चाँद झोली में छुपा के रात ऊपर जाएगी ...
रात को कहना सुबह जब लौट के घर जाएगी.
एक प्याली चाय मेरे साथ पी कर जाएगी.
चाँद है मेरी मेरी बगल में पर मुझे यह खौफ़ है,
कार की खिड़की खुली तो चाँदनी डर जाएगी.
प्रेम सागर का नदी से इक फरेबी जाल है,
जानती है ना-समझ मिट जाएगी, पर जाएगी.
है बड़ा आसान इसको काट कर यूँ फैंकना,
ज़ख्म दिल को पर अंगूठी दे के बाहर जाएगी.
बादलों के झुण्ड जिस पल धूप को उलझायेंगे,
नींद उस पल छाँव बन कर आँख में भर जाएगी.
चल रही होगी समुन्दर में पिघलती शाम जब,
चाँद झोली में छुपा के रात ऊपर जाएगी.
वाह
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंप्रेम सागर का नदी से इक फरेबी जाल है,
जवाब देंहटाएंजानती है ना-समझ मिट जाएगी, पर जाएगी.
वाह! क्या बात है। हमेशा की तरह लाजबाव सृजन 🙏
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १६ दिसंबर २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
खूबसूरत सृजन ।
जवाब देंहटाएंचाँद है मेरी मेरी बगल में पर मुझे यह खौफ़ है,
जवाब देंहटाएंकार की खिड़की खुली तो चाँदनी डर जाएगी.
प्रेम सागर का नदी से इक फरेबी जाल है,
जानती है ना-समझ मिट जाएगी, पर जाएगी
वाह!!!
क्या बात....
फरेब ही सही पर प्रेम में मिटना नहीं तो प्रेम ही क्या
हमेशा की तरह लाजवाब सृजन ।
आप तो सुबह को भी चाय पिला कर भेजेंगे ।
जवाब देंहटाएंखूबसूरत ग़ज़ल ।
बादलों के झुण्ड जिस पल धूप को उलझायेंगे,
जवाब देंहटाएंनींद उस पल छाँव बन कर आँख में भर जाएगी.///
नज़ाकत की पोटली है ये रचना।एक शानदार रचना है दिगम्बर जी।कोमलता से मन को छूती हुई!!👌👌👌🙏