स्वप्न मेरे: झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है ...

शनिवार, 14 जनवरी 2023

झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है ...

तुझे अब इश्क़ में ही ज़िन्दगी मालूम होती है.
दिगम्बर ये तो पहली ख़ुदकुशी मालूम होती है.
 
कोई प्यासा भरी बोतल से क्यों नज़रें चुराएगा,
निगाहों में किसी के आशिक़ी मालूम होती है.
 
उन्हें छू कर हवा आई, के ख़ुद उठ कर चले आए,
कहीं ख़ुशबू मुझे पुरकैफ़ सी मालूम होती है.

हँसी गुल से लदे गुलशन में क्यों तितली नहीं जाती,
कहीं झाड़ी में तीखी सी छुरी मालूम होती है.
 
कई धक्के लगाने पर भी टस-से-मस नहीं होती,
रुकी, अटकी हमें ये ज़िन्दगी मालूम होती है.
 
न जुगनू, दीप, आले, तुम भी लगता है नहीं गुज़रीं,
कई सड़कों पे अब तक तीरग़ी मालूम होती है.
 
सफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.

16 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार 16 जनवरी 2023 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. हर एक शेर मुकम्मल अपनी बात कह रहा। पूरी गजल लाजवाब।
    संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐

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  3. सफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
    झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.
    वाह!!!!
    क्या बात...
    लाजवाब👌👌👏👏🙏🙏

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  4. कई धक्के लगाने पर भी टस-से-मस नहीं होती,
    रुकी, अटकी हमें ये ज़िन्दगी मालूम होती है.
    वाह!!
    बेहतरीन सृजन ।

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  5. पढ़ती पहले भी थी - अब कितने कुशल हो गये हैं आप!

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  6. सफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
    झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.....क्या बात है ! बहुत खूब

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  7. वाकई सादगी मालूम होती है।

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है