता सिर पर, बेहतरीन शायरी

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  10. धान के खलिहान हैं हम भी ..वाह क्या कहने .

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है