जिद्द है तुझे पाने की
पर दौड़ने नहीं देता वक़्त अपने से आगे
जबकि तू सवार रहती है पतंग के उस कोने पे
जो रहता है आसमान में, कट जाने से पहले तक
तेरे कटने का इंतज़ार मुझे मंज़ूर नहीं
दूसरी पतंगों से आँख-मिचौली मैं चाहता नहीं
(तेरी ऊंची उड़ान, हमेशा से मेरी चाहत जो रही है)
शायद ये डोर अब वक़्त के हाथों ठीक नहीं
उम्मीद का क़तरा जो बाकी है आँखों में अभी
पतंग के उसी कोने पे बैठ
दुआ करना तू मेरे हक़ में
सुना है दुनिया बनाने वाला
वहीं रहता है ऊपर आसमान में कहीं …
#जंगली_गुलाब
वक्त बढ़ाता मुझको आगे , और हसरतें पीछे ...
जवाब देंहटाएंचाहत और इन्तज़ार पीड़ा देते हैं लेकिन किसी को थकने या हारने नहीं देते . .
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
वाह
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 08 जनवरी 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति. नव वर्ष की मंगल कामनाएं.
जवाब देंहटाएंपतंग के उसी कोने पे बैठ
जवाब देंहटाएंदुआ करना तू मेरे हक़ में
सुना है दुनिया बनाने वाला
वहीं रहता है ऊपर आसमान में कहीं …
वाह !! बेहतरीन और लाजवाब भावाभिव्यक्ति । सादर वन्दे !
वाह नासवा जी, शानदार लिखा...पतंग के उसी कोने पे बैठ
जवाब देंहटाएंदुआ करना तू मेरे हक़ में... ये मृगमरीचिका है ...वाह
वाह!
जवाब देंहटाएंवाह. बेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंदिल से निकली हर दुआ कुबूल होती है, सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंतेरे कटने का इंतज़ार मुझे मंज़ूर नहीं
जवाब देंहटाएंदूसरी पतंगों से आँख-मिचौली मैं चाहता नहीं
(तेरी ऊंची उड़ान, हमेशा से मेरी चाहत जो रही है)
वाह!!!!
बहुत ही खूबसूरत चाहत!!!
क्या बात...
बहुत ही लाजवाब।
बहुत सुंदर रचना... शुभकामनाएं ढ़ेर सारी
जवाब देंहटाएंपतंग के उसी कोने पे बैठ
जवाब देंहटाएंदुआ करना तू मेरे हक़ में
सुना है दुनिया बनाने वाला
वहीं रहता है ऊपर आसमान में कहीं …शानदार काव्य !