आसान तो नहीं था
मगर वो बदल गया. इक शख्स था गुनाह में शामिल संभल गया. कुछ ख़्वाब थे जो
दिन में हकीक़त न बन सके, उस रात उँगलियों
से मसल कर निकल गया. पत्थर में आ गई
थी फ़सादी की आत्मा, साबुत सरों को
देख के फिर से मचल गया. जिसने हमें उमीद के लश्कर दिखाए थे, वो ज़िन्दगी के स्वप्न दिखा कर मसल गया. सूरज थका-थका था उसे नींद आ गई, साग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया. जब इस बगल था इश्क़
तो पैसा था उस बगल, मैं इस बगल गया ये
सनम उस बगल गया.
पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा, साबुत सरों को देख के फिर से मचल गया./// 👌👌👌👌👌👌👌 सराहना साए परे रचना दिगम्बर जी।सभी शेर बहुत ही मर्मांतक और दिल को छू लेने वाले हैं।आखिर जहाँ पाठक की सोच नही जा सकती वहीं कवि सहजता से पहुँच जाता है।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें।🙏
पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा, साबुत सरों को देख के फिर से मचल गया. 👌👌👌👌 बहुत ही मर्मांतक शेरों से सजी रचना दिगम्बर जी।आपकी कल्पना की उड़ान को नमन जो वहाँ पहुँच जाती है जहाँ आम पाठक सोच भी नहीं सकता।सादर 🙏
सूरज थका-थका था उसे नींद आ गई, साग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया. जब इस बगल था इश्क़ तो पैसा था उस बगल, मैं इस बगल गया ये सनम उस बगल गया. ,.. आपकी हर गजल कितना कुछ कह जाती है, यह देखकर मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होता है। यूँ ही आपकी कलम चलती रही, यही शुभकामना करते है। कृपया समय मिलने पर हमारे यूट्यूब चैनल को देखना न भूले और चैनल को शेयर, सब्सक्राइब कर कमेंट करना न भूलें। https://www.youtube.com/@rawatkavitauk https://www.youtube.com/watch?v=n853K8xCuJE&t=28s https://www.youtube.com/watch?v=svRRJRDlI38
आपकी लिखी रचना सोमवार 20 फरवरी 2023 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
जब इस बगल था इश्क़ तो पैसा था उस बगल,
जवाब देंहटाएंमैं इस बगल गया ये सनम उस बगल गया.
बहुत खूब, हमेशा की तरह लाजबाव ग़ज़ल,सादर नमन आपको 🙏
पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा,
जवाब देंहटाएंसाबुत सरों को देख के फिर से मचल गया.///
👌👌👌👌👌👌👌
सराहना साए परे रचना दिगम्बर जी।सभी शेर बहुत ही मर्मांतक और दिल को छू लेने वाले हैं।आखिर जहाँ पाठक की सोच नही जा सकती वहीं कवि सहजता से पहुँच जाता है।हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं स्वीकार करें।🙏
पत्थर में आ गई थी फ़सादी की आत्मा,
जवाब देंहटाएंसाबुत सरों को देख के फिर से मचल गया.
👌👌👌👌
बहुत ही मर्मांतक शेरों से सजी रचना दिगम्बर जी।आपकी कल्पना की उड़ान को नमन जो वहाँ पहुँच जाती है जहाँ आम पाठक सोच भी नहीं सकता।सादर 🙏
गहन भावों के साथ लाजवाब अशआरों सजी नायाब ग़ज़ल ।
जवाब देंहटाएंसूरज थका-थका था उसे नींद आ गई,
जवाब देंहटाएंसाग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया.
वाह ! बेहतरीन
वाह💙❤️
जवाब देंहटाएंसूरज थका-थका था उसे नींद आ गई,
जवाब देंहटाएंसाग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया.
वाह!!!!
लाजवाब 👌👌🙏🙏
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसूरज थका-थका था उसे नींद आ गई,
जवाब देंहटाएंसाग़र की बाज़ुओं में वो झट से पिघल गया.
जब इस बगल था इश्क़ तो पैसा था उस बगल,
मैं इस बगल गया ये सनम उस बगल गया.
,.. आपकी हर गजल कितना कुछ कह जाती है, यह देखकर मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर होता है। यूँ ही आपकी कलम चलती रही, यही शुभकामना करते है। कृपया समय मिलने पर हमारे यूट्यूब चैनल को देखना न भूले और चैनल को शेयर, सब्सक्राइब कर कमेंट करना न भूलें।
https://www.youtube.com/@rawatkavitauk
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वाह, पसंद आयी यह रचना
जवाब देंहटाएंhd streamz apk download
जवाब देंहटाएंHd Streamz
उत्कृष्ट सृजन सटीक उम्दा भाव।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति, उम्दा प्रदर्शन।
जवाब देंहटाएंशानदार प्रस्तुति, उम्दा प्रदर्शन।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएं