झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है ...
तुझे अब इश्क़ में ही ज़िन्दगी मालूम होती है.
दिगम्बर ये तो पहली ख़ुदकुशी मालूम होती है.
कोई प्यासा भरी बोतल से क्यों नज़रें चुराएगा,
निगाहों में किसी के आशिक़ी मालूम होती है.
उन्हें छू कर हवा आई, के ख़ुद उठ कर चले आए,
कहीं ख़ुशबू मुझे पुरकैफ़ सी मालूम होती है.
हँसी गुल से लदे गुलशन में क्यों तितली नहीं
जाती,
कहीं झाड़ी में तीखी सी छुरी
मालूम होती है.
कई धक्के लगाने पर भी टस-से-मस नहीं होती,
रुकी, अटकी हमें ये ज़िन्दगी मालूम होती है.
न जुगनू, दीप, आले, तुम भी लगता है नहीं गुज़रीं,
कई सड़कों पे अब तक तीरग़ी मालूम होती है.
सफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
झुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.
वाह💙❤️
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल सर जी।
जवाब देंहटाएंVery nice lines Sir
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार 16 जनवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंहर एक शेर मुकम्मल अपनी बात कह रहा। पूरी गजल लाजवाब।
जवाब देंहटाएंसंक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई 💐💐
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सफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
जवाब देंहटाएंझुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.
वाह!!!!
क्या बात...
लाजवाब👌👌👏👏🙏🙏
मनमोहक रचना सर।
जवाब देंहटाएंसादर।
बहुत खूब कहा।
जवाब देंहटाएंकई धक्के लगाने पर भी टस-से-मस नहीं होती,
जवाब देंहटाएंरुकी, अटकी हमें ये ज़िन्दगी मालूम होती है.
वाह!!
बेहतरीन सृजन ।
वाह
जवाब देंहटाएंपढ़ती पहले भी थी - अब कितने कुशल हो गये हैं आप!
जवाब देंहटाएंसफ़ेदी बाल में, चेहरे पे उतरी झुर्रियाँ लेकिन,
जवाब देंहटाएंझुकी पलकों में अब तक सादगी मालूम होती है.....क्या बात है ! बहुत खूब
वाकई सादगी मालूम होती है।
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