पोल ऐसे ही खोल देता है.
वो कहीं कुछ भी बोल देता है.
सोच लो कम-से-कम है क्या क़ीमत,
वो तो कोड़ी का मोल देता है.
प्रश्न जब गोल-गोल देता है.
कौन सी चैट है ख़ुदा जाने,
लोल के बदले लोल देता है.
वो मदारी है विष फ़िज़ाओं में,
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ घोल देता है.
वो प्रजातंत्र का है निर्देशक,
चुप ही रहने का रोल देता है
है तो मुश्किल मगर वो दुख ले कर,
कह-कहे फ्री में तोल देता है.
सोच लो कम-से-कम है क्या क़ीमत,
वो तो कोड़ी का मोल देता है.
प्रश्न जब गोल-गोल देता है.
कौन सी चैट है ख़ुदा जाने,
लोल के बदले लोल देता है.
वो मदारी है विष फ़िज़ाओं में,
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ घोल देता है.
वो प्रजातंत्र का है निर्देशक,
चुप ही रहने का रोल देता है
है तो मुश्किल मगर वो दुख ले कर,
कह-कहे फ्री में तोल देता है.
गजब :)
जवाब देंहटाएंशायरों के साथ यही दिक्क़त है...लफ़्ज़ों से पोल खोल देते हैं...खूबसूरत रचना...👏👏👏
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" मंगलवार 21 नवम्बर 2023 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंएकदम अलहदा ...
बहुत ही लाजवाब👌👌👌🙏🙏🙏