स्वप्न मेरे: खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए …

बुधवार, 7 जून 2023

खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए …

छोटी इस एक बात पे दुनिया को खल गए.
बंजर ज़मीन पर ही उगे और पल गए.

जिनका था आफ़ताब से गठ-जोड़ हर जगह,
कल रात चाँदनी से मिले हाथ जल गए.

गिरते हुवे भी थाम ली बाजू खजूर नें,
गिर कर भी आसमान से हम यूँ संभल गए.

इतना हुनर था ये भी न महसूस हो सका,
सिक्के असल के साथ ही खोटे भी चल गए.

सुन कर भी सुन सके न कभी ख़ुद ने जो कहा,
वो ज्ञान बाँट-बाँट के आगे निकल गए.

मजबूर ग़र नहीं तो ये आदत न हो कहीं,
कीचड़ दिखा तो पाँव भी झट से फ़िसल गए.

कुछ लोग ओढ़ कर जो चले मोम का लिबास,
खिलती मिली जो धूप इरादे बदल गए.

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर शुक्रवार 09 जून 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  2. वाह! दिगंबर जी ,बहुत ही खूबसूरत सृजन..।

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  3. जिनका था आफ़ताब से गठ-जोड़ हर जगह,
    कल रात चाँदनी से मिले हाथ जल गए.
    वाह!!!!
    क्या बात...

    गिरते हुवे भी थाम ली बाजू खजूर नें,
    गिर कर भी आसमान से हम यूँ संभल गए.
    बहुत ही लाजवाब 👏👏👏👌👌👌🙏🙏🙏

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  4. जिनका था आफ़ताब से गठ-जोड़ हर जगह....
    वाह !!!
    गिरते हुवे भी थाम ली बाजू खजूर नें,
    गिर कर भी आसमान से हम यूँ संभल गए.
    "आसमान से गिरे, खजूर में अटके" को कोई यूँ भी पेश कर सकता है ! बहुत खूब !

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