उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं ...
अभी तो
कुछ बयानों में गिरी हैं.
सभा में खून की छींटें गिरी हैं.
सुबह के साथ सब फीकी मिलेंगी,
ज़मीं पे रात कि पहरें गिरी हैं.
इसे मत दर्द के आँसू समझना,
टपकती आँख से यादें गिरी हैं.
मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
बहुत याद आएगा खण्डहर जहाँ पर,
हमारे प्रेम की शक्लें गिरी हैं.
जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
बिखर कर उम्र से चीजें गिरी हैं.
किसी ने स्याही छिड़की आसमाँ पर,
उफ़ुक़ से रात की बूँदें गिरी हैं.
अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
जवाब देंहटाएंक्षमा करें अगर मेरी भारतीय भाषा को समझना मुश्किल है
greetings from malaysia
द्वारा टिप्पणी: muhammad solehuddin
शुक्रिया
वाह
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!
जवाब देंहटाएंमिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
जवाब देंहटाएंहथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
बेहतरीन अशआरों से सजी लाजवाब ग़ज़ल ।
अत्यंत सुन्दर सृजन ।
बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंग़ज़ल हो तो ऐसी हो
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 26 दिसंबर 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जवानी, बचपना, रिश्ते ये हसरत,
जवाब देंहटाएंबिखर कर उम्र से चीजें गिरी हैं.
आभार
सादर
लाजवाब रचना..
जवाब देंहटाएंशानदार ग़ज़ल हर शेर लाजवाब।
जवाब देंहटाएंवाह, बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह्ह सर बेहतरीन गज़ल।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब।
सादर।
इसे मत दर्द के आँसू समझना,
जवाब देंहटाएंटपकती आँख से यादें गिरी हैं.
वाह!!!!
मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
क्या बात...
लाजवाब गजल...
बहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंये पंक्तियाँ बहुत भाईं
मिले तिनका तो फिर उठने लगेंगी,
हथेली से जो उम्मीदें गिरी हैं.
शब्द नहीं हैं मेरे पास दिगम्बर जी।मेरे पास सराहना के सभी शब्द मौन हैं! आपका लेखन सदैव ही उम्दा और अत्यंत मोहक है।आपकी लेखनी को किसी की नज़र ना लगे।नव वर्ष में और अच्छा लिखें यही कामना करती हूँ 🙏
जवाब देंहटाएंक्रिसमस और नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🌺🌺🙏
बेहतरीन रचना, बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत खूब सर
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