चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था …
सैण्डल जिस-पल नीली साड़ी की चुन्नट पे अटका था.
चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था.
बीती यादों की बुग्नी में जाने कितने लम्हे थे,
पर ये मन गोरी छलकत गगरी पन-घट पे अटका था.
रंग चुरा के भँवरे सारे चुपके-चुपके निकल गए,
फूल कहीं ताज़ा सा तितली की आहट पे अटका था.
हौले-हौले शबनम उतरी तेरे कदमों से उस-पल,
मफ़लर जब यादों का ओढ़े गरमाहट पे अटका था.
ख़ुशहाली के सपने ले कर जब दो पाँव थके निकले,
मजबूरी का तन्हा कँगन तब चौखट पे अटका था.
मुमकिन है आँखों से बह कर दुख का दरिया उतरा हो,
टूटे सपनों का गीलापन हर सिलवट पे अटका था.
सुलगाना किस को था किस को सुलगाया अब रब जाने,
पर तेरे होठों का गाढ़ा कश सिगरट पे अटका था.
लाजवाब
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
मुमकिन है आँखों से बह कर दुख का दरिया उतरा हो,
जवाब देंहटाएंटूटे सपनों का गीलापन हर सिल्वट पे अटका था.
बेहतरीन ग़ज़ल! अंतिम शेर में गाड़ा को गाढ़ा कर लीजिए और सिलवट शायद ज़्यादा सही रहेगा
जवाब नहीं आपका!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब! फोटो भी जबरदस्त छॉँट के लगाया है
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
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बहुत बढ़िया बिम्ब
जवाब देंहटाएंरंग चुरा के भँवरे सारे चुपके-चुपके निकल गए,
जवाब देंहटाएंफूल कहीं ताज़ा सा तितली की आहट पे अटका था.
वाह!!!
क्या बात....
बहुत ही लाजवाब।
लाजवाब!! बहुत उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत अंदाज़ में दिल से निकले हुए जज़्बात
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