धुआँ उठा तो तेरा अक्स पा लिया मैंने.
सिगार नाम का तेरे जला लिया मैंने.
मेरा यक़ीन है दिल तो किसी का टूटा है,
दिलों के खेल में जब दिल दिया-लिया मैंने.
खरोंच एक भी आने न पाई शीशे पर,
तमाम उम्र ये रिश्ता निभा लिया मैंने.
अधूरी बात को कर लेंगे ख़्वाब में पूरा,
अभी तो नींद का कम्बल चढ़ा लिया मैंने.
फिज़ां महकने लगी कायनात सुर्ख़ हुई,
ग़ज़ल के बीच तुझे गुनगुना लिया मैंने.
कभी रहा न मैं उस दिन के बाद से तनहा,
तुम्हारे साथ जो लम्हा बिता लिया मैंने.
ख़ुशी के जाम पिलाते पिलाते छुप-छुप कर,
किसी के दर्द का हिस्सा उठा लिया मैंने.
लाजवाब
जवाब देंहटाएंहर एक शेर बेशकीमती, लाजवाब है, सहेजने योग्य है !
जवाब देंहटाएंमेरा यक़ीन है दिल तो किसी का टूटा है,
दिलों के खेल में जब दिल दिया-लिया मैंने.
खरोंच एक भी आने न पाई शीशे पर,
तमाम उम्र ये रिश्ता निभा लिया मैंने.
शानदार
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 08 अगस्त 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह! बेहतरीन ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंसरस कृति
जवाब देंहटाएंतुम जो आये मेरी महफ़िल में
जवाब देंहटाएंदिल का दिया जला दिया मैने...
आपको पढ़-पढ़ के डर लगता है कि कहीं हम भी शायरी न शुरू कर दें...😊