स्वप्न मेरे: चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था …

मंगलवार, 25 अप्रैल 2023

चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था …

सैण्डल जिस-पल नीली साड़ी की चुन्नट पे अटका था.
चैन हमारा उस-पल तेरी काली लट पे अटका था.


बीती यादों की बुग्नी में जाने कितने लम्हे थे,
पर ये मन गोरी छलकत गगरी पन-घट पे अटका था.


रंग चुरा के भँवरे सारे चुपके-चुपके निकल गए,
फूल कहीं ताज़ा सा तितली की आहट पे अटका था.


हौले-हौले शबनम उतरी तेरे कदमों से उस-पल,
मफ़लर जब यादों का ओढ़े गरमाहट पे अटका था.


ख़ुशहाली के सपने ले कर जब दो पाँव थके निकले,
मजबूरी का तन्हा कँगन तब चौखट पे अटका था.


मुमकिन है आँखों से बह कर दुख का दरिया उतरा हो,
टूटे सपनों का गीलापन हर सिलवट पे अटका था.


सुलगाना किस को था किस को सुलगाया अब रब जाने,
पर तेरे होठों का गाढ़ा कश सिगरट पे अटका था.

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार (27-04-2023) को   "सारे जग को रौशनी, देता है आदित्य" (चर्चा अंक 4659)  पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मुमकिन है आँखों से बह कर दुख का दरिया उतरा हो,
    टूटे सपनों का गीलापन हर सिल्वट पे अटका था.

    बेहतरीन ग़ज़ल! अंतिम शेर में गाड़ा को गाढ़ा कर लीजिए और सिलवट शायद ज़्यादा सही रहेगा

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  3. जवाब नहीं आपका!
    बहुत खूब! फोटो भी जबरदस्त छॉँट के लगाया है

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 27 अप्रैल 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. रंग चुरा के भँवरे सारे चुपके-चुपके निकल गए,
    फूल कहीं ताज़ा सा तितली की आहट पे अटका था.
    वाह!!!
    क्या बात....
    बहुत ही लाजवाब।

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  6. बेहद खूबसूरत अंदाज़ में दिल से निकले हुए जज़्बात

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आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है